शास्त्र के अनुसार श्राद्ध कौन कर सकता है बेटा या बेटी, जानें धार्मिक मान्यता
punjabkesari.in Wednesday, May 07, 2025 - 05:15 PM (IST)

नारी डेस्क: हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसके अंतिम संस्कार के बाद एक विशेष कर्म किया जाता है, जिसे श्राद्ध कहा जाता है। यह एक धार्मिक परंपरा है, जिसका उद्देश्य मृत आत्मा की शांति और मुक्ति सुनिश्चित करना होता है। श्राद्ध के दौरान पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज, और पंचबलि कर्म जैसे विधानों का पालन किया जाता है।
श्राद्ध क्यों किया जाता है?
शास्त्रों के अनुसार, श्राद्ध करने से मृतक की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है। अगर श्राद्ध नहीं किया जाता है, तो यह माना जाता है कि आत्मा भटकती रहती है और उसे मोक्ष नहीं मिल पाता। इसलिए श्राद्ध को धर्म, परंपरा और आत्मा की मुक्ति से जोड़कर देखा जाता है।
क्या महिलाएं पिंडदान कर सकती हैं?
परंपरागत रूप से श्राद्ध और पिंडदान पुरुषों द्वारा किया जाता है विशेष रूप से पुत्र या परिवार के पुरुष सदस्य इसे करते हैं। लेकिन आज के समय में यह सवाल भी उठता है कि क्या महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं? इस विषय पर धार्मिक ग्रंथों में कुछ स्थितियों में महिलाओं को भी यह अधिकार दिया गया है।
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कौन कर सकता है श्राद्ध?
पिता की मृत्यु होने पर कौन करेगा श्राद्ध?
यदि किसी व्यक्ति के पिता की मृत्यु होती है, तो उसका पुत्र श्राद्ध करता है। यदि एक से अधिक पुत्र हैं, तो सबसे बड़ा बेटा श्राद्ध करता है। अगर बड़ा बेटा नहीं है तो छोटा बेटा भी यह कर्म कर सकता है। यदि सभी भाई अलग-अलग रहते हैं तो सभी को अलग-अलग श्राद्ध करना चाहिए।
पुत्र नहीं हो तो कौन करेगा श्राद्ध?
अगर मृत व्यक्ति का कोई पुत्र नहीं है तो ये लोग श्राद्ध कर सकते हैं पौत्र (पोता), प्रपौत्र (पोते का बेटा), पत्नी, भाई, दामाद (बेटी का पति), भतीजा, पिता, मां, बहू (पुत्रवधू), बहन, भांजा (बहन का बेटा), इन सभी को कुछ परिस्थितियों में श्राद्ध करने का अधिकार होता है।
अगर पितृ पक्ष से कोई नहीं है तो?
विष्णु पुराण के अनुसार, अगर पितृ पक्ष (पिता की ओर के रिश्तेदार) में कोई भी नहीं है तो मातृ पक्ष (मां की ओर के रिश्तेदार) को भी श्राद्ध करने का अधिकार है।
पिंडदान कौन कर सकता है?
पिंडदान श्राद्ध का एक प्रमुख हिस्सा है, जिसमें मृत व्यक्ति की आत्मा को अन्न और जल अर्पित किया जाता है। पिता का पिंडदान करने का प्राथमिक अधिकार बेटे का होता है। यदि बेटा नहीं है तो पत्नी यह कर्तव्य निभा सकती है। अगर पत्नी भी नहीं है तो सहोदर भाई (एक ही माता-पिता से जन्मा भाई) पिंडदान कर सकता है।
महिलाओं को पिंडदान का अधिकार: क्या कहता है शास्त्र?
हालांकि परंपरा में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है लेकिन धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों में यह कहीं नहीं लिखा कि महिलाएं श्राद्ध या पिंडदान नहीं कर सकतीं। विशेष परिस्थितियों में, जब कोई पुरुष सदस्य उपलब्ध न हो, तो महिला सदस्य भी यह कर्म कर सकती हैं। आज के समय में कई जगहों पर महिलाएं श्राद्ध और पिंडदान कर रही हैं, विशेषकर जब वह मृतक की सबसे करीबी या उत्तराधिकारी होती हैं।
श्राद्ध केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक आत्मिक जिम्मेदारी है। परंपराओं का पालन करते हुए, समय और परिस्थिति के अनुसार उनमें बदलाव भी जरूरी होता है। धार्मिक नियमों में लचीलापन है, जो बताता है कि जब पुरुष सदस्य न हों, तो महिलाएं भी श्रद्धा और नियमपूर्वक यह कर्म कर सकती हैं।