क्या आपको पता है कि द्रौपदी भी रखती थीं करवा चौथ का व्रत? कृष्ण ने सुनाई थी व्रत कथा

punjabkesari.in Friday, Oct 10, 2025 - 12:59 PM (IST)

नारी डेस्क : करवा चौथ हिंदू धर्म का एक प्रमुख व्रत है, जिसे विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाभारत काल में द्रौपदी ने भी यह व्रत रखा था?

द्वापर युग से चली आ रही परंपरा

शास्त्रों के अनुसार, करक चतुर्थी या करवा चौथ का व्रत द्वापर युग से प्रचलित है। इसका उद्देश्य पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और सौभाग्य को बनाए रखना है। एक बार जब अर्जुन किलागिरि पर्वत पर गए हुए थे, तब द्रौपदी बहुत चिंतित हो गईं। उन्होंने सोचा —

PunjabKesari

“अर्जुन की अनुपस्थिति में मेरे जीवन में कई कठिनाइयां और बाधाएं आ रही हैं, अब मैं क्या करूं?”

इस चिंता में द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया और हाथ जोड़कर प्रार्थना की,

“हे प्रभु, कृपया मुझे ऐसा उपाय बताइए जिससे मुझे शांति मिले और मेरे सभी संकट दूर हो जाएं।”

यें भी पढ़ें : Karwa Chauth की पूजा के बाद करवा का क्या करें? अगर इधर-उधर फेंका तो क्या होगा...

भगवान कृष्ण ने सुनाई करवा चौथ की कथा

कृष्ण मुस्कराए और बोले —“हे द्रौपदी, एक बार पार्वती जी ने भी भगवान शिव से यही प्रश्न किया था। तब महादेव ने उन्हें सभी बाधाओं को दूर करने वाला करक चतुर्थी व्रत बताया था।”

वीरवती की कथा: करवा चौथ व्रत की उत्पत्ति

इंद्रप्रस्थ नगरी में वेद शर्मा नाम के एक ब्राह्मण रहते थे। उनकी पत्नी लीलावती के सात पुत्र और एक पुत्री वीरवती थी। विवाह के बाद वीरवती ने एक बार विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत रखा। लेकिन दिनभर भूखी-प्यासी रहने के बाद शाम को उसे बहुत भूख लगी। यह देखकर उसके भाइयों ने उसकी पीड़ा से व्याकुल होकर एक ऊंचे स्थान पर दीपक जलाया, जो चाद जैसा प्रतीत हो रहा था। वीरवती ने उसे वास्तविक चंद्रमा समझकर अर्घ्य दिया और व्रत तोड़ दिया। जैसे ही उसने अर्घ्य दिया, उसी क्षण उसके पति की मृत्यु हो गई।

PunjabKesari

तपस्या और पुनर्जन्म की कथा

वीरवती शोक में डूब गई और उसने एक वर्ष तक कठोर तप किया। अगले वर्ष जब करवा चौथ का दिन आया, तब इंद्राणी और अन्य देवियां पृथ्वी पर आईं। उन्होंने वीरवती से कहा कि उसके पति की मृत्यु इसलिए हुई क्योंकि उसने अधूरा व्रत किया था और वास्तविक चंद्रमा को अर्घ्य नहीं दिया था। देवियों के निर्देशानुसार, वीरवती ने अगले वर्ष पूरे विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत रखा। तब देवियों ने पवित्र जल से उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया।

यें भी पढ़ें : नाखूनों में बार-बार दिखें ये बदलाव तो समझ लें शरीर में चल रही कोई बड़ी गड़बड़ी

द्रौपदी ने रखा करवा चौथ व्रत

भगवान कृष्ण ने द्रौपदी से कहा — “हे द्रौपदी, यदि तुम भी करवा चौथ का व्रत विधिपूर्वक रखोगी तो तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।” द्रौपदी ने इस व्रत का पालन किया। परिणामस्वरूप कौरव सेना पराजित हुई और पांडवों को विजय प्राप्त हुई। इसीलिए करवा चौथ का व्रत अखंड सौभाग्य, समृद्धि और वैवाहिक सुख का प्रतीक माना जाता है।

पूजन सामग्री

इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और चंद्र देव की पूजा की जाती है।

13 करवे या लड्डू

एक बर्तन

एक कपड़ा और पति के माता-पिता के लिए एक विशेष करवा रखा जाता है।

लड्डू या तो घी में तले हुए होते हैं या चीनी की चाशनी में डूबे हुए करवे बनाए जाते हैं।

मंत्र के साथ पूजा करें 

“नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संततिं शुभम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥”

भगवान शिव की पूजा “ॐ नमः शिवाय” मंत्र से करें और कार्तिकेय की “षण्मुखाय नमः” से।

नैवेद्य अर्पण करें, ब्राह्मण को दक्षिणा दें।

अंत में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करें और फिर भोजन ग्रहण करें।

करवा चौथ का व्रत केवल पति की दीर्घायु का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह विश्वास, निष्ठा और त्याग का भी प्रतीक है। शास्त्रों में इसका उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि यह परंपरा द्वापर युग से निरंतर चली आ रही है। द्रौपदी द्वारा रखा गया यह व्रत आज भी हर भारतीय महिला के प्रेम और श्रद्धा का प्रतीक बन गया है।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Monika

Related News

static