चंद्रयान-3 से पहले अंधेरे में डूबा चांद का South Pole, जानिए Scientific कारण
punjabkesari.in Wednesday, Aug 23, 2023 - 04:26 PM (IST)
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का मिशन चंद्रयान 3 अब से कुछ ही घंटों में यानी की शाम 05:30 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला है। यदि चंद्रयान 3 दक्षिणी ध्रुव की सतह पर आराम से उतरने में कामयाब होता है यह अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की ओर से बहुत ही बड़ी उपलब्धि होगी। क्योंकि अभी तक दुनिया का ऐसा कोई भी देश नहीं है जिसने चांद के हिस्से पर सॉफ्ट लैंडिग की हो। इसका कारण है इस जगह का विशेष बैकग्राउंड है। ये जगह चांद के उस हिस्से की तुलना में बहुत ही अलग और रहस्यमयी है। जहां पर अब तक दुनिया भर के देशों की तरफ से स्पेश मिशन भी भेजे गए हैं।
आखिर कितना है चांद का यह दक्षिणी ध्रुव
चंद्रमा की ओर से भेजे गए ज्यादातर मिशन चांद की सिर्फ भूमध्यरेखीय क्षेत्र में पहुंचे हैं जहां की जमीन दक्षिणी ध्रुव की तुलना में सीधी है। वहीं चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कई ज्वालामुखी हैं जिसके चलते यहां की जमीन बहुत ही ऊबड़ खाबड़ है। चंद्रयान 3 ने भी चांद की जो एक तस्वीर भेजी है इसमें गहरे गड्ढे और उबड़ खाबड़ जमीन दिख रही है। चांद के दक्षिणी ध्रुव करीबन ढाई हजार किलोमीटर तक चौड़ा है और यह आठ किलोमीटर गहरे गड्ढे के किनारे पर स्थित है जिसे सौरमंडल का बहुत पुराना इंपेक्ट क्रेटर भी माना जाता है।
दक्षिणी ध्रुव की ओर ही क्यों बढ़ रहे हैं बाकी देश?
वहीं नासा ने यह भी बताया कि इस समय कई सारे आधुनिक सेंसर मौजूद हैं लेकिन इस ऊबड़ खाबड़ जमीन और रोशनी से जुड़ी परिस्थितियों के कारण चंद्रमा की दक्षिणी ध्रुव पर उतरे इस यान के लिए जमीनी की परिस्थितियों का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा इसके अलावा कुछ सिस्टम बढ़ते और घटते तापमान के कारण भी हो रहा है। चंद्रमा सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि रुस और चीन की अंतरक्षि एजेंसियों के लिए भी एक चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि रुस ने चंद्रयान 3 के बाद ही अपना अभियान लूना 25 को चांद की ओर भेजा था। लूना 25 को भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ही लैंड करना था परंतु लूना 25 पिछले हफ्ते नियंत्रण से बाहर होने के कारण चांद की सतह पर क्रैश हो गया।
ये भी है एक बड़ा कारण
रिपोर्ट्स की मानें चीन में भी आने वाले समय में चंद्रमा के लिए एक अभियान शुरु करने वाला है। चीन का चांगेय 4 साल 2019 में चंद्रमा की न दिखने वाली सतह पर भी जा चुका है। भारत भी चंद्रयान 3 और चंद्रयान 4 के बाद साल 2026 में जापान के साथ मिलकर एक ज्वाइंट पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन पर काम करने वाला है। इसका मक्सद चांद के अंधेरे में डूबे हुए हिस्सों के बारे में जानकारी निकालना होगा। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सारे देश चंद्रमा के उस हिस्से तक पहुंचने का ही क्यों प्रयास कर रहे हैं जहां पर जाना बहुत बड़ा जोखिम है। विशेषज्ञों की मानें तो इसका मुख्य कारण पानी की मौजूदगी भी है। नासा का अंतरिक्ष यान लूनर रिकानसंस ऑर्बिटर की ओर से जुटाए गए आंकड़ों की मानें तो चंद्रमा पर मौजूद अंधेरों में डूबे गहरे गड्ढों में बर्फ भी मौजूद है।
कमाई का मिलेगा नया मौका
एक्सपर्ट्स की मानें तो चांद में अंतराष्ट्रीय स्पेस एजेंसियों की रुचि के लिए चांद की सतह के नीचे पानी तलाशने से ज्यादा कुछ और व्यवहारिक कारण भी है। दुनिया के कई सारे देश चंद्रमा पर इंसानों को भेजने का प्लान भी बना रहे हैं हालांकि इंसान को चंद्रमा पर रहने के लिए पानी का जरुरत भी होगी और धरती से चंद्रमा तक पानी पहुंचाना एक बहुत ही महंगा काम पड़ेगा। क्योंकि धरती से एक किलोग्राम सामान बाहर लेकर जाने की कीमत ही करीबन एक मिलियन डॉलर है। ऐसे में प्रति लीटर पानी पीने की कीमत 1 मिलियन डालर बनती है। अंतरिक्ष क्षेत्र में आ रहे बिजनेसमैन निश्चित तौर पर चंद्रमा की बर्फ को ही अंतरिक्ष पर जाने वाले लोगों के देने का सोच रहे हैं। सिर्फ यही नहीं है पानी के मिनरल्स को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रुप में भी तोड़ा जा सकता है जिसका इस्तेमाल रॉकेट प्रोपेलेंट्स बनाने के लिए किया जाता है। परंतु इसके लिए पहले वैज्ञानिकों के यह जानना पड़ेगा कि चंद्रमा पर कितनी बर्फ मौजूद है। यह किस रुप में है और क्या इसे आसानी से निकाला जा सकता है और यदि इस पानी के तौर पर पिया जाए तो क्या यह साफ है।