Asthma ka Ilaj: दमा मरीज कर लें सिर्फ एक घरेलू उपचार, नहीं जमेगा फेफड़ों में कफ

punjabkesari.in Saturday, Nov 23, 2024 - 08:44 PM (IST)

नारी डेस्कः बढ़ते वायु प्रदूषण का खतरा उन लोगों को सबसे ज्यादा है जिन्हें सांस संबंधी दिक्कत है, जिसे बहुत जल्दी खांसी जुकाम और लंग इंफैक्शन हो जाता है। इसी के साथ अस्थमा यानि की दमा के मरीजों को वायु प्रदूषण का खतरा मंडराता रहता है। एक बार अस्थमा रोग हो जाए तो इसे पूर्ण रूप से खत्म नहीं किया जा सकता लेकिन इसे जरूरती हिदायतें देखकर नियंत्रित किया जा सकता है। अस्थमा मरीजों के लिए डाइट बहुत मायने रखती है। कुछ चीजें उनके लिए वरदान है तो कुछ आहार अस्थमा की समस्या को बढ़ा देती हैं इसलिए एक अनुभवी चिकित्सक से इसकी सलाह लेना बहुत जरूरी है। 

अस्थमा (दमा) क्या और क्यों होती है? What is Asthma?

अस्थमा यानि कि दमा फेफड़ों की एक ऐसी बीमारी होती है जिसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में मुश्किल होती है। यह एक फेफड़ों और सांस नली से जुड़ी एक बीमारी है। दमा होने पर श्वास नलियों में सूजन होकर श्वसन मार्ग सिकुड़ जाता है। इन वायुमार्गों यानी ब्रॉनकायल टयूब्सके माध्यम से हवा फेफड़ों के अन्दर और बाहर जाती है और अस्थमा में यह वायुमार्ग में ही सूजन रहती है। जब यह सूजन बढ़ जाती है और वायुमार्ग के चारों ओर की मांसपेशियों में कसाव पैदा करती हैं तो मरीज को सांस लेने में कठिनाई के साथ खांसी, घरघराहट और सीने में जकड़न जैसी समस्या होती है और यही सबसे बड़ा लक्षण है। खांसी के चलते फेफड़े से कफ पैदा होता है लेकिन इसे बाहर निकालना काफी मुश्किल होता है। आयुर्वेद में अस्थमा को तमक श्वास कहा गया है। यह वात एवं कफ दोष के विकृत होने से होता है। इसमें सांस वाली नलियां संकुचित हो जाती है जिसके कारण छाती में भारीपन का अनुभव होता है तथा सांस लेने पर सीटी जैसी आवाज आती है।

अस्थमा कितने प्रकार का होता है | Types of Asthma

अस्थमा (दमा) के कई प्रकार है। कई बार मरीज की समस्या पूरे साल ठीक नहीं होती और दवा की जरूरत रहती है जबकि कुछ केसेज में यह समस्या मौसम  या किसी एलर्जी के हिसाब से होती है और इस दौरान ध्यान रखा जाए तो रोग कंट्रोल में रहता है। 

पेरिनियल अस्थमा (Perennial Asthma): पेरिनियल अस्थमा (Perennial Asthma) एक प्रकार का अस्थमा है, जिसमें रोगी को पूरे वर्ष सांस लेने में कठिनाई होती है। यह अस्थमा एलर्जी या संवेदनशीलता के कारण होता है जो मौसम से जुड़ा नहीं होता। इसके लक्षण लगातार बने रहते हैं और किसी खास समय या मौसम तक सीमित नहीं रहते। यह स्थिति धूल, धुएं, पालतू जानवरों के बाल, फफूंदी (mold), धुआं, परफ्यूम, केमिकल, ठंडी हवा या नमी, कॉकरोच के कण और घरेलू एलर्जेंस (जैसे डस्ट माइट्स) जैसे कारकों से बढ़ सकती है।

सिजनल अस्थमा (Seasonal Asthma): यह समस्या पूरे साल न होकर किसी विशेष मौसम में पराग कण या नमी के कारण होता है।

एलर्जिक अस्थमा (Allergic Asthma): एलर्जिक अस्थमा में मरीज को किसी विशेष चीज से एलर्जी होती है जैसे धूल-मिट्टी के सम्पर्क में आते ही सांस फूलने लगती है या मौसम में बदलाव के चलते समस्या शुरू होती है।

