जानिए क्यों तुलसी चढ़ाने से रुष्ट हो जाते हैं भगवान गणेश, पढ़े रोचक कथा

punjabkesari.in Tuesday, Jun 20, 2023 - 04:52 PM (IST)

कहते है जिस किसी के घर में तुलसी का पौधा होता है उसका घर हमेशा हरा-भरा रहता है। साथ ही उसके घर में मां लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान विष्‍णु का वास होता है। मान्यता है कि तुलसी की पत्ती यदि भगवान के भोग में डाल दी जाए या फिर ईश्वर को अर्पित की जाए, तो शुभ फल मिलता है। ऐसे में शुभ फल पाने के चक्कर में हर देवी-देवता को तुलसी की पत्ती अर्पित कर देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। क्योंकि हिंदू धर्म में कुछ देवी-देवता ऐसे भी है जिन्हें तुलसी की पत्ती भोग में या अभिषेक में अर्पित नहीं करनी चाहिए। जी हां यह सच है बता दें कि भगवान गणेश, शिव, पार्वती और कार्तिकेय को भूलकर भी तुलसी की पत्ती अर्पित नहीं करनी चाहिए। तो चलिए जानते है इस सवाल का जवाब पंडित जी से। 

तुलसी ने नाराज होकर गणेश जी को दिया शाप  

पुराणों के मुताबिक एक बार भगवान गणेश जी गंगा नदी के किनारे तपस्‍या कर रहे थे। इसी दौरान देवी तुलसी गणेश के पास पहुंची और उनके सुंदर स्‍वरूप से मोहित हो गईं। उसके मन में गणेश से विवाह करने की इच्छा जाग्रत हुई। तुलसी ने विवाह की इच्छा से उनका ध्यान भंग किया। तब गणेश ने तुलसी द्वारा तप भंग करने को अशुभ बताया और तुलसी की मंशा जानकर स्वयं को ब्रह्मचारी बताकर उसके विवाह प्रस्ताव को नकार दिया। विवाह प्रस्‍ताव ठुकराने पर तुलसी ने नाराज होकर गणेशजी को शाप दिया कि उनके ए‍क नहीं बल्कि दो-दो विवाह होंगे। इस पर गणेश ने भी तुलसी को शाप दे दिया कि तुम्हारा विवाह एक असुर से होगा। एक राक्षस की पत्नी होने का शाप सुनकर तुलसी ने गणेशजी से माफी मांगी। फिर गणेशजी ने तुलसी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण राक्षस से होगा। किंतु फिर तुम भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को प्रिय होने के साथ ही कलयुग में जगत के लिए जीवन और मोक्ष देने वाली होगी, पर मेरी पूजा में तुलसी चढ़ाना शुभ नहीं माना जाएगा। तब से ही भगवान श्री गणेश जी की पूजा में तुलसी चढ़ाना वर्जित माना जाता है।

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यह कथा बहुत पुरानी है

पंडित ने बताया कि इस कथा का आरंभ तुलसी देवी के पूर्व जन्म से है। जब वृंदा का विवाह एक राक्षस (जालंधर) से हुआ था। जिससे वह बहुत प्रेम करती थी और किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचती तक नहीं थी वह काफी धार्मिक थी। जिस कारण सभी देवता उसे पसंद करते थे। उसे एक वरदान मिला था कि जब तक वह पतिव्रत रहेगी उसके पति को कुछ नहीं होगा। जिस कारण उसका पति तीनों लोक में त्राहि-त्राहि मचाने लगा। ऐसे में कोई भी उसका वध नहीं करता था। जालंधर की पाप और शक्तियां इतनी बढ़ गई कि उसके जीवित रहने पर देवी-देवताओं को खतरा महसूस होने लगा। तब मानव जाति की रक्षा के लिए भगवान शिव और जगतपिता नारायण ने एक षड्यंत्र रचा। 

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पंडित जी बताते हैं, 'एक दिन भगवान विष्णु जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंच गए। वृंदा भगवान विष्णु को ही अपना पति समझ बैठी, जिससे उसका पतिव्रता धर्म भंग हो गया। ऐसा होते ही भगवान शिव ने जालंधर का वध कर दिया।' वृंदा को इस बात का पता लगते ही उसने आत्मदाह कर लिया और भगवान विष्णु पाषाण (पत्थर) बनने का श्राप दिया। मगर देवी लक्ष्मी  के आग्रह पर वृंदा ने अपना श्राप वापिस ले लिया। इस पर भगवान विष्णु ने पत्थर के रूप (शालिग्राम) में तुलसी से विवाह किया और यह प्रण लिया कि तुलसी के बिना वह अन्न-जल नहीं ग्रहण करेंगे तब से तुलसी सभी देवी-देवताओं की प्रिय हो गई और इसे शुभ माना जाने लगा। लेकिन एक श्राप वृंदा ने पूरे शिव परिवार को भी दिया कि तुलसी का उसे कभी कोई संबंध नहीं होगा। पंडित जी ने बताया कि वृंदा के शरीर से जो राख निकली उससे एक पौधे ने जन्म लिया। जिसे तुलसी कहा जाता है। 

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Content Writer

Kirti

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