चमत्कारी महामृत्युंजय मंत्र जपते समय जरूरी हैं ये सावधानियां, पहले जान लें जप विधि
punjabkesari.in Monday, Jul 15, 2024 - 12:13 PM (IST)
महामृत्युंजय मंत्र हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली मंत्र है, जिसे शिव जी की स्तुति में जपा जाता है। इसे "रुद्र मंत्र" और "त्रयम्बक मंत्र" के नाम से भी जाना जाता है। इस मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद और यजुर्वेद में किया गया है। माना जाता है कक इस मंत्र का जाप करने से उपचार, सुरक्षा और मृत्यु पर विजय प्राप्त होती है। चलिए जानते हैं इस शक्तिशाली मंत्र को जपने के फायदे और इससे जुड़े नियम
मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
अर्थ: हम उस त्रिनेत्रधारी शिव की आराधना करते हैं, जो सुगंधित और पुष्टिवर्धक हैं। वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर अमरता प्रदान करें, जैसे ककड़ी को उसके डंठल से मुक्त किया जाता है।
इस मंत्र के लाभ
स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा: माना जाता है कि यह मंत्र दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए जपा जाता है। यह बीमारी और दुर्घटनाओं से बचाने में सहायक माना जाता है।
भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति: यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जा, भय, और बुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने में सहायक है।
आध्यात्मिक उन्नति: यह मंत्र जपने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और व्यक्ति के अंदर शांति और संतुलन बना रहता है।
दुख और क्लेश से मुक्ति: इस मंत्र का नियमित जाप दुख, क्लेश और मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है।
आत्म-ज्ञान और ध्यान: यह मंत्र ध्यान और आत्म-ज्ञान के लिए बहुत उपयोगी है, जिससे मानसिक शांति प्राप्त होती है।
शर्तें और नियम
शुद्धता: इस मंत्र का जाप शुद्ध मन और शरीर से करना चाहिए। स्नान करके और साफ वस्त्र पहनकर मंत्र जपना अधिक प्रभावी माना जाता है।
संकल्प: मंत्र जप शुरू करने से पहले एक संकल्प लेना चाहिए कि किस उद्देश्य के लिए आप यह मंत्र जप रहे हैं।
स्थान और समय: किसी शांत और पवित्र स्थान पर मंत्र का जाप करना चाहिए। सुबह और शाम के समय को जप के लिए उपयुक्त माना जाता है।
माला का उपयोग: मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग करना शुभ माना जाता है। एक माला में 108 मनके होते हैं।
नियमितता: मंत्र का जाप नियमित रूप से करना चाहिए, और एक निश्चित संख्या में जप करने का संकल्प लेना चाहिए, जैसे 108 बार या 1008 बार।
शब्दों की शुद्धता: मंत्र के प्रत्येक शब्द का उच्चारण सही और स्पष्ट रूप से करना चाहिए।
एकाग्रता: जप करते समय मन को एकाग्र रखना चाहिए और अपनी समर्पण भावना को शिव जी के प्रति बनाए रखना चाहिए।
दिशा: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके मंत्र का जाप करना लाभकारी माना जाता है।