डूबने की कगार पर थी टाटा कंपनी, लेडी मेहरबाई ने बचाने के लिए गिरवी रखा था कोहिनूर से बड़ा हीरा
punjabkesari.in Tuesday, Jul 20, 2021 - 08:22 PM (IST)
ऐसा कौन सा काम है जो महिलाएं नहीं कर सकतीं। वर्तमान ही नहीं बीते वक्त में बहुत सारी ऐसी उदाहरणें हैं जो यह साबित करती हैं कि एक महिला जितनी बखूबी से घर से संभाल सकतीं हैं उतनी खूबसूरती से व्यापार भी। ऐसी ही एक महिला सशक्तिकरण की मिसाल पेश करने वाली प्रभावशाली महिला थी मेहरबाई टाटा , वो महिला जिसने टाटा समूह को अर्श से फर्श तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वो महिला, जिसने टाटा कंपनी को बचाने के लिए अपना बेशकीमती सामान गिरवी रख दिया था। क्या आप उनके बारे में जानते हैं कि वह कौन थी अगर नहीं तो चलिए इस पैकेज में आज उन्हीं के बारे में आपको बताते हैं।
टाट समूह के दूसरे अध्यक्ष सर दोराबजी टाटा की पत्नी थी मेहरबाई टाटा जिन्हें लोग लेडी मेहरबाई भी कहते हैं। 1879 में जन्मी मेहरबाई बेहद खुले विचारों से सोचती थीं। टाटा को डूबने से बचाने वाली भी वहीं महिला थी। बहुत से लोग उनके बारे में शायद ना जाते हो लेकिन उन्हें फर्स्ट इंडियन फैमिनिस्ट आइकन में से एक माना जाता है। बाल विवाह, महिला मताधिकार, लड़कियों की शिक्षा और पर्दा प्रथा तक को हटाने के लिए उन्होंने अपनी आवाज उठाई।
टाटा स्टील को पहचान दिलाने वाली लेडी मेहरबाई टाटा
टाटा स्टोरीज में हरीश भट बताते हैं कि कैसे लेडी मेहरबाई टाटा ने स्टील की दिग्गज कंपनी को बचाया था ।मेहरबाई के पास एक खूबसूरत हीरा था जो 245 .35 कैरेट का जुबिली हीरा प्रसिद्ध कोहिनूर से दोगुना बड़ा था। यह हीरा उन्हें अपने पति सर दोराबजी टाटा से तोहफे के रुप में मिला था। जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा ने इस हीरे को लंदन के व्यापारियों से खरीदा था लेडी मेहरबाई टाटा इन्हें खास मौकों पर ही पहनती थी खासकर जब प्लेटिनम चेन में जब वह पहनती थी तो इस बड़े हीरे को देखकर सब हैरान हो जाते थे। 1900 के दशक में इसकी कीमत लगभग 1,00,000 पाउंड थी।
टाटा स्टील को बचाने के लिए हीरा को रख दिया गिरवी
लेकिन साल 1920 के दशक में टाटा स्टील वित्तीय संकट के कगार पर पहुंच गया था उस समय इसे टिस्को कहा जाता था। दोराबजी टाटा को कुछ सूझ नहीं रहा था कि कंपनी को कैसे बचाया जाए। तभी मेहरबाई ने अपना जुबिली हीरा गिरवी रख धन इकट्ठा करने की सलाह दी थी पहले तो दोराबजी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था लेकिन बाद में उन्हें अपनी पत्नी की सलाह माननी पड़ी। धन जुटाने के लिए दोराबजी टाटा और मेहरबाई ने इस हीरो को इम्पीरियल बैंक में गिरवी रखा था। उस वक्त लेडी मेहरबाई के लिए कंपनी के कर्मचारी और कंपनी को बचाने के लिए जुबली डायमंड सहित अपनी पूरी निजी संपत्ति इम्पीरियल बैंक को गिरवी रख दी ताकि वे टाटा स्टील के लिए फंड जुटा सकें। हालांकि गहन संघर्ष के समय में एक भी कार्यकर्ता की छंटनी नहीं की गई थी। जल्द टाटा कंपनी में आई समस्या का समाधान हो गया और कंपनी फिर से समृद्ध हो गई। बाद में हीरे को बेच दिया गया और उस आय को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के निर्माण के लिए उपयोग किया गया, जो भारत में कई परोपकारी गतिविधियों में सबसे आगे रहा है। आज रतन टाटा, टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन हैं।
'हम ग्रेसफुल नहीं, यूजफुल होने आए हैं'
