वर्ल्ड थैलेसीमिया डे: जन्म से होती है यह बीमारी, पेरेंट्स रहें सतर्क
punjabkesari.in Friday, May 08, 2020 - 10:48 AM (IST)
हर साल 8 मई को पूरी दुनियाभर में विश्व थैलीसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) मनाया जाता है। इसका मकसद लोगों को रक्त संबंधी इस गंभीर बीमारी यानि थैलीसीमिया के प्रति जागरुक करना है। आकड़ों के मुताबिक, देश के 5 करोड़ लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं लेकिन बावजूद इसके लोगों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह एक जेनेटिक रोग है जो बच्चों को माता-पिता से मिलता है। इस बीमारी के कारण शरीर में खून की कमी होने लगती है। इससे पीड़ित बच्चे को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है और ऐसा नहीं करने से उसकी मौत हो सकती है।
क्या है थैलासीमिया?
थैलासीमिया खून से संबंधित जेनेटिक बीमारी है। आमतौर पर एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रेड ब्लड सेल्स की संख्या 45 से 50 लाख प्रति घन मिली मीटर होती है। जबकि थैलीसिमिया से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में इनकी उम्र सिमटकर मात्र 20 दिनों की हो जाती है। दरअसल, इसमें रेड ब्लड सेल्स तेजी से नष्ट होने लगते हैं और नए बनते नहीं। इसके चलते शरीर में खून की कमी होने लगती है और धीरे-धीरे आप अन्य बीमारियों का शिकार होने लगता है। थैलेसीमिया के पीड़ित व्यक्ति को महीने में 1 बार रक्त चढ़वाना बेहद जरूरी हो जाता है।
थैलेसीमिया होने का कारण?
यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है और यह माता-पिता में से एक के या दोनों के जींस में गड़बड़ी होने के कारण होता है। खून में हीमोग्लोबीन दो तरह के प्रोटीन से बनता है। यह दो प्रोटीन अल्फा और बीटा हैं। इन दोनों में से किसी प्रोटीन के निर्माण वाले जींस में गड़बड़ी होने पर इस रोग का खतरा होता है।
थैलेसीमिया के प्रकार
माइनर थैलेसीमिया
यह रोग उन बच्चों को होता है जिनके माता या पिता में से किसी एक के जीन में गड़बड़ी होती है। इससे पीड़ित बच्चों में लक्षण कम नजर आते हैं। कुछ रोगियों में खून की कमी या एनीमिया इसके लक्षण हो सकते हैं।
मेजर थैलेसीमिया
यह रोग उन बच्चों को होता है जिनके माता-पिता दोनों के जीन में गड़बड़ी होती है। इसके लक्षणों में नाखून और जीभ पीले पड़ जाना, बच्चे के गाल और जबड़े में असमानता, बच्चों की ग्रोथ रुकना, चेहरा सूखना, वजन ना बढ़ना, कमजोरी और हमेशा बीमार रहना शामिल हैं।
थैलीसीमिया के लक्षण
यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर है इसलिए जन्म के छह महीने बाद ही बच्चों में ये लक्षण तेजी से दिखने लगते हैं।
नाखून और जीभ में पीलापन
बच्चे की ग्रोथ रुक जाना
वजन ना बढ़ना
कमजोरी और कुपोषण
सांस लेने में तकलीफ
थकान रहना
चेहरे की हड्डी की विकृति
धीमी गति से विकास
पेट की सूजन
गहरा व गाढ़ा मूत्र
जबड़े या गाल असामान्य नजर आना
थैलीसीमिया का उपचार
इसका इलाज थैलेसीमिया की स्टेज पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर इससे पीड़ित व्यक्ति को विटामिन, आयरन, सप्लीमेंट्स और संतुलित आहार लेने की सलाह दी जाती है। जबकि गंभीर स्थिति में रक्त बदलने, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बोनमैरो ट्रांसप्लांट) और पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी का सहारा लिया जाता है। इसके साथ ही थालीसीमिया में व्यक्ति को अपनी डाइट का भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
-कम वसा, हरी पत्तेदार सब्जियां
-अधिक से अधिक आयरन युक्त फूड्स का सेवन
-मछली और नॉनवेज चीजों का सेवन
-नियमित योग और व्यायाम करना
-नियमित अपने खून की जांच कराना
-जेनेटिक टेस्ट कराना
-शिशु के जन्म से पहले ही रक्त जांच कराना
कैसे करें बचाव?
बच्चा थैलेसीमिया रोग के साथ पैदा ही न हो, इसके लिए शादी से पूर्व ही लड़के और लड़की की खून की जांच जरूरी है। अगर शादी हो भी गई है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते में DNA जांच करवाएं। ऐसा करके काफी हद तक बच्चों को इस रोग से बचाया जा सकता है।