इन व्यंजनों से मिलकर तैयार होता है  56 भोग, भगवान कृष्ण को सबसे पहले किसने लगाया था प्रसाद ?

punjabkesari.in Wednesday, Aug 13, 2025 - 06:10 PM (IST)

नारी डेस्क:  कृष्ण भक्तों का साल भर का लंबा इंतजार खत्म होने वाला है, जन्माष्टमी का पावन पर्व जो आ रहा है। इस दिन को खास बनाने के लिए कई दिन पहले ही तैयारियां शुरू हो जाती है। जन्माष्टमी के पावन पर्व पर कई प्रसिद्ध मंदिरों में भगवान कृष्ण को 56 भोग  लगाए जाते हैं। मान्यता है कि 56 भोग न लगाने से साधक शुभ फल की प्राप्ति से वंचित रहता है। आज हम बताते हैं इससे जुड़ी कुछ खास बातें। 

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द्वापर युग की कथा

द्वापर युग में ब्रजवासियों की परंपरा थी कि वे हर साल इन्द्र देव की पूजा करते थे ताकि वर्षा ठीक हो। श्रीकृष्ण ने समझाया कि वर्षा तो प्रकृति का चक्र है, इसके लिए पर्वत, जंगल और गोवंश का आभार मानना चाहिए। उन्होंने ब्रजवासियों से कहा कि इन्द्र पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। इन्द्र को यह बात बुरी लगी और उन्होंने मूसलधार बारिश शुरू कर दी, जिससे पूरा गांव डूबने लगा। श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और 7 दिन तक ब्रजवासियों और पशुओं को उसके नीचे शरण दी।


56 भोग की शुरुआत

उस समय 7 दिन तक ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत के नीचे ही रहे। चूंकि श्रीकृष्ण पर्वत उठा रहे थे, वे भोजन नहीं कर पाए। जब बारिश थमी, तो सभी गोप-गोपियों ने 7 दिन का “छूटा हुआ भोजन” एक साथ उन्हें अर्पित किया। श्रीकृष्ण दिन में 8 बार भोजन करते थे (सुबह से रात तक – अष्ट भोग)।  ऐसे में कान्हा को 7 दिनों के लिए हर दिन 8 प्रकार के व्यंजन अर्पित किए, जिससे कुल 56 व्यंजन हो गए। तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि भगवान को 56 प्रकार के पकवान अर्पित किए जाएं।

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56 भोग में क्या-क्या होता है?

इसमें मीठे, नमकीन, फल, अनाज, पेय, मिठाइयाँ, नमकीन स्नैक्स, दालें, चावल, रोटियाँ, पापड़, मिष्ठान, और दूध-दही से बने व्यंजन शामिल होते हैं। हर क्षेत्र में इसकी सूची थोड़ी बदलती है, लेकिन मूल भावना यही है कि भगवान को स्वाद और प्रेम से भरे सभी प्रकार के व्यंजन अर्पित हों। 56 भोग केवल खाने की विविधता नहीं, बल्कि भक्ति और आभार का प्रतीक है। इसका मतलब है – “हे प्रभु! हमारे जीवन के हर स्वाद और हर क्षण को हम आपकी सेवा में समर्पित करते हैं।”
 


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Content Writer

vasudha

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