Health: भारत का हर 6वां शख्स डिप्रेशन का मरीज, कैसे रखें खुद को तनाव से दूर

punjabkesari.in Friday, Oct 19, 2018 - 04:14 PM (IST)

डिप्रेशन (अवसाद) यानि मानसिक तनाव आज पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। पूरी दुनिया में लगभग 300 मिलियन लोग डिप्रेशन का शिकार है जिसमें भारत का स्थान पहला है। दो समय की रोजी-रोटी व पैसे कमाने की ललक, पढ़-लिख कर आगे निकलना का दवाब तो महिलाओं पर घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारियों को संभालने का बोझ...व्यक्ति को न चाहते हुए डिप्रेशन के दलदल में घसीट रहा है।

दुनियाभर में 30 करोड़ लोग डिप्रेशन का शिकार
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार,30 करोड़ (300 मिलियन) लोग विश्वभर में अवसाद की समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं हर साल 8,00,000 लोग आत्महत्या कर लेते हैं, जबकि 15 से 29 आयु वर्ग के बीच मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या बन चुका है। 

डिप्रेशन मामले मेें भारत सबसे आगे
वर्ल्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट अनुसार, डिप्रैशन के मामले में भारत पहले स्थान पर है जो कि देश के लिए निराशाजनक स्थिति है। इसी के साथ तनाव, चिंता, स्किज़ोफ्रेनिया(Schizophrenia) और बायोपोलर डिसऑर्डर जैसे मामलों में तेजी से बढ़ रहे है जबकि भारत के बाद, चीन व यू.एस.ए. का नंबर आता है। 

भारत में तेजी से बढ़ती मनोरोगियों की संख्या 
लाइफस्टाइल में बदलाव, जागरूकता की कमी और सही समय पर सही उपचार ना मिलने पर मनोरोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि भारतीय जनसंख्या में कम से कम 6.5 प्रतिशत लोग गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हैं, जिसकी संख्या 2020 तक 20 प्रतिशत तक बढ़ जाने की आशंका है। 80 प्रतिशत मानसिक विकार से जूझ रहे लोग इससे निपटने के लिए किसी प्रकार का उपचार नहीं लेते हैं। 10.9 लोग प्रति एक लाख पर औसतन आत्महत्या करते हैं अपने देश में और आत्महत्या करने वाले अधिसंख्य लोग 44 साल से कम उम्र के होते हैं।
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भारतीय किशोरों की स्थिति चिंताजनक
एनएमएचएस 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार, 13 से 17 साल के 7.3 प्रतिशत भारतीय किशोर मानसिक विकार से ग्रस्त हैं और यह विकार लड़के और लड़कियों में समान मात्रा में विद्यमान है।  मनोरोग से ग्रस्त इन लोगों की स्थिति इतनी गंभीर है कि इन्हें तत्काल इलाज की जरूरत है। एक सच यह भी है कि ग्रामीण किशोरों की  6.9 प्रतिशत की तुलना में महानगरों में रहने वाले किशारों के बीच मानसिक विकार दोगुना (13.5 प्रतिशत) है।
 
14 वर्ष से कम के 50 प्रतिशत बच्चे डिप्रेशन का शिकार

आंकड़े के अनुसार, भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के 50 प्रतिशत बच्चे और 25 वर्ष से कम उम्र के 75 प्रतिशत युवा अवसाद की चपेट में हैं।

क्या है डिप्रेशन?
डिप्रेशन एक तरह की मानसिक बीमारी हैं जो धीरे-धीरे इंसान के दिमाग पर इस कद्र हावी हो जाती हैं कि जिंदगी जीने के प्रति उसकी किसी प्रकार की रूचि नहीं रहती और वह अकेलेपन का शिकार होकर अंदर ही अंदर घूटता रहता है। इसमें इंसान दुख, हानि, व्यर्थता और अक्षमता की सर्वव्यापी भावना का अनुभव करता है जिन विषयों में पहले उसकी रुचि रही हो, उसमें भी उसका मन नहीं लगता और आत्महत्या करने जैसे आत्मघाती खयाल आते हैं। डिप्रेशन भावात्मक अथवा मूड डिसऑर्डर माना जाता है। यहां मूड से मतलब उस भावनात्मक अवस्था से है, जो निरंतर बनी रहती है। 
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डिप्रेशन के आम लक्षण
निरंतर बदलती मनोदशा, चिंता, आंदोलन और उदासीनता
अनिद्रा
सुबह उठने में कठिनाई
थकान और सुस्ती रहना 
अधिक खाने या इसके विपरीत भूख की कमी
शरीर में अकारण दर्द और मोच लगना
शराब, तंबाकू और कैफीन की खपत बढ़ना
आत्महत्या का ख्याल 
ध्यान लगाने में मुश्किल 
काम करने में अधिक समय लेना।
सब कुछ बेकार लगना, निराशा और असहाय भावनाएं
 
डिप्रेशन से बचने के कुछ उपाय
 1. अपने परिवार व दोस्तों के  साथ ज्यादा समय बिताने की कोशिश करें। अपने दोस्तों से मिलें, घूमने जाएं।
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2. रोजाना वॉक पर जाएं, जॉगिंग करें, संभव हो तो स्विमिंग (तैरना) व योग सीखें। व्यायाम करने और फिट रहने से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है और जीवन में सकारात्मकता को बढ़ावा मिलता है। 
 
3. स्वस्थ भोजन न केवल आपके शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि आपके मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है। आहार में विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां, मांस, कम वसा वाले डेयरी खाद्य पदार्थ और मछली आदि शामिल करें। भरपूर पानी पीएं।

 4. ऑफिस के काम को घर पर न लाएं। काम से संबंधित स्ट्रेस का मुकाबला करने के अपने तरीके इजाद करें।
 
5. शराब, तंबाकू और कैफीन का आपके मूड को कुछ समय के लिए सही कर सकता है लेकिन लंबी अवधि में यह केवल आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं।
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डॉक्टरों की कमी है कारण
देश में मानसिक समस्याओें के बढ़ने का कारण मनोवैज्ञानिकों(psychologists), मनोचिकित्सकों (psychiatrists) और डॉक्टरों की कमी को बताया जा रहा है। भारत में मनोचिकित्सक की कमी वजह से समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा। 

सस्ती मानसिक स्वास्थ्य सेवा लागू करना जरूरी
तनाव के लिए जिम्मेदार तथ्य सामने आने पर सभी राज्य सरकारों का यह कर्त्वय बनता है कि लोगों को सस्ती मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करवाई जाएं। हर राज्य में डिप्रैशन जैसी बीमारियों का इलाज महंगा होने के कारण समस्या बढ़ती जा रही है। जो आम आदमी की पहुंच से बहुत दूर है। 

विषय के बारे में बात न करना है बड़ी परेशानी
हमारे समाज के लोगों की मानसिकता के अनुसार, मानसिक बीमारी पर बात करना बुरा माना जाता है। जो तनाव की स्थिति को और भी ज्यादा गंभीर बना रहा है। बहुत जरूरी है कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया, अन्यथा तनाव  जल्द ही भारत में एक महामारी बन जाएगा।


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Content Writer

Vandana

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