Acid Attack से झुलसीं Pragya Singh ने नहीं मानी हार, इलाज के दौरान ही ठान ली थी ये बात
punjabkesari.in Tuesday, Mar 08, 2022 - 05:39 PM (IST)
रोककर देख लिया, वार करके भी देख लिया तुमने... लेकिन मैं वो हिम्मत की आग हूं जो हारने के लिए हराने के लिए बनी हूं' एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी Pragya Prasun Singh पर ये लाइनें बिल्कुल फिट बैठती है।
भारत में आज भी एसिड अटैक जैसे अपराध खुलेआम होते हैं, जिसकी ज्यादातर शिकार लड़कियां ही होती हैं। भले ही इसमें अपराधी को कठोर दंड मिल जाए लेकिन पीड़िता के ना सिर्फ शरीर ही नहीं बल्कि मन पर भी कई घाव रह जाते हैं। एक वक्त के बाद जख्म शायद भर भी जाए लेकिन अंदर तक झकझोर देने वाला दर्द उम्र भर झेलना पड़ता है। एसिड सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की तरह ऐसी कई कहानियां है जिसे सुन आंखों से आंसू आ जाते हैं। हालांकि कई ऐसी भी महिलाएं भी है जो एसिड अटैक का शिकार हो चुकी पीड़ितों के लिए मिसाल बनी। उन्हीं में से एक है Pragya Prasun Singh, जिन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन्हें ऐसा दिन देखना पड़ेगा।
2006 का वो दिन जब बदली प्रज्ञा की जिंदगी
साल 2006 में प्रज्ञा वाराणसी से दिल्ली जा रही थी। वह ट्रेन की ऊपर वाली सीट पर लेटी हुई थी, जब रात को 2 बजे उनपर एसिड अटैक हुआ। महज 22 साल की उम्र में शादी होने के बाद सिर्फ 12 दिन के बाद उनसे बदला लिया गया, जिसका कारण था एक पुरानी रंजिश। प्रज्ञा बताती हैं कि वो आदमी उनसे उम्र में काफी बड़ा था इसलिए उन्होंने शादी से इंकार कर दिया। मगर, शादी से इंकार सुनकर वो इतना बौखला गया कि उसने उनके ऊपर तेजाब डाल दिया। ट्रेन में किसी को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। प्रज्ञा की स्किन जल रही है और धुंआ निकल रहा था।
इलाज के दौरान ही ठान लिया था कि...
प्रज्ञा को तुरंत हॉस्पिटल ले जाया गया, जहां उनका ट्रीटमेंट शुरू हुआ। जलती हुई स्किन की बदबू और दर्द को बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था। उनकी 15 से भी ज्यादा सर्जरी की गई और इस पड़ाव पर उनके पति व फैमिली ने उनका ना सिर्फ सपोर्ट किया बल्कि उनकी हिम्मत बनकर भी खड़े रहे। इलाज के दौरान उनकी एक आंख की रोशनी कम हो रही थी, जिसके बाद उन्हें चेन्नई ले जाया गया।
एसिड सर्वाइवर्स की बनीं दोस्त
प्रज्ञा बताती हैं कि इलाज के दौरान उन्होंने कई बर्न केस देखें। लोग अपनी जिंदगी से हार मान चुके होते थे। प्रज्ञा ने कहा, "लोग डॉक्टर से कहते थे, मुझे दवा दे दो, मुझे मार दो.. मुझसे दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा। मुझे समझ नहीं आता था कि मैं कैसे उन्हें बचा लूं, उन्हें समझाऊं कि उन्हें इससे बाहर निकलना है। उस वक्त मैं भी उसी तकलीफ से गुजर रही थी इसलिए मुझसे उनका दर्द बर्दाश्त नहीं होता था। मैं खुद बेड पर रहती थी लेकिन मेरी कोशिश होती थी कि दूसरे पेशेंट के पास जाकर उनसे बात करूं और उन्हें मोटिवेट करूं। जितने समय मेरा इलाज चल रहा था मैं सबसे दोस्ती करती थी और उन्हें मोटिवेट करती थी।"
ऐसी शुरू की अतिजीवन फाउंडेशन
प्रज्ञा धीरे-धीरे रिकवर कर रही थी और इलाज के दौरान वह दूसरी लड़कियों को बताती थी कि कहां से सर्जरी करवानी चाहिए। उन्होंने बताया, 'लड़कियां मुझसे कहती थी कि दीदी हम वहां कैसे जाएं? वहां बहुत पैसे लगते हैं, हमारे घरवाले इतने पैसे नहीं देंगे'। प्रज्ञा बताती हैं कि डॉक्टरों ने फाउंडेशन खोलने के लिए उन्हें काफी मोटिवेट किया क्योंकि वह काफी कुछ जानती थीं। उन्होंने कहा कि प्रज्ञा तुम फाउंडेशन शुरू करो हम तुम्हें सपोर्ट करेंगे।
बस फिर क्या... साल 2013 में उन्होंने 'अतिजीवन फाउंडेशन' की शुरूआत हुई। बता दें कि प्रज्ञा की फाउंडेशन में सिर्फ एसिड अटैक ही नहीं बल्कि किसी भी तरह से जले हुए शख्स की मुफ्त सर्जरी की जाती है। उनकी ज्यादातर सर्जरी चेन्नई में की जाती है। वह पेशेंट की हर जरूरत का ध्यान रखती हैं। उनकी फाउंडेशन में लड़कियों को मेकअप की ऐसी तकनीक भी सिखाई जाती है, जिससे चेहरे के दाग छिप जाते हैं। इसके अलावा महिलाओं का हौंसला बढ़ाने के लिए प्रज्ञा कई वर्कशॉप भी आयोजित करवाती हैं। प्रज्ञा स्किन डोनशन को बढ़ावा देना चाहती हैं, ताकि एसिड अटैक सर्वाइवर्स को मदद मिल सके।
'नारी शक्ति पुरस्कार' से सम्मानित
आज प्रज्ञा अपनी 2 बेटियों व पति के साथ बैंगलोर में रहती हैं। उनका कहना है कि इस दौरान अपने पति ने उनका सबसे ज्यादा सपोर्ट किया और पति व परिवार की हिम्मत से ही आज वो इस मुकाम तक पहुंच पाईं है। इस नेक काम के लिए प्रज्ञा को साल 2019 में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों 'नारी शक्ति पुरस्कार' से भी सम्मानित किया जा चुका है।