Aditi-Sonakshi ने मेहंदी की जगह लगाया आलता, जानिए हिंदू ट्रडीशन में ये लगाना क्यों जरूरी?
punjabkesari.in Tuesday, Sep 17, 2024 - 07:53 PM (IST)
नारी डेस्कः अदिति राव हैदरी भी दुल्हन बन गई है और लोगों को अदिति का सिपंल ब्राइडल लुक बहुत पसंद आया है उन्होंने ना रैड लहंगा पहना ना हैवी ज्वैलरी और ना ही अदिति ने हाथों पर मेहंदी रचाई थी क्योंकि मेहंदी की जगह पर अदिति ने आलता लगाया था। वैसे अदिति से पहले भी बहुत सी स्टार्स ऐसा कर चुकी हैं। हाल ही में ब्राइडल बनी हीना खान ने भी रैंपवॉक किया और उन्होंने भी हाथों को आलता से सजाया था। इससे पहले सोनाक्षी सिन्हा, पत्रलेखा भी जब दुल्हन बनी थी तो उन्होंने भी मेहंदी की जगह आलता ही सजाया था। कुछ दिन पहले गणपति उत्सव में पहुंची सोनम कपूर के हाथों पर भी आलता लगा दिखा था लेकिन मेहंदी की जगह ट्रेंड में आया आलता आखिर लगाया क्यों जाता है और महिलाए खासकर शादीशुदा औरतें ही इसे क्यों लगाती हैं? चलिए आपको बताते हैं।
हिंदू धर्म में शादी विवाह या त्योहारों के शुभ मौके पर आलता लगाना जरूरी होता है क्योंकि इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है। उत्तर प्रदेश,बिहार, ओडिशा बंगाल जैसे राज्यों में तो आलते के बिना महिला का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। इसे 16 श्रृंगार का अहम श्रृंगार माना गया है। आलते को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है और इसे लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। यह भी माना जाता है कि आलता लगाने से नैगेटिव एनर्जी दूर रहती है और बुरी नजर नहीं लगती लेकिन इसी के साथ ये भी कहा जाता है कि आलता लगाए लेकिन दिशा भी देखना जरूरी है क्योंकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके इसे नहीं लगाना चाहिए।
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शुभता और सौभाग्य का प्रतीक
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आलता को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा इसे लगाने से उनके परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।
इसे लगाना शुभ और मंगलकारी होता है, खासकर धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, और त्योहारों के दौरान।
विवाह-त्योहार आदि शुभ अवसरों पर लगाना शगुन का प्रतीक
धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों जैसे विवाह, करवा चौथ, और दुर्गा पूजा में आलता का प्रयोग शुभ माना जाता है। बंगाल में, देवी दुर्गा की मूर्ति के चरणों में आलता लगाया जाता है, जो शक्ति और पवित्रता का प्रतीक होता है। महिलाओं द्वारा आलता लगाकर पूजा और अनुष्ठानों में भाग लेना उन्हें धार्मिक रूप से शक्तिशाली और पवित्र महसूस कराता है।
सौंदर्य और देवीत्व का प्रतीक
आलता लाल रंग का होता है, जो शक्ति और देवी के स्वरूप का प्रतीक है। इसे लगाने से महिलाओं को दिव्यता और सौंदर्य का आभास होता है। यह धार्मिक दृष्टिकोण से महिलाओं को देवी स्वरूप के करीब लाता है, जिससे वे पूजा-पाठ के समय विशेष ऊर्जा और आस्था से भर जाती हैं।
भारतीय संस्कृति और परंपरा से जुड़ा
आलता भारतीय संस्कृति और परंपरा से जुड़ा हुआ है। इसे त्योहारों, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में शुभ माना जाता है।आलता लगाने की परंपरा हिंदू धर्म में सदियों पुरानी है, और इसे अपनाकर महिलाएं अपने धर्म और परंपराओं के प्रति सम्मान और आस्था दिखाती हैं। यह परिवार और समाज में उन्हें विशेष पहचान और स्थान दिलाता है। इस प्रकार, हिंदू धर्म में आलता न केवल एक सौंदर्य उत्पाद है, बल्कि यह
शुभता, शक्ति, और धार्मिक आस्था से भी जुड़ा हुआ है।
आरोग्य और मानसिक शांति
आलता लगाने से न सिर्फ धार्मिक बल्कि स्वास्थ्य संबंधी लाभ भी होते हैं। इसे पैरों के तलवों पर लगाने से ठंडक मिलती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। साथ ही, आलता का लाल रंग सकारात्मकता और ऊर्जा का प्रतीक है। आलता में कई आयुर्वेदिक गुण होते हैं। यह पैरों के तलवों पर लगाने से उन्हें ठंडक प्रदान करता है, जिससे शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है और रक्त संचार बेहतर होता है।
इसी के साथ आलता लगाने के कुछ और फायदे भी हैं...
सजावट और सौंदर्य: कई महिलाएं हाथ-पैर को खूबसूरत दिखाने के लिए भी आलता लगाती है। विशेष रूप में उत्भातररतीय महिलाओं की सुंदरता में वृद्धि करता है।
फंगल संक्रमण से बचाव: आलता में मौजूद प्राकृतिक तत्व पैरों को साफ रखते हैं और त्वचा पर होने वाले फंगल संक्रमण को रोकने में मदद करते हैं।
रक्त संचार में सुधार: आलता पैरों पर लगाने से पैरों के तलवों में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जिससे थकान और दर्द में आराम मिलता है।