''चिट्ठी आई है''''... से सभी को रुलाने वाले पंकज उदास ने फिर भर दिए आंखों में आंसू
punjabkesari.in Monday, Feb 26, 2024 - 06:29 PM (IST)
गजल गायिकी को नया आयाम देने वाले पंकज उदास अब इस दुनिया में नहीं रहे। महज सात वर्ष की उम्र से ही पंकज उधास गाना गाने लगे थे ।उनके इस शौक को उनके बड़े भाई मनहर उदास ने पहचान लिया और उन्हें इस राह पर चलने के लिये प्रेरित किया।।एक बार पकंज को एक संगीत कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिला जहां उन्होंने .ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी गीत गाया। इस गीत को सुनकर श्रोता भाव.विभोर हो उठे। उनमें से एक ने पंकज उदास को खुश होकर 51 रूपये दिये। इस बीच वह राजकोट की संगीत नाट्य अकादमी से जुड़ गये और तबला बजाना सीखने लगे।
Today kids will never understand the value of Ghazal. I grew up listening to so many Ghazal and will always remain close to my heart.
— Sujeet Suman (@sujeetsuman1991) February 26, 2024
Pankaj udas is no more but his melodious sound will always remain with us.#PankajUdhasDeath #PankajUdhaspic.twitter.com/tmC7kgB0aA
बेहतर जिंदगी की तलाश में आए मुंबई
कुछ वर्ष के बाद पंकज उदास का परिवार बेहतर जिंदगी की तलाश में मुंबई आ गया । पंकज उदास ने अपनी स्नातक की पढ़ाई मुंबई के मशहूर सैंट जेवियर्स कॉलेज से हासिल की । इसके बाद उन्होंने स्नाकोत्तर पढ़ाई करने के लिये दाखिला ले लिया लेकिन बाद में उनकी रूचि संगीत की ओर हो गयी और उन्होंने उस्ताद नवरंग जी से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। उनके सिने कैरियर की शुरूआत 1972 में प्रदर्शित फिल्म (कामना) से हुयी लेकिन कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह असफल साबित हुयी । इसके बाद गजल गायक बनने के उद्देश्य से पंकज उदास ने उर्दू की तालीम हासिल करनी शुरू कर दी ।
रेडियो में नहीं करना चाहते थे काम
वर्ष 1976 में पंकज उदास को कनाडा जाने का अवसर मिला और वह अपने एक मित्र के यहां टोरंटो में रहने लगे । उन्हीं दिनों अपने दोस्त के जन्मदिन के समारोह में उनको गाने का अवसर मिला । उसी समारोह में टोरंटो रेडियो में हिंदी के कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले एक सज्जन भी मौजूद थे उन्होंने पंकज उदास की प्रतिभा को पहचान लिया और उन्हें टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने का मौका दे दिया । लगभग दस महीने तक टोरंटो रेडियो और दूरदर्शन में गाने के बाद पंकज उधास का मन इस काम से उब गया ।
मखमली आवाज की दुनिया हुई कायल
इस बीच कैसेट कंपनी के मालिक मीरचंदानी से उनकी मुलाकात हुयी और उन्हें अपनी नई एलबम आहट में पार्श्वगायन का अवसर दिया। यह अलबम श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ । वर्ष 1986 में प्रदर्शित फिल्म नाम उनके सिने कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में एक है । यूं तो इस फिल्म के लगभग सभी गीत सुपरहिट साबित हुये लेकिन पंकज उधास की मखमली आवाज में चिट्ठी आई है वतन से चिटी आई है गीत..आज भी श्रोताओ की आंखो को नम कर देता है । इस फिल्म की सफलता के बाद पंकज उधास को कई फिल्मों में पार्श्ववगायन का अवसर मिला । इन फिल्मों में गंगा जमुना सरस्वती,बहार आने तक, थानेदार, साजन, दिल आशना है, फिर तेरी कहानी याद आई, ये दिल्लगी, मोहरा, मै खिलाड़ी तू अनाड़ी, मंझधार, घात, और ये है जलवा, प्रमुख है।
दूसरों के दुख.दर्द को समझते थे पंकज उदास
पंकज उदास के गाये गीतों की संवदेनशीलता उनकी निजी जिन्दगी में भी दिखाई देती थी । वह एक सरल हृदय के संवदेशनशील इंसान भी है जो दूसरों के दुख.दर्द को अपना समझकर उसे दूर करने का प्रयास करते है । दूसरों के प्रति हमदर्दी और संवेदनशीलता की इस भावना को प्रदर्शित करने वाला एक वाकया है । एक बार मुंबई के नानावती अस्पताल से एक डाक्टर ने पंकज उधास को फोन किया कि एक व्यक्ति के गले के कैंसर का आपरेशन हुआ है और उसकी उनसे मिलने की तमन्ना है। इस बात को सुनकर पंकज उधास तुरंत उस शख्स से मिलने अस्पताल गए और न सिफर् उसे गाना गाकर सुनाया बल्कि अपने गाये गाने का कैसेट भी दिया । बाद में जब इस बात का पता चला कि उस मरीज के गले का ऑपेरशन कामयाब रहा है और उसकी बीमारी धीरे-धीरे ठीक हो रही है तो पंकज उधास काफी खुश हुये । उन्हें अपने करियर में मान सम्मान भी खूब मिला।इनमें सर्वश्रेष्ठ गजल गायक .के.एल.सहगल अवाडर् ,रेडियो लोटस अवाडर् ,इंदिरा गांधी प्रियदर्शनी अवाडर्,दादाभाई नौरोजी मिलेनियम अवाडर् और कलाकार अवाडर् जैसे कई पुरस्कार शामिल है । साथ ही गायकी के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें 2006 में पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया । पंकज उधास के एलबम के लिये पार्श्वगायन किया, इनमें नशा, हसरत, महक, घूंघट, नशा 2, अफसाना, आफरीन, नशीला, हमसफर, खूशबू और टुगेदर, प्रमुख है ।