अनंत चतुर्दशी: क्यों पहनते हैं 14 गांठ वाला धागा, जानें इसे धारण करने का महत्व व नियम
punjabkesari.in Saturday, Sep 18, 2021 - 02:09 PM (IST)
हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व मनाया जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित यह पावन दिन इस बार 19 सितंबर को पड़ रहा है। इसे अनंत चौदस भी कहा जाता है। इस शुभ तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा के बाद प्रसाद स्वरूप 14 गांठ वाले अनंता को बांह में बांधा जाता है। चलिए जानते हैं अनंत सूत्र का महत्व, धारण करने की विधि व नियम...
इसलिए की जाती अनंत की पूजा
पौराणिक कथा अनुसार, श्रीहरि द्वारा सृष्टि के आरंभ में चौदह लोकों की रचना की गई थी। इनमें तल, अतल, तलातल, रसातल, वितल, सुतल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, सत्य, मह, जन, तप शामिल होते हैं। इन लोकों की रचना के बाद इनकी सुरक्षा के लिए भगवान विष्णु 14 रूपों में प्रकट हुए। वे इस दौरान अनंत प्रतीत होने लगे थे। इसलिए अनंत चतुर्दशी के दिन विष्णु भगवान के अनंत, ऋषिकेश, पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, नारायण, दामोदर, मधुसूदन, वामन, केशव और गोविन्द स्वरूप की पूजा की जाती है।
14 गांठ वाले अनंत सूत्र का महत्व
अनंत चतुर्दशी के जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा करके 14 गांठ वाले अनंत सूत्र धारण किया जाता है। ये 14 गांठ वाला सूत्र श्रीहरि के बनाए 14 लोकों का प्रतीक माने जाते हैं। मान्यता है कि इस अनंत सूत्र को धारण करने से बुरी शक्तियों व शत्रुओं से बचाव रहता है।
चलिए जानते हैं अनंत सूत्र की पूजा विधि
. इस शुभ दिन पर सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें।
. फिर भगवान श्रीहरि की पूरी विधि से पूजा करें।
. अनंत चतुर्दशी कथा का पाठ करें।
. उसके बाद सूती धागे को हल्दी, केसर, कुमकुम आदि लगाकर उसमें 14 पवित्र गांठें लगाएं।
. तैयार हुए इस धागे को अनंता कहा जाता है।
. अनंता बनाने के दौरान श्रीहरि के 'अच्युताय नमः अनंताय नमः गोविंदाय नमः' मंत्र का जप करें।
. फिर प्रसाद के तौर पर इस अनंता को पुरुष दाहिनी बांह पर और महिलाएं बाहिनी बांह पर धारण करें।
अनंत सूत्र धारण करने के नियम
अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत सूत्र को धारण करने के बाद इसे रात्रि के समय उतारकर रख देते हैं। फिर अगली सुबह किसी नदी, सरोवर में इस धागे को विसर्जित किया जाता है। अगर यह कार्य ना किया जाए तो उस व्यक्ति को उस अनंता यानि अनंत सूत्र को अगले 14 दिनों तक पहनना पड़ता है। इसके अलावा जो लोग 14 दिनों के बाद भी इसे विसर्जन करने का कार्य नहीं कर पाते उन्हें अगील अनंत चतुर्दशी तक यानि पूरा साल इसे धारण करके रखना पड़ता है।