रंगों से ही क्यों खेली जाती है Holi, किसने शुरु की यह परंपरा?
punjabkesari.in Monday, Mar 14, 2022 - 12:19 PM (IST)
हर साल होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह शुभ पर्व 18 मार्च, दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन लोग सफेद कपड़े पहनकर एक-दूसरे को रंग लगाते व बधाई देते हैं। इस पर्व को मनाने के बारे में कहा जाता है कि इस दिन शत्रु भी अपने बीच की दुश्मनी बुलाकर गले लग जाते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि रंगों का त्योहार आखिर क्यों मनाया जाता है? चलिए आज हम आपको होली का पर्व मनाने के पीछे की पौराणिक कथाएं बताते हैं...
श्रीकृष्ण से जुड़ा रंगों का महत्व
पौराणिक कथा अनुसार, द्वापर युग यानि भगवान श्रीकृष्ण के समय का होली और रंगों का खास संबंध है। भगवान श्रीकृष्ण प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं। कहा जाता है कि इसी दिन बाल रूप कृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध किया था। तब इसकी खुशी में गांववालों ने होली मनाई थी। इसके साथ ही इसी पूर्णिमा तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रचाई थी। फिर इसके अगले दिन रंग खेलने का पर्व मनाया था।
अन्य कथा अनुसार
मथुरा में जब श्रीकृष्ण होली का उत्सव करते थे तो उसमें वे कई रंगों का इस्तेमाल करते थे। तभी से लोगों ने रंगों से होली खेलना शुरू कर दिया। बता दें, सबसे पहले वृंदावन, गोकुल में होली मनाने की प्रथा आरंभ हुई। उसके बाद रंगों से होली मनाने व खेलने की प्रथा सामुदायिक कार्यक्रम में बदल गई। इसलिए ही मथुरा-वृंदावन में जोरों-शोरों से होली का पर्व मनाया जाता है। वहीं दुनियाभर के लोग होली को अलग-अलग तरीके से भी मनाते हैं। इसके साथ ही होली का त्योहार मनाने का अर्थ हैं कि सर्दियां अब जा चुकी हैं और गर्मियां शुरु हो गई हैं।
हिरण्यकश्यप और प्रहलाद की कहानी
पौराणिक कथा अनुसार, प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर राजा था। उसने कई वर्षों की तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान लिया था कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे मार ना पाए। इसके साथ न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न घर से बाहर मरे। इसके अलावा उसकी मृत्यु किसी शस्त्र से भी ना हो। ऐसा वरदान पाकर वह बेहद निरंकुश बन गया और खुद को भगवान मानकर सभी से जबरन अपनी पूजा करवाने के लिए अत्याचार करने लगा। कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप के घर पुत्र ने जन्म लिया। असुर राजा ने उसका नाम प्रहलाद रखा। असुर का बेटा बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा भी थी।
हिरण्यकश्यप के मना करने रपर भी प्रहलाद भगवान जी की भक्ति करता रहा। इसतरह गुस्से में आपकर हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के लिए कई प्रयास मगर भगवान विष्णु उसे हर बार बचाते रहें। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका (राक्षसी) को प्रहलाद को आग में जलाकर मारने को कहा। होलिका को अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था। उसे वरदान में एक ऐसी चादर मिली थी, जिसे ओढ़कर वह आग में जल नहीं सकती थी। ऐसे में होलिका खुद पर चादर ओढ़कर प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। तभी भगवान जी की कृपा से तेज हवा चली और वह चादर उड़कर प्रहलाद पर आ गई। इस दौरान प्रहलाद बच गया और होलिका आग में भस्म हो गई। इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण करके खंभे से आकर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का समय) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर असुर हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से मारकर उसका वध कर दिया। उस दिन से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए होली का पर्व मनाने की प्रथा शुरु हो गई।
होली को कहते हैं बसंत महोत्सव
कई लोग होली के पर्व को बसंत महोत्सव भी कहते हैं। दरअसल, इस मौसम मे किसानों की नई फसल देखने को मिलती है। ऐसे में इसकी खुशी पर को किसान होली के रूप में एक साथ मिलकर मनाते हैं। इसी वजह से किसानों के लिए होली का पर्व बसंत महोत्सव होता है।