नॉन एलर्जिक अस्थमा (Non Allergic Asthma): यह भी अस्थमा का एक प्रकार है जिसमें अधिक तनाव होने पर और बहुत अधिक सर्दी या खांसी-जुकाम लगने पर ऐसा होने लगता है।

अकुपेशनल अस्थमा (Occupational Asthma):अकुपेशनल अस्थमा उन लोगों को होता है जो कारखानों में काम करते हैं। 

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अस्थमा के लक्षण जो इग्नोर करने वाले नहीं | asthma hone ke lakshan| Asthma ke lakshan 

इस समस्या में सबसे आम लक्षण यही है कि सांस लेने में तकलीफ (asthma symptoms) होती है। इसके अलावा बार-बार खांसी आना और बहुत ज्यादा तेज खांसी आना।
सांस लेते समय सीटी की आवाज आना।
छाती में जकड़न या भारीपन महसूस होना।
सांस फूलना।
खांसी के समय कठिनाई होना और कफ न निकल पाना।
गला शुष्क और बंद होना।
बेचैनी होना और हार्ट बीट बढ़ना।

अस्थमा रोग को रोकने के उपाय (How to Prevent Asthma in Hindi)

जिन्हें ये समस्या है वो लोग चाहते हैं कि इस बीमारी को जड़ से खत्म किया जाए लेकिन ऐसा इसे पूर्ण रूप से खत्म करना काफी मुश्किल होता है हालांकि कुछ घरेलू इलाज किए जा सकते हैं। अस्थमा के मरीज को कुछ सामान्य बातों का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। 
दमा मरीज को बारिश-सर्दी और धूल मिट्टी वाली जगह पर जाने से बचना चाहिए। क्योंकि बारिश के मौसम में नमी के बढ़ने से इंफैक्शन का खतरा बढ़ जाता है और ज्यादा ठण्डे और नमी वाले वातावरण में नहीं रहना चाहिए, इससे अस्थमा के लक्षण बढ़ सकते हैं।
घर से बाहर निकलने पर मास्क लगा कर निकलें।
सर्दी के मौसम में धुंध में जाने से बचें।
धूम्रपान करने वाले व्यक्ति से दूर रहें और धूम्रपान ना करें।
ताजा पेंट, कीटनाशक स्प्रे, अगरबत्ती, मच्छर भगाने का कॉइल का धुआँ, खुशबुदार इत्र की खुशबू से खुद का बचाव करें।

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अस्थमा मरीजों के लिए बेस्ट डाइट Asthma Home Remedies

अस्थमा के घरेलू उपचार का फायदा तभी होगा जब आपकी डाइट भी सही होगी। गेहूँ, पुराना चावल, मूंग दाल , कुल्थी, जौ, पटोल, हरी पत्तेदार सब्जियां पालक और गाजर का रस अस्थमा रोगियों  के लिए बहुत फायदेमंद होता है। लहसुन, अदरक, हल्दी और काली मिर्च का सेवन जरूर करें क्योंकि यह अस्थमा से लड़ने में मदद करते हैं। गुनगुने पानी का सेवन करने से अस्थमा के इलाज में मदद मिलती है। शहद का सेवन करें। गुनगुने पानी, कलौंजी का सेवन करें। हल्दी वाला पानी पिएं। प्राणायाम-सूर्य नमस्कार, सुखासन, नाड़ीशोधन प्राणायाम करें क्योंकि योगासन से इलाज में मदद मिलती है लेकिन ज्यादा एक्सरसाइज करने से बचें। 

क्या ना खाएं

अंडे, मांस-मछली, तले भूनी चीजें ना खाएं।
अधिक मीठा, ठंडा पानी, कोल्ड ड्रिंक, ठंडी तासीर वाली चीजें, दही का सेवन न करें।
अस्थमा रोगियों को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा वाली चीजों का सेवन कम करना चाहिए।
प्रिजरवेटिव युक्त एवं कोल्डड्रिंक आदि का बिल्कुल भी सेवन न करें, इससे समस्या बढ़ सकती है।
अगर आप अस्थमा का जड़ से इलाज करना चाहते हैं तो इनका पालन करें।

अस्थमा का घरेलू उपचार Home remedies for Asthma | Asthma ka ilaj

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार कई ऐसे घरेलू उपाय हैं जिनकी मदद से  अस्थमा की समस्या को ठीक किया जा सकता है। 

लहसुन है वरदानः अस्थमा के लिए आपको लहसुन का इस्तेमाल करना चाहिए। 30 मि.ली. दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से अस्थमा का जड़ से इलाज (asthma ka ilaj) होता है।

