भगवान शिव ने क्यों किया था पंचमुखी रूप धारण? यहां जानिए उनके पांच मुखों का रहस्य
punjabkesari.in Monday, Aug 04, 2025 - 11:22 AM (IST)

नारी डेस्क: सावन के आखिरी साेमवार के पावन पर्व पर आज हम आपको भगवान शिव के पंचमुखी रूप के बारे में बताने जा रहे हैं , जिसकी उपासना का विशेष महत्व है। भगवान शिव के पंचमुखी रूप का रहस्य बहुत गहरा और आध्यात्मिक महत्व रखता है। ये पाँच मुख न केवलपंचतत्त्वों (जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी, आकाश) और दिशाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि शिव के पांच प्रमुख कार्यों का भी प्रतीक हैं। आइए विस्तार से समझते हैं इसके बारे में
भगवान शिव के पंचमुखी रूप की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार, भगवान विष्णु ने अत्यंत सुंदर किशोर रूप धारण किया। इस रूप को देखने के लिए सभी देवता, ब्रह्मा और शिवजी भी उपस्थित हुए। भगवान शिव ने सोचा कि यदि उनके भी कई मुख होते, तो वे भी इस रूप को और अधिक देख पाते और आनंदित होते। यह विचार आते ही, भगवान शिव ने पंचमुखी रूप धारण कर लिया। उनके प्रत्येक मुख में तीन आंखें थीं और वे पंचानन कहलाए।
पांच मुखों की उत्पत्ति का रहस्य
1. सद्योजात – जब शिव ने ब्रह्मा को जन्म दिया
2. वामदेव – जब शिव ने विष्णु की तरह पालन का स्वरूप लिया
3. अघोर – जब शिव ने रुद्र रूप में संहार किया
4. तत्पुरुष – जब शिव ने ध्यान में स्थित होकर आत्मा को अनुभव किया
5. ईशान – शिव का सबसे सूक्ष्म और दिव्य स्वरूप, जो सभी दिशाओं से परे है
तंत्र शास्त्रों में पंचमुखी शिव
तंत्र ग्रंथों में यह बताया गया है कि पंचमुखी शिव का ध्यान करने से साधक को सभी दिशाओं से सुरक्षा मिलती है, पंचतत्त्वों पर अधिकार प्राप्त होता है,पंचकर्म (सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव, अनुग्रह) में संतुलन आता है और आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शिव के पंचमुखी रूप की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि शिव केवल विनाश के देवता नहीं हैं, बल्कि वे सृष्टि की संपूर्ण व्यवस्था के संचालक हैं। उनके प्रत्येक मुख का अलग उद्देश्य और शक्ति है। यह रूप चेतना के पांच स्तरों का भी प्रतीक है ,शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा और ब्रह्म।
आध्यात्मिक महत्व
ये पंचमुख शिव के पंचकर्मों (सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव, अनुग्रह) को दर्शाते हैं। इनसे यह भी समझा जा सकता है कि भगवान शिव ही आदि और अंत हैं, वे ही रचयिता, पालनकर्ता, और संहारक हैं। शिव के पंचमुखी स्वरूप का ध्यान और उपासना साधक को पूर्णता और आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।