जन्माष्टमी पर आधी रात में क्यों काटा जाता है डंठल वाला खीरा? पढ़िए इससे जुड़ी मान्यता
punjabkesari.in Thursday, Aug 14, 2025 - 06:24 PM (IST)

नारी डेस्क: हिंदू धर्म का अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व, कृष्ण जन्माष्टमी, भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह उत्सव शनिवार, 16 अगस्त को मनाया जाएगा। शाम से ही भक्त मंदिरों और घरों को सजाने और भजन-कीर्तन से माहौल को भक्तिमय बना देते हैं।
क्यों होती है मध्यरात्रि पूजा?
जन्माष्टमी की पूजा रात 12 बजे मध्यरात्रि में होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि द्वापर युग में इसी समय रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए भक्त इसी समय विधिपूर्वक पूजा-अर्चना कर उन्हें याद करते हैं।
डंठल वाला खीरा क्यों काटते हैं?
जन्माष्टमी की पूजा में डंठल वाला खीरा काटना एक खास परंपरा है, जो बिना पूरी नहीं मानी जाती। खास बात यह है कि खीरे के डंठल को श्रीकृष्ण का गर्भनाल माना जाता है जैसे नवजात शिशु का नाल जन्म के बाद मां से जुड़कर माय से अलग होता है, ठीक वैसी ही रस्म खीरे के माध्यम से होती है।
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‘नाल छेदन’ रस्म का मतलब क्या है?
इस रस्म को ‘नाल छेदन’ कहा जाता है। इसमें देवी देवकी (माता) और नवजात कृष्ण के बीच स्वरूपगत रूप से जन्म और अलगाव का प्रतीकात्मक संबंध निभाया जाता है। भक्त पहले खीरे का डंठल काटते हैं और फिर उस खीरे को पूजा में रखकर कृष्ण की छोटी मूर्ति बाहर निकालते हैं।
पूजा के बाद आरती और प्रसाद वितरण
जब यह नाल छेदन रस्म पूरी हो जाती है, तो श्रीकृष्ण की आरती की जाती है। इसके बाद उस खीरे को भोग और प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है ताकि वे उसका आध्यात्मिक फल और मिठास घर-घर तक पहुंचा सकें।
जन्माष्टमी पर आधी रात में खीरा काटने की परंपरा यानि ‘नाल छेदन’ रस्म, केवल एक अनूठी प्रथा नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच का एक आध्यात्मिक प्रतीक है। यह रस्म हमें सिखाती है कि हर जन्म के साथ जो जुड़ाव होता है, उसका अर्थ प्रेम, त्याग और नयी शुरुआत में छिपा होता है।