Gender Equality: बच्चों को बचपन से ही सिखाएं बराबरी का सबक

punjabkesari.in Thursday, Jan 06, 2022 - 12:15 PM (IST)

"बराबरी तो दूर की बात है सर, फिलहाल हिस्सेदारी मिल जाए वही बहुत है…" रानी मुखर्जी की फिल्म "मर्दानी-2" के इस फेमस डायलॉग में भारतीय समाज की समस्या का सार छिपा है। बराबरी... कहने को तो आजकल लड़की और लड़के समानता मिल गई है लेकिन आज भी बहुत-सी चीजे हैं जहां दोनों में अंतर किया जाता है। लड़का-लड़की बराबर नहीं होते, ये सबक मां-बाप ना चाहते हुए भी बचपन से ही बच्चों को सिखा देते हैं। उदाहरण के तौर पर ... किचन के काम करने के लिए लड़कियों को ही बोला जाता है और बाजार से सामान लाना हो तो बेटों को आवाज दी जाती है।

कपड़ों से लेकर ऐसे बहुत-से छोटे-मोटे काम लड़के-लड़कियों के हिस्से में डालकर हम बहुत आसानी से बच्चों को डिफरेंस करना सीखा देते हैं, खासकर भारतीय माएं। औरतें घर का काम करना हो तो बेटी और बिजली का बिल का हिसाब का कोई काम करना हो तो बेटों से कहती हैं। फिर आप पत्नी अपने पति से लड़ती हैं कि तुम मुझे अपने बराबर समझते नहीं। जब औरतें खुद को और अपनी बेटी को लड़कों के बराबर नहीं समझती तो अपने बच्चों को बराबरी का पाठ कैसे पढ़ाएंगी।

खुद भी भरें बिल्स

भारत में 90% घर ऐसे हैं, जहां बिजली, पानी, पॉलीसी की किस्त या गैस बिल भरने के लिए महिलाएं घर के पुरुषों पर निर्भर रहती हैं। ऐसे में बच्चों को संदेश चला जाता है कि ऐसे काम पापा ही कर सकते हैं, जो उनके बाद बेटों को करने पड़ेंगे। ऐसे में आप खुद बिजली के बिल भरना शुरू करें। आज के डिजिटल जमाने में तो यह काम और भी आसान हो गया है। इसे भरने के लिए आपको बाहर जाने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

सिर्फ बेटी ही क्यों बनाए चाय?

जब भी घर में कोई मेहमान आए तो बेटी को ही चाय बनाने के लिए आगे ना करें। इससे लड़के इसे लड़कियों का काम समझने लगते हैं और बड़े होने पर अपना बहन या शादी के बाद पत्नी को ही मेहमानों के लिए चाय बनाने को कहते हैं। इसकी बजाए बेटे व बेटी की बारी लगा दें। वैसे भी चाय बनने में 5 मिनट लगते हैं। बेटों को भी आत्मनिर्भर बनाएं। अगर बेटे कहीं बाहर पढ़ने जाते हैं तो यह उनके काम भी आएगा। वहीं, शादी के बाद वो अपनी पत्नी का हाथ बटांने भी शर्म महसूस नहीं करेंगे।

काम का बराबर बंटवारा करें

पोछा मारना, बर्तन धोना, टेबल साफ करना, भोजन के बाद बर्तन उठाना जैसे काम का बंटवारा कर दें। इसी तरह बाजार के कामों की भी बारी लगा दें।

गलती पर सॉरी बोलने का सबक

घर की महिलाएं, चाहे वह मां हो, बहन या पत्नी, जब पुरुष गुस्सा होते हैं तो महिलाएं उन्हें मनाकर खाना खिलाती हैं। अपनी गलती ना होते हुए भी माफी मांगती हैं। हालांकि यह अच्छी आदत है लेकिन ये आदत बेटे-बेटी दोनों को सिखाएं।

कपड़ों को लेकर रोक-टोक नहीं

अक्सर देखा जाता है कि मांएं बेटे पर तो तो किसी भी तरह के कपड़े पहनने पर रोक नहीं लगाती लेकिन लड़कियों को हमेशा ही एक मर्यादा में बांधा जाता है। इससे बेटे शादी के बाद पत्नी पर रोब डालते हैं कि उन्हें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए, उनकी लेंथ कितनी हो आदि। ऐसे में अगर आप बेटे को कपड़े पहनने की आजादी दे रही हैं तो दोनों को दें।

तो आज से ही घर व बाहरी काम में इस अंतर को खत्म करें और आने वाली पीढ़ी की सोच को एक नया रास्ता दें। सोच, काम, बातों… हर चीज में बेटों-बेटियों को बराबर बनाएं।


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Content Writer

Anjali Rajput

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