इस श्राप की वजह से धीरे-धीरे घट रहा है गोवर्धन पर्वत, जानिए यहां की परिक्रमा के क्या है नियम
punjabkesari.in Friday, Nov 01, 2024 - 04:28 PM (IST)
नारी डेस्क: गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास, वृंदावन और गोकुल क्षेत्र में स्थित है। यह पर्वत भगवान कृष्ण और उनके भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्व अत्यधिक है, और हर साल हजारों भक्त इसकी परिक्रमा करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं गोवर्धन पर्वत लगातार घट रहा है यानी उसकी ऊंचाई लगातार कम होती जा रही है।
गोवर्धन पर्वत को मिला था श्राप
पुराणों के अनुसार, गोवर्धन पर्वत को ऋषि पुलस्त्य ने श्राप दिया था। कहा जाता है कि जब पुलस्त्य ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को अपने स्थान (काशी) ले जाने की इच्छा जताई तो गोवर्धन पर्वत ने मना कर दिया। ऋषि ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि वह प्रतिदिन एक तिल (सरसों के दाने) के बराबर छोटा होता जाएगा। इसी कारण, माना जाता है कि यह पर्वत समय के साथ धीरे-धीरे छोटा होता जा रहा है।
कैसे की जाती है गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा
गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा को विशेष धार्मिक महत्व दिया जाता है, और इसे करने से भक्तों को पापों से मुक्ति और भगवान कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। परिक्रमा की शुरुआत गोवर्धन पर्वत के मुख्य स्थान से की जाती है, जिसे "दानघाटी" कहते हैं। यहां भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करके परिक्रमा की शुरुआत होती है। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की होती है। भक्त इस दूरी को पैदल चलते हुए या कुछ स्थानों पर दंडवत करते हुए पूरा करते हैं।
परिक्रमा के महत्वपूर्ण स्थल
मानसी गंगा: यह एक पवित्र स्थान है जहां भक्त स्नान कर परिक्रमा की शुरुआत करते हैं।
राधा कुंड और श्याम कुंड : ये दो पवित्र कुंड हैं जहां भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम की कहानियां प्रचलित हैं।
पुंचरी का लोटा: यह गोवर्धन पर्वत का अंतिम भाग माना जाता है, जहां कई भक्त रुककर भगवान को अर्पित सामग्री अर्पित करते हैं।
परिक्रमा के नियम
परिक्रमा के दौरान भक्त सात्विक विचार और भक्ति भाव से भगवान का ध्यान करते हैं। पूरे समय जप और कीर्तन का वातावरण बना रहता है। गोवर्धन पूजा के दिन इस परिक्रमा का महत्व और बढ़ जाता है, और इस दिन लाखों भक्त परिक्रमा करने आते हैं। गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से व्यक्ति के समस्त पाप दूर हो जाते हैं, और उसे भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इसे भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा प्रकट करने का एक अद्भुत तरीका माना जाता है।