संगम पर क्यों लेटे हैं हनुमान जी, इनके दर्शन के बिना अधूरा रहेगा महाकुंभ शाही स्नान, पढ़िए पौराणिक कथा
punjabkesari.in Tuesday, Jan 21, 2025 - 09:20 PM (IST)
नारी डेस्कः महाकुंभ मेले से स्नान करने आए श्रद्धालु अगर प्रयागराज में हनुमान जी की लेटी हुई मूर्ति के दर्शन ना करें तो यह स्नान अधूरा माना जाता है। प्रयागराज में संगम के किनारे हनुमानजी का लेटी हुई स्थिति में मंदिर है। हनुमान की जी की ये प्रतिमा करीब 20 फीट लंबी है और जमीन से 6-7 फीट नीचे तक जाती है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई संगम में स्नान करने आता है और वह हनुमान जी के दर्शन ना करें तो बिना उनके दर्शन के स्नान अधूरा माना जाता है।
हनुमान जी ये विशाल प्रतिमा लेटी हुई क्यों है?
बता दें कि प्रयागराज के अलावा बहत सारी जगहों पर भी हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा है। यमुना नदी के किनारे इटावा का पिलुआ महावीर मंदिर है। इस मंदिर में भी हनुमानजी की लेटी हुई प्रतिमा है। इस मूर्ति के मुखार बिंदु में कभी भी कोई वस्तु नहीं भरती। इसे चमत्कार माना जाता है। मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में भी हनुमान जी विश्राम मुद्रा में विराजमान हैं। बरेली में भी रामगंगा नदी के उद्गम स्थल पर हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा प्राचीन वट वृक्ष के नीचे स्थित है लेकिन प्रयागराज संगम किनारे हनुमान जी की ये लेटी हुई विशाल प्रतिमा के पीछे की एक पौराणिक कहानी है। चलिए उसी के बारे में बताते हैं।
क्या है संगम के लेटे हनुमान जी की कहानी?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, लंका पर जीत प्राप्त करने के बाद जब हनुमान जी थक गए थे तो सीताजी के कहने पर हनुमान जी ने प्रयागराज में इसी संगम किनारे आकर विश्राम किया था। इसी वजह से वह यहां लेटे हुए हैं। हनुमान जी के बारे में यह कहा जाता है कि वे बहुत कम सोते थे। पौराणिक कथाएं कहती हैं कि हनुमान जी ने अपने जीवन का ज्यादातर समय भगवान राम की सेवा में बिताया।
600-700 साल पुराना है हनुमान जी का मंदिर
इस मंदिर का इतिहास 600-700 साल पुराना माना जाता है। इस मंदिर को लेटे हुए हनुमान मंदिर, किले वाले हनुमानजी, लेटे हनुमानजी और बांध वाले हनुमानजी या श्री बड़े हनुमान जी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि संत समर्थ गुरु रामदास जी ने यहां हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी। वहीं कुछ का ये भी कहना है कि इस मूर्ति को एक व्यापारी ने स्थापित किया था।
मंदिर से जुड़ी एक अन्य कहानी
कथा के मुताबिक, कन्नौज के राजा की कोई संतान नहीं थी। उनके गुरु ने उन्हें उपाय के रूप में बताया था कि हनुमानजी की ऐसी प्रतिमा का निर्माण करवाइए जो राम लक्ष्मण को नाग पाश से छुड़ाने के लिए पाताल में गए थे। हनुमानजी का यह विग्रह विंध्याचल पर्वत से बनवाकर लाया जाना चाहिए। कन्नौज के राजा ने ऐसा ही किया। वह विंध्याचल से हनुमानजी की प्रतिमा नाव से लेकर आ रहे थे कि तभी अचानक से नाव टूट गई। प्रतिमा जलमग्न हो गई जिससे राजा बहुत दुखी हुए। वह अपने राज्य वापस लौट गए। इस घटना के कई वर्षों बाद जब गंगा का जलस्तर घटा तो वहां धूनी जमाने का प्रयास कर रहे राम भक्त बाबा बालगिरी महाराज को यह प्रतिमा मिली फिर उसके बाद वहां के राजा द्वारा मंदिर का निर्माण करवाया गया।
पौराणिक कथाएं के अनुसार, हनुमान जी ने अपने जीवन का ज्यादातर समय भगवान राम की सेवा में बिताया और वह बहुत कम सोते थे। हनुमान जी की नींद को लेकर यह मान्यता है कि वे केवल तब सोते थे जब उनके पास सेवा का कोई काम नहीं होता था। हनुमान जी अद्वितीय शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं इसलिए वह थकते नहीं थे लेकिन फिर भी, कुछ समय ऐसे आए जब उन्होंने थकान का अनुभव किया।
माता सीता की खोज – जब हनुमान जी ने माता सीता की खोज के लिए लंका की यात्रा की, तो उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया। इस दौरान उन्हें लंबी उड़ान और लड़ाई के कारण थकान महसूस हुई।लंका में युद्ध – लंका में रावण के साथ युद्ध के समय, हनुमान जी ने राक्षसों से लड़ाई की और इस संघर्ष में उन्हें थकान अनुभव हुई।
हनुमान जी की कुछ और खास मुद्राओं की मूर्तियां
भारत में कई राज्यों में हनुमान जी की खास मुद्राओं की मूर्तियां हैं जिसमें उड़ते हुए हनुमान जी, पर्वत उठाए हुए हनुमान जी, पंचमुखी हनुमान जी ( ये तमिलनाडु में कुम्बकोनम में है) पंचमुखी रूप में स्थापित हनुमान जी शत्रु बाधा, बीमारी और मन-मुटाव को दूर करने के लिए पूजे जाते हैं।
उलटे हनुमान जी का मंदिर इंदौर में हैं यहां भगवान हनुमान की उल्टे मुख वाली मूर्ति स्थापित है, जो भक्तों को चिंताओं से मुक्त करती है।
महाराष्ट्र के खुल्दाबाद में स्थित भद्र मारुति मंदिर भारत के उन कुछ मंदिरों में से एक है जहां भगवान हनुमान की मूर्ति शयन मुद्रा में हैं यानि हनुमान जी की सोई हुई मूर्ति। यह मंदिर औरंगाबाद शहर से लगभग 26 किलोमीटर दूर खुल्दाबाद में स्थित है। यह एलोरा गुफाओं से भी लगभग 4 किलोमीटर दूर है।