तुलसी अस्थमा में फायदेमंदः सोंठ, सेंधा नमक, जीरा, भुनी हुई हींग और तुलसी के पत्ते को पीसकर एक गिलास पानी में उबाल लें। इसे पीने से अस्थमा से राहत मिलती है।

अंजीर भी फायदेमंदः अंजीर कफ को जमने से रोकता है। सूखी अंजीर को गर्म पानी में रातभर भिगोकर रख दें। सुबह खाली पेट इसे खा लें। ऐसा करने से सांस नली में जमा बलगम ढीला होकर बाहर निकलता है। 

अजवाइन बहुत गुणकारीः अस्थमा का जड़ से इलाज करने के लिए पानी में अजवायन डालकर इसे उबालें और इस पानी से उठती भाप लें।

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आंवला पाउडर गुणकारीः आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार, आंवला हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाकर अस्थमा को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसलिए आपको नियमित रूप से आंवला या आंवला पाउडर का सेवन करना चाहिए। आप आंवला कैंडी का भी सेवन कर सकते हैं।

मेथी दाना से राहतः शरीर की भीतरी एलर्जी को खत्म करने में मेथी दाना बहुत सहायक होती है। मेथी के कुछ दानों को एक गिलास पानी के साथ तब तक उबालें जब तक पानी एक तिहाई न हो जाए। इस पानी में शहद और अदरक का रस मिलाकर रोज सुबह-शाम सेवन करें। यह भी एक सफल तरीका है। 

अदरकः अदरक की चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पिएं। या फिर अदरक का एक चम्मच ताजा रस, एक कप मेथी का काढ़ा और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाकर पीएं। 

करेला दिलाएगा दमा से आरामः करेला का एक चम्मच पेस्ट शहद और तुलसी के पत्ते के रस के साथ मिला कर खाने से फायदा मिलता है। 

सरसों के तेल से मसाजः अस्थमा होने पर छाती और रीढ़ की हड्डी पर सरसों के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करनी चाहिए। मालिश के कुछ देर बाद स्टीमबाथ भी करनी चाहिए।

प्याज भी लाभकारीः प्याज में मौजूद सल्फर फेफड़ों की जलन और अन्य समस्याओं को कम करने का का सफल उपचार है।

विटामिन सी युक्त आहारः विटामिन-सी युक्त फलों और सब्जियों का सेवन करें। नींबू, संतरे, जामुन, स्ट्रॉबेरी एवं पपाया विटामिन-सी के अच्छे स्रोत हैं। सब्जियों में फूलगोभी एवं पत्तागोभी का सेवन करें।

हल्दी वाला दूधः हल्दी बहुत ही गुणकारी मसाला है इसलिए दूध में हल्दी डालकर पिएं। अस्थमा का दौरा बार-बार न पड़े इसलिए हल्दी और शहद मिलाकर चाटना चाहिए। 

शहद, बड़ी इलायची और खजूरः बड़ी इलायची, खजूर और अंगूर को समान मात्रा में पीसकर शहद के साथ खाएं। बड़ी इलायची में कफ खत्म करने का गुण होता है। आप बड़ी (मोटी) इलायची की चाय पी सकते हैं या फिर काढ़ा बनाकर।

अस्थमा का आयुर्वेदिक उपचार (Ayurvedic Remedies for Asthma in Hindi)

आयुर्वेद में अस्थमा को जड़ से खत्म करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियां भी है जैसेः कण्टकारी अवलेह, वासावलेह,  सितोपलादि चूर्ण, कनकासव, अगस्त्यहरीतकी अवलेह, च्यवनप्राश आदि का सेवन किसी चिकित्सक से परामर्श लेकर कर सकते हैं।
वासा-यह सिकुड़ी हुई श्वसन नलियों को चौड़ा करने का काम करती है।
कण्टकारी-यह गले और फेफड़ो में जमें हुए चिपचिपेपन को साफ करती है।
पुष्करमूल-यह एंटीहिस्टामिकन(Antihistaminic) और एन्टीबैक्टिरीयल (Antibacterial) गुणों से भरपूर औषधि है। 
मुलेठी-यह खांसी को ठीक करता है।

डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?

अगर सांस लेने में बहुत ज्यादा कठिनाई और छाती में भारीपन व जकड़न महसूस हो रहा हो तो लापरवाही ना बरतें। यह लक्षण पांच दिनों से ज्यादा दिनों तक रहे तो तुरन्त डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। 


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Content Writer

Vandana

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