आपके दिमाग को नकारात्मक सोच क्यों पसंद है? जानिए इसके 3 बड़े कारण
punjabkesari.in Monday, Dec 29, 2025 - 12:07 PM (IST)
नारी डेस्क : क्या आपने कभी गौर किया है कि आपका दिमाग सालों पहले की किसी शर्मनाक गलती को तो बिल्कुल साफ़-साफ़ याद रखता है, लेकिन कल ही मिली तारीफ या सराहना को याद करने में परेशानी होती है? दरअसल, इसके पीछे आपकी कमजोरी नहीं बल्कि दिमाग की बनावट जिम्मेदार है। मनोविज्ञान में इसे नकारात्मकता पूर्वाग्रह (Negativity Bias) कहा जाता है। इसका मतलब है कि हमारा मस्तिष्क सकारात्मक अनुभवों की तुलना में नकारात्मक अनुभवों को ज्यादा गहराई से महसूस करता है, ज्यादा देर तक याद रखता है और उन पर ज्यादा ध्यान देता है। आइए जानते हैं वे 3 मुख्य कारण, जिनकी वजह से आपका दिमाग नकारात्मक सोच की ओर झुकता है।
मस्तिष्क नकारात्मकता को प्राथमिकता देने के लिए विकसित हुआ है
आज से हजारों साल पहले, जब न स्मार्टफोन थे और न सोशल मीडिया, तब इंसान का सबसे बड़ा लक्ष्य था जीवित रहना। उस दौर में झाड़ियों की हल्की सरसराहट, मौसम का बदलता मिज़ाज या किसी जानवर के पदचिह्न खतरे का संकेत हो सकते थे। ऐसे में खतरे को नजरअंदाज करना जानलेवा साबित हो सकता था। इसलिए मानव मस्तिष्क इस तरह विकसित हुआ कि वह खतरे और नकारात्मक संकेतों पर तुरंत ध्यान दे। आज भले ही हम जंगल में न रहते हों, लेकिन दिमाग अब भी उसी पुराने अलार्म सिस्टम पर काम करता है।

आज यह अलार्म इस रूप में दिखता है
किसी की आलोचना को दिल पर ले लेना
सामाजिक अस्वीकृति का डर
आर्थिक अनिश्चितता को जीवन-मरण का खतरा समझना
मस्तिष्क का एक हिस्सा एमिग्डाला, जो भावनाओं को प्रोसेस करता है, खतरे से जुड़े संकेतों पर बहुत तेज़ प्रतिक्रिया देता है। इसलिए नकारात्मक अनुभव दिमाग में ज्यादा गहराई से बैठ जाते हैं।
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नकारात्मक विचार भविष्य के नुकसान से बचाने की कोशिश करते हैं
शोध बताते हैं कि हम 5 तारीफें भूल सकते हैं। लेकिन 1 आलोचना को सालों तक याद रखते हैं। इसे ही नकारात्मकता पूर्वाग्रह कहा जाता है। एक अध्ययन में पाया गया कि लोग नकारात्मक घटनाओं के छोटे-छोटे विवरण तक ज्यादा ध्यान देते हैं, जिससे वे यादें और भी मजबूत हो जाती हैं। इसके पीछे एक और वजह है हानि से बचने की प्रवृत्ति (Loss Aversion)। हम फायदे की तुलना में नुकसान को ज्यादा गंभीरता से लेते हैं। चाहे वह पैसे का नुकसान हो, रिश्तों में आलोचना हो या आत्मसम्मान को ठेस।

यही कारण है कि छोटी गलती बड़ी लगने लगती है, उपलब्धियां फीकी पड़ जाती हैं। दिमाग बार-बार “क्या गलत हो सकता है?” पर टिक जाता है। अगर आप जानबूझकर सकारात्मक अनुभवों को नोटिस और याद नहीं करते, तो मस्तिष्क खुद-ब-खुद गलतियों पर ही फोकस करता रहेगा।
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नकारात्मक सोच एक भावनात्मक चक्र बना लेती है
जब नकारात्मक विचार बार-बार मन में आते हैं, तो शरीर में कोर्टिसोल नामक तनाव हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता है। यह हार्मोन दिमाग को जरूरत से ज्यादा सतर्क बना देता है, जिससे एक खतरनाक चक्र शुरू हो जाता है। नकारात्मक विचार तनाव को बढ़ाते हैं, बढ़ा हुआ तनाव दिमाग को और अधिक नकारात्मक संकेत खोजने पर मजबूर करता है और इससे चिंता और गहरी हो जाती है। 2014 के एक अध्ययन में भी यह पाया गया कि नकारात्मक बातों को बार-बार दोहराने से भविष्य में तनाव के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया और तेज हो जाती है, यही वजह है कि ओवरथिंकिंग, चिंता और अवसाद समय के साथ बढ़ते चले जाते हैं।
इस दौरान लोग खुद से सवाल करने लगते हैं
“मैं इसे भूल क्यों नहीं पा रहा?”
“मैं इतना परेशान क्यों हो रहा हूं?”
असल में, दिमाग वही कर रहा होता है जिसकी उसे आदत पड़ चुकी होती है।
क्या इस नकारात्मक चक्र को तोड़ा जा सकता है?
हां, बिल्कुल, जिस तरह नकारात्मक चक्र बनते हैं, उसी तरह जानबूझकर सकारात्मक मानसिक आदतें बनाकर उन्हें तोड़ा जा सकता है।

कुछ छोटे लेकिन असरदार तरीके
दिन की 1 अच्छी बात लिखें
तारीफ को जानबूझकर 10–15 सेकंड तक महसूस करें।
अपने विचारों को तथ्य की तरह नहीं, संकेत की तरह देखें।
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खुद से पूछें: “क्या यह सच में खतरा है?”
याद रखें, आपका दिमाग आपको खुश रखने के लिए नहीं, बल्कि आपकी रक्षा करने के लिए बना है। लेकिन जब आप इस तंत्र को समझ लेते हैं, तो आप उसे ट्रेन कर सकते हैं। नकारात्मकता को ढीला छोड़ने और सकारात्मकता को अपनाने के लिए।

