मुसलमान ईसा को मानते हैं, फिर भी क्रिसमस क्यों नहीं मनाते? जानें असली वजह

punjabkesari.in Thursday, Dec 04, 2025 - 01:10 PM (IST)

नारी डेस्क : हर साल 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में क्रिसमस का जश्न मनाया जाता है। यह त्योहार ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन एक सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है। जब मुसलमान भी ईसा को मानते हैं, तो वे क्रिसमस क्यों नहीं मनाते? इस सवाल का जवाब धार्मिक मान्यताओं और इस्लामी शिक्षाओं में गहराई से छिपा है। आइए जानते है मुसलमान ईसा को मानते हैं, फिर भी क्रिसमस क्यों नहीं मनाते।

मुसलमान ईसा को मानते हैं पर कैसे?

इस्लाम में ईसा (अलैहिस्सलाम) को एक महान और सम्मानित पैगंबर माना गया है। मुसलमान उन्हें ईश्वर का पुत्र नहीं, बल्कि अल्लाह के बंदे और उनकी तरफ से भेजे गए दूत के रूप में मानते हैं। कुरान में उनके चमत्कार, उनकी शिक्षा और उनकी पवित्रता का विशेष उल्लेख मिलता है। दूसरी ओर, ईसाई धर्म में ईसा को ईश्वर का पुत्र माना जाता है। यही धार्मिक अंतर यह स्पष्ट करता है कि क्रिसमस, जो ईसा के जन्म को ईश्वर के पुत्र के रूप में मनाता है, मुसलमानों का धार्मिक पर्व नहीं माना जाता—हालांकि मुसलमान ईसा (अलैहिस्सलाम) का सम्मान अवश्य करते हैं।

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मुसलमान क्रिसमस क्यों नहीं मनाते?

इस्लाम एकेश्वरवाद (तौहीद) पर आधारित है

इस्लाम में अल्लाह की एकता पर सबसे ज्यादा जोर है। इस्लाम के अनुसार, अल्लाह न तो किसी को जन्म देता है और न ही उससे कोई जन्मा है। इसी वजह से मुसलमान ईसा को ईश्वर का पुत्र मानने वाले त्योहारों में शामिल नहीं होते।

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क्रिसमस ईसा की ‘दिव्यता’ का जश्न है, जिसे इस्लाम स्वीकार नहीं करता

क्रिसमस सिर्फ जन्मदिन नहीं, बल्कि ईसा की दिव्य शक्ति और ‘गॉड द सन’ की मान्यता से जुड़ा है। यह वह विचार है जिसे इस्लाम स्वीकार नहीं करता, इसलिए मुसलमान क्रिसमस को धार्मिक रूप से नहीं मनाते।

पैगंबरों के जन्मदिन मनाने की परंपरा इस्लाम में नहीं है

इस्लाम में न तो पैगंबर ईसा (अलैहिस्सलाम) का जन्मदिन मनाने का कोई उल्लेख है और न ही पैगंबर मुहम्मद ने अपना जन्मदिन मनाया। पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं और सुन्नत के अनुसार, धार्मिक मामलों में किसी प्रकार के नवाचार (बिदअत) को समर्थन नहीं दिया जाता। यही वजह है कि मुसलमान धार्मिक दृष्टि से पैगंबरों के जन्मदिनों को उत्सव के रूप में नहीं मनाते।

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ईसाइयों जैसी धार्मिक प्रथाओं की नकल करने से मना किया गया है

नबी Jesus Christ को पैगंबर मानने के बावजूद, मुसलमानों को ईसाइयों की धार्मिक प्रथाओं की हूबहू नकल करने से मना किया गया है। यही कारण है कि क्रिसमस जैसी धार्मिक गतिविधियों में मुसलमान धार्मिक रूप से शामिल नहीं होते।

मुसलमानों के अपने धार्मिक त्योहार हैं

इस्लाम में दो मुख्य त्योहार हैं। ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा। ये दोनों त्योहार इस्लामी कैलेंडर, कुरान और पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं के अनुसार मनाए जाते हैं। मुसलमान इन्हें धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण पर्व मानते हैं और इन्हीं के माध्यम से अपनी आस्था और धार्मिक परंपराओं का पालन करते हैं।

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क्या मुसलमान शुभकामनाएं दे सकते हैं?

इस विषय पर विद्वानों के मत अलग-अलग हैं।
कुछ विद्वान मानते हैं कि धार्मिक अर्थ वाली बधाई देना सही नहीं है और इससे परहेज़ करना चाहिए।
वहीं, अन्य विद्वान यह कहते हैं कि सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए “Happy Holidays” जैसी बधाई दी जा सकती है, बशर्ते इसमें किसी धार्मिक मान्यता का समर्थन शामिल न हो।

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मुसलमान ईसा को पैगंबर के रूप में मानते हैं। लेकिन क्रिसमस नहीं मनाते क्योंकि यह ईसा की दिव्यता और ईश्वर के पुत्र होने के विश्वास से जुड़ा त्योहार है।
इस्लाम में पैगंबरों के जन्मदिन मनाने की परंपरा नहीं है। मुसलमान अपने खास त्योहारों—ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा—को ही धार्मिक रूप से मनाते हैं।


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Monika

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