7 साल क्या बीती उस मां पर... कैसे काटा उसने एक-एक दिन?

punjabkesari.in Friday, Mar 20, 2020 - 03:57 PM (IST)

साल 2012 में सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई निर्भया को आखिरकार इंसाफ मिल गया। जिस वक्त इस घटना को अंजाम दिया गया, उस वक्त पूरे देश में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन किए गए। जिसमें आरोपियों को सजा देने की मांग की गई। उसी दौरान खबर आती है कि 11 मार्च 2013 को आरोपियों में से एक शख्स ने जेल के अंदर खुदकुशी कर ली। शायद उसे अपनी गलती का एहसास था या फिर सजा मिलने का डर! उसकी मौत को लेकर कोई कुछ नहीं कह सका। हालांकि मरने वाले लड़के के परिवार और वकील ने पुलिस पर इल्जाम लगाया था, कि उनके बेटे नें खुदकुशी नहीं की बल्कि उसे मारा गया है। खैर आखिरकार निर्भया के दोषियों को 20 मार्च को सुबह 5.30 बजे फांसी दे दी गई।

Image result for nirbhaya mother,nari

7 साल का सफर

बात अगर करें 2012 से 20, मार्च 2020 के इस लंबे सफर की, तो क्या निर्भया के परिवार के लिए यह सफर आसान था? भला क्या गुजरती होगी उस मां पर जिसने छोटी उम्र में अपनी बेटी का संस्कार किया। एक मां बेटी को उसकी छोटी-छोटी गलतियों पर भला कितना भी क्यों न डांटे, मगर यदि उसी बेटी के बारे में लोग बातें करें या फिर उंगली उठाएं तो उससे बर्दाश्त नहीं होता। हर मां अपनी बेटी को हमेशा अपने पल्लू में सहेज कर रखना चाहती है, मगर जब दरिंदो ने उस मां की बेटी को नोचा होगा, तो उस वक्त उस मां पर क्या बीती होगी?

इतना लंबा इंतेजार कैसे?

बच्चे जब घर से बाहर निकलते हैं तो मां उनका देर रात तक इंतेजार करती है। बच्चे भी थके हारे घर आकर बस मां का चेहरा देखना चाहते हैं। मगर उस मां पर क्या गुजरती होगी, जो पिछले 7 साल से बेटी का नहीं, बल्कि उसके साथ हुए अन्याय का बदला वह लेना चाहती थी।

Image result for nirbhaya mother,nari

पूरे देश में फैली आंदोलन की आग?

निर्भया के परिवार खासतौर पर उसकी मां ने जिस तरह इस परिस्थिति का सामना किया, इस घटना के बाद देशभर में आंदोलन की आग फैल गई। अपनी बेटी के लिए लड़ने के इस हौंसला ने, न जाने कितनी और माओं का हौंसला बना। इसमें कोई दो राय नहीं कि इतना कुछ होने के बावजूद भी आज देश में रेप केस कम नहीं हो रहे। मगर अपने हक के लिए लड़ने वाले केस भी बहुत सारे सामने आए हैं। पहले जहां एक औरत घर में चुपचाप पति की मार खाती रहती थी। वहीं आज हर नारी अपने साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रही है।

बेटियां ही नहीं, बेटों को भी बनाए संस्कारी

अगर बात करें कि निर्भया और देश की अन्य लड़कियों के साथ ऐसा क्यों होता है? मां-बाप अक्सर अपना सारा जोर बेटियों को संस्कारी बनाने में लगा देते हैं। मगर बेटों पर रोक लगानी भी जरुरी है। बेटों को सिखाएं कि वह घर में अपनी बहन, मां और मौजूद सभी औरतों की इज्जत करे, तभी शायद वह घर से बाहर निकलने पर मिलने वाली लड़कियों की इज्जत कर पाएगा।

Image result for nirbhaya mother,nari

सब्र का मिला फल...

एक मां के लिए छोटी उम्र में बेटी की मौत, खुद के लिए मौत से कम नहीं। ऐसे में एक बेटी जिसके जन्म पर उसकी मां ने लाखों ख्वाब सजाए थे। उसकी पढ़ाई-लिखाई और शादी से जुड़े न जाने कितनी अरमान बेटी की मौत के साथ ही खत्म हो गए। आज अगर निर्भया जिंदा होती तो शायद आज उसकी मां उसकी शादी के लिए लड़का ढूंढ रही होती। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Harpreet

Recommended News

Related News

static