समाज में महिलाओं को दिलवाया सम्मान, लड़कियों के लिए खोला स्कूल ऐसा था समाज सेवी ज्योतिबा फूले का जीवन
punjabkesari.in Tuesday, Apr 11, 2023 - 03:57 PM (IST)
आज समाज में भले ही महिलाओं की स्थिति अच्छी है परंतु एक ऐसा समय भी था जहां महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त नहीं थे। इसके अलावा समाज की सोच भी महिलाओं के प्रति बहुत ही खराब थी। ऐसे में उस समय कुछ समाज सुधरकों ने देश को पुरानी बेड़ियों और जंजीरों से बाहर लाया और देश में एक नई सोच का परचम लहराया। उन्हीं में से एक थे ज्योतिबा फुले। 19वीं सदी में भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों को पीछे छोड़ इन्होंने महिलाओं को समाज में उचित अधिकार दिलवाए। तो चलिए आपको बताते हैं कि कैसे ज्योतिबा फुले ने समाज में महिलाओं को एक अलग पहचान दिलवाई...
कहां जन्म थे ज्योतिबा फुले
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 में पुणे में हुआ था। उनकी मां का नाम चिमणाबाई और पिता का नाम गोविंदराव था। उनका परिवार कई पीढ़ियों से ही माली का काम करता था । वह महाराष्ट्र के सातारा जिले से फूल लाकर फूलों के गजरे तैयार किया करते थे इसलिए उनकी पीढ़ि को फुले कहा जाता था।
महिलाओं के शिक्षा के लिए किया काफी संघर्ष
ज्योतिबा फुले ने महिलाओं की शिक्षा के लिए काफी संघर्ष किया। इसके लिए वह ब्रिटिश शासन के लोगों से भी टकरा गए थे। साल 1848 में उन्होंने महिलाओं को शिक्षा देने के लिए एक स्कूल भी खोला। यह पूरे देश की लड़कियों के लिए शुरु किया गया पहला स्कूल था। यह स्कूल पुणे में खोला गया था ।
पत्नी सावित्री बाई फुले को भी किया था शिक्षित
कहते हैं कोई भी नई शुरुआत पहले अपने घर से की जाती है ऐसे में ज्योतिबा ने समाज को सुधारने के लिए अपने घर से ही इसकी शुरुआत की। उन्होंने अपनी पति सावित्री बाई फुले को खुद शिक्षा प्रदान की थी। जब स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षिका नहीं मिली तो उन्होंने अपनी पत्नी को इसके लिए तैयारी करवाई। अपनी पत्नी को इस योग्य बनाया हालांकि इसके लिए उन्हें समाज के लोगों की बातें भी सुनने पड़ी लेकिन फिर भी उन्होंने इसकी परवाह न करते हुए अपनी पत्नी को पढ़ाकर अध्यापिका बनाया।
बाल विवाह और विधवा का किया था विरोध
स्त्रियों को शिक्षा देने के अलावा ज्योतिबा ने समाज को कुछ रुढ़ीवादी और अंधविश्वास भरी परंपराओं से भी मुक्त करवाया। उन्होंने बाल विवाह और विधवा विवाह का भी विरोध किया। इसको स्वीकार करवाने के लिए उन्होंने कई सारे प्रयास भी किए। आज भी महाराष्ट्र में सत्यशोधक समाज नाम की संस्था आज भी ज्योतिबा फुले के द्वारा शुरु किए गए कार्यों को कर रही हैं।
महिलाओं और पुरुषों के बीच का भेद करना चाहते थे दूर
ज्योतिबा ने अपना पूरा जीवन स्त्रियों को शिक्षा देने और उनको अधिकारों के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए लगाया। 19वीं सदी में उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा देना जरुरी नहीं समझा जाता था वह महिलाओं और पुरुषों के बीच में फैले हुए इस भेद को दूर करना चाहते थे। उन्होंने लड़कियों के लिए शिक्षा देने के लिए पहली पाठशाला पुणे में बनाई।
स्थापित किया सत्यशोधक समाज
ज्योतिबा फुले ने समाज के पिछड़े वर्गों और दलितों को न्याय दिलवाने के लिए सत्यशोधक समाज स्थापित किया था। समाज परिवर्तन के आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने 24 सितंबर 1873 में इस समाज की स्थापना की। इस समाज का प्रमुख उद्देश्य शूद्रों-अतिशूद्रों को न्याय दिलवाना था। उन लोगों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना और उत्पीड़न से मुक्ति दिलवाना था। इसके अलावा इस समाज में ज्योतिबा फुले ने वंचित वर्ग के युवाओं को प्रशासनिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने के भी कई प्रयास किए। ज्योतिबा फुले की समाज के प्रति सेवा देखकर 1888 में मुंबई की एक सभा ने महात्मा की उपाधि से उन्हें नवाजा था। 1890 में उनका देहांत हो गया।