वेंकटेश्वर के दस्ताने के लिए तीन करोड़ के गहने किए दान, कई रहस्यों से भरा है तिरुपति मंदिर
punjabkesari.in Friday, Dec 10, 2021 - 03:23 PM (IST)
तिरुमला के प्राचीन पहाड़ी मंदिर में पीठासीन देवता वेंकटेश्वर की दिव्य हथेलियों को सजाने के लिए एक भक्त ने रत्न जड़ित सोने के दस्ताने भेंट किए। उसने अपनी मन्नत पूरी होने पर ये दस्ताने दान किए, जिसका भार करीब 5.3 किलोग्राम है अैर इसकी कीमत तीन करोड़ रुपये है
आंध्र प्रदेश में स्थित है ये चमत्कारी मंदिर
मंदिर के एक अधिकारी ने बताया कि तिरुमला में रहने वाले एक परिवार ने तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के अतिरिक्त कार्यकारी अधिकारी ए. वेंकट धर्मा रेड्डी को ये दस्ताने सौंपे। जो पहाड़ी मंदिर के गर्भगृह में भगवान वेंकटेश्वर को सुशोभित करेंगे। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित भगवान तिरुपति बालाजी का चमत्कारिक और रहस्यमयी मंदिर भारत समेत पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
भगवान वेंकटेश्वर से भी जाना जाता है ये मंदिर
श्री वेंकटेश्वर का पवित्र और प्राचीन मंदिर पर्वत की वेंकटाद्रि नामक 7वीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे है। इसी वजह से तिरूपति बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह सभी मंदिर में से सबसे अमीर मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि तिरूपति बालाजी अपने भक्तों की सभी मुरादें पूरी करते हैं, जिसके बाद भक्त यहां आकर लाखों की चीजें दान करते हैं।
बालाजी की प्रतिमा को आता है पसीना
वैसे इस मंदिर का नाम श्री वेंकेटेश्वर मंदिर है, है क्यूंकि यहां पर भगवान वेंकेटेश्वर विराजमान हैं जो स्वयं भगवान विष्णु हैं। ऐसी मान्यता है कि वेंकट पहाड़ी के स्वामित्व के कारण भगवान विष्णु को भगवान वेंकेटेश्वर कहा गया है। मंदिर में बालाजी की बहुत आकर्षक प्रतिमा भी है। ऐसा देखा गया है कि बालाजी की प्रतिमा को पसीना आता है, प्रतिमा पर पसीने की बूंदें देखी जा सकती हैं, इसलिए मंदिर में तापमान कम रखा जाता है।
जमीन से प्रकट हुई है मां की मूर्ति
कहते हैं मंदिर में स्थापित तिरूपति बालाजी की दिव्य काली मूर्ति किसी ने बनाई नहीं बल्कि वह जमीन से प्रकट हुई है। कहा तो यह भी जाता है कि मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं, जो कभी उलझते नहीं हैं।तिरूपति बालाजी में भी भगवान को रोज तुलसी की पत्तियां चढ़ाई जाती हैं, लेकिन उसे भक्तों को प्रसाद के रूप में नहीं दी जाती बल्कि मंदिर परिसर के कुंए में डाल दी जाती है।