रेबीज के मरीज को क्यों लगने लगता है पानी से डर, क्या है इसका कारण?

punjabkesari.in Thursday, Aug 14, 2025 - 11:36 AM (IST)

नारी डेस्क: रेबीज एक बेहद खतरनाक और जानलेवा बीमारी है जो वायरस से फैलती है। यह आमतौर पर उस वक्त फैलती है जब कोई संक्रमित जानवर इंसान को काट लेता है या उसकी लार किसी खुले घाव में चली जाती है। भारत में रेबीज के ज़्यादातर मामले कुत्तों के काटने से सामने आते हैं, लेकिन इसके अलावा बिल्ली, चमगादड़, लोमड़ी या रैकून जैसे जानवर भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। एक बार जब यह वायरस शरीर में पहुंच जाता है, तो यह धीरे-धीरे हमारे नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र पर असर डालता है और अंत में दिमाग तक पहुंच कर जानलेवा साबित होता है।

रेबीज के मरीज को पानी से डर क्यों लगने लगता है?

रेबीज के मरीजों में एक खास और गंभीर लक्षण देखने को मिलता है  जिसे "हाइड्रोफोबिया" कहते हैं। हाइड्रोफोबिया का मतलब होता है पानी से डर। लेकिन यह डर कोई मानसिक या भावनात्मक डर नहीं होता, बल्कि यह शारीरिक प्रतिक्रिया होती है। जब रेबीज का वायरस गले और सांस से जुड़ी मांसपेशियों पर असर डालता है, तो मरीज को पानी पीने की कोशिश करने पर तेज ऐंठन होने लगती है। यह ऐंठन इतनी तकलीफदेह होती है कि मरीज केवल पानी देखने, उसकी आवाज़ सुनने या उसके बारे में सोचने भर से ही घबरा जाता है। इसलिए उसे पानी से डर लगने लगता है, भले ही उसे कितनी भी तेज प्यास क्यों न लगी हो।

संक्रमण कैसे फैलता है?

रेबीज वायरस जानवर की लार के ज़रिए इंसान में प्रवेश करता है। जब कोई संक्रमित जानवर इंसान को काटता है, खरोंचता है, या उसकी लार किसी कटे-फटे हिस्से पर लग जाती है, तो वायरस शरीर में घुस जाता है। यह वायरस धीरे-धीरे नसों के ज़रिए दिमाग की ओर बढ़ता है और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने लगता है। इसलिए रेबीज के लक्षण अचानक नहीं आते, बल्कि कुछ दिनों या हफ्तों बाद धीरे-धीरे सामने आते हैं।

रेबीज के लक्षण – कब समझें कि खतरा बढ़ रहा है?

शुरुआत में रेबीज के लक्षण काफी सामान्य होते हैं जैसे कि हल्का बुखार, सिर दर्द, थकान और जानवर के काटे गए हिस्से पर जलन या खुजली होना। लेकिन जैसे-जैसे वायरस दिमाग की ओर बढ़ता है, लक्षण गंभीर होने लगते हैं। मरीज को निगलने में दिक्कत होती है, गले की मांसपेशियों में तेज ऐंठन होती है, सांस लेने में परेशानी होती है, और कई बार मरीज भ्रम में रहने लगता है या अजीब व्यवहार करने लगता है। हाइड्रोफोबिया यानी पानी से डर इस अवस्था का सबसे प्रमुख और खतरनाक संकेत होता है।

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इलाज संभव है लेकिन सिर्फ समय पर – देर की तो मौत तय है

अगर किसी को रेबीज के लक्षण जैसे हाइड्रोफोबिया दिखने लगते हैं, तो उसका इलाज लगभग नामुमकिन हो जाता है और उसकी जान बचाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसलिए सबसे जरूरी है कि जैसे ही कोई जानवर काटे, तुरंत सही कदम उठाए जाएं। सबसे पहले घाव को साबुन और पानी से कम से कम 15 मिनट तक धोना चाहिए। इसके बाद एंटी रेबीज वैक्सीन की पूरी डोज़ लेनी चाहिए। कई मामलों में डॉक्टर इम्यूनोग्लोब्यूलिन का इंजेक्शन भी देते हैं, जो वायरस को शरीर में फैलने से रोकता है। इसे मेडिकल भाषा में "पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस" (PEP) कहा जाता है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश – क्यों लिया गया सख्त फैसला?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर में सभी आवारा कुत्तों को 8 हफ्तों के अंदर शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया है। कोर्ट का मानना है कि चाहे कुत्ते नसबंदीशुदा हों या नहीं, सड़कों पर उनका खुलेआम घूमना लोगों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है, खासकर रेबीज जैसे जानलेवा संक्रमण के मामले में। ये आदेश लोगों को कुत्तों के काटने और उसके बाद होने वाले संक्रमण से बचाने के लिए दिया गया है।

क्या जानवरों के अधिकारों का हो रहा है हनन?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसलों में यह भी कहा है कि कुत्तों को अंधाधुंध मारा नहीं जा सकता है। सभी कार्य मौजूदा कानूनों के दायरे में रहकर ही किए जाने चाहिए। इस वजह से लोगों की राय इस फैसले को लेकर बंटी हुई है। कुछ लोग इसे पब्लिक सेफ्टी के लिए जरूरी कदम मानते हैं, जबकि कुछ लोग इसे जानवरों के अधिकारों का उल्लंघन कह रहे हैं।

 समय पर इलाज और संतुलित नीति ही है समाधान

रेबीज एक ऐसी बीमारी है जिसमें समय पर इलाज ही जान बचा सकता है। इसलिए जागरूकता सबसे बड़ी ज़रूरत है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी इस दिशा में एक गंभीर कोशिश है कि इंसानों और जानवरों के बीच एक सुरक्षित और संतुलित रिश्ता बनाया जाए। समाज को दोनों के हितों को समझते हुए आगे बढ़ने की जरूरत है।  


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Content Editor

Priya Yadav

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