लेडी टाटा से जुड़े एक नहीं ऐसे कई किस्से हैं। वह कहती थी कि हम ग्रेसफुल नहीं, यूजफुल होने आए हैं। एक धनी परिवार में विवाहित होने के बावजूद वह सामाजिक कार्यों में दिलचस्पी रखती थी। समाज के सभी वर्गों के साथ संपर्क में रहती थी। एक दिलचस्प किस्सा और उनसे जुड़ा है जब मुंबई के भायखला के गरीब इलाके में रहने वाली महिलाओं को दंगों के कारण भोजन नहीं मिल पा रहा है, तो अपनी महिला सहयोगियों के साथ वह खुद भोजन और सब्जी लेकर पहुंच गई थी लेकिन महापौर ने उनके अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि आप प्रतिष्ठित महिलाएं है। आपको यह सब करना शोभा नहीं देता। इस पर लेडी टाटा ने शांत गरिमा के साथ जवाब दिया, 'हम महिलाएं यहां 'ग्रेसफुल' होने के लिए नहीं आईं, हम यहां 'यूजफुल' होने के लिए आए हैं।
जब पिता ने कहा था, मेरी नाम रख लो
मेहरबाई शुरु से ही आजाद सोच वाली महिला थी। उनके पिता एचजे भाभा, जो एक प्रोफेसर थे और बैंगलोर और फिर मैसूर में एक प्रख्यात शिक्षाविद् थे। उन्होंने ही मेहर को प्रगतिशील वेस्टर्न विचारों से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन जब पिता ने पश्चिमी फैशन के चक्कर में उनका नाम मेहर से मेरी करना चाहा तो मेहरबाई ने इससे इंकार कर दिया। उन्होंने अपना नाम मूल फारसी रुप से 'मेहरी' ही रहने पर जोर दिया जो बाद में मेहरबाई बन गई। इससे यह साफ प्रतीत होता है कि मेहरबाई किस प्रकार अपनी संस्कृति से प्यार करती थी। लेडी मेहरबाई टाटा भारत में भारतीय महिला लीग संघ की अध्यक्ष और बॉम्बे प्रेसीडेंसी महिला परिषद की संस्थापकों में से एक थीं। लेडी मेहरबाई के नेतृत्व में भारत को अंतरराष्ट्रीय महिला परिषद में शामिल किया गया था।
ओलंपिक में टेनिस खेलने वाली पहली भारतीय महिला थी मेहरबाई
टेनिस खेलने की शौकीन मेहरबाई ने टेनिस टूर्नामेंट में साठ से अधिक पुरस्कार जीते। ओलंपिक टेनिस खेलने वाली वह पहली भारतीय महिला थीं। सबसे दिलचस्प और अनोखी बात यह है कि उन्होंने अपने सभी टेनिस मैच पारसी साड़ी पहनकर खेले। बता दें कि खेल के प्रति
रुचि रखने वाली मेहरबाई कुशल पियानोवादक भी थी।
जेपलिन एयरशिप में सवार होने वाली पहली भारतीय महिला
उनके पति और उन्हें, अक्सर विंबलडन के सेंटर कोर्ट में टेनिस मैच देखते हुए देखा जाता था। टेनिस ही नहीं वह एक बेहतरीन घुड़सवार भी थी और 1912 में जेपेलिन एयरशिप पर सवार होने वाली पहली भारतीय महिला भी थी।
बाल विवाह अधिनियम बनाने में किया सहयोग
भारत में साल 1929 में बाल विवाह अधिनियम पारित किया है, जिसे सारदा एक्ट के नाम से भी जाना जाता है। इस अधिनियम को बनाने में मेहरबाई का भी सहयोग लिया गया था। वह लेडी टाटा ने भारत और विदेशों में छुआछूत और पर्दा व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह
भारत में महिलाओं की शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध थीं, और नेशनल काउंसिल ऑफ वीमेंस की संस्थापक भी रही।
अमेरिका में हिंदू विवाह अधिनियम पर भाषण
29 नवंबर 1927 को उन्होंने अमेरिका के मिशिगन में बैटल क्रीक कॉलेज (अब एंड्रयूज यूनिवर्सिटी) में हिंदू विवाह अधिनियम के पक्ष में बात की। उनके उत्साही भाषण ने दर्शकों को भारतीय संस्कृति और इतिहास के साथ-साथ रीति-रिवाजों और अज्ञानता का एक उत्कृष्ट अवलोकन प्रदान किया, जिसने देश में महिलाओं की प्रगति को बाधित कर रहा था। उनके नाम से ही जमशेदपुर में मेहरबाई टाटा मेमोरियल अस्पताल है जो पूर्वी भारत में कैंसर के सबसे अच्छे अस्पताल के रूप में जाना जाता है। महिलाओं की प्रगति के लिए उन्होंने एक अहम भूमिका अदा की।