आज ही के दिन रानी लक्ष्मी बाई ने छोड़ी थी झांसी,  मणिकर्णिका की बहादुरी देख अंग्रेजों ने भी किया था सेल्यूट

punjabkesari.in Monday, Apr 04, 2022 - 10:14 AM (IST)

इतिहास में चार अप्रैल का दिन युद्ध की बड़ी घटना के साथ जुड़ा है। 1858 में चार अप्रैल के दिन अंग्रेजी सेना के खिलाफ भीषण संघर्ष के बाद झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को झांसी को छोड़ना पड़ा था। अंग्रेजों से डटकर लोहा लेने वाली लक्ष्मीबाई झांसी से निकलकर काल्पी पहुंचीं और फिर वहां से ग्वालियर रवाना हुईं।

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 रानी लक्ष्मीबाई ने जिस तरह अंग्रेजों का लोहा लिया उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा। शी के एक मराठी ब्राह्मण परिवार में जन्मी लक्ष्मीबाई 18 साल की कम उम्र में ही झांसी की शासिका बन गई थी। उनके हाथों में झांसी का साम्राज्य आ गया था। ब्रिटिश आर्मी के एक कैप्टन ह्यूरोज ने लक्ष्मी के साहस को देख उन्हें सुंदर और चतुर महिला कहा था। 

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मणिकर्णिका का ब्याह झांसी के महाराजा राजा गंगाधर राव नेवलकर से हुआ और देवी लक्ष्मी पर उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा। उन्होंने  केवल 29 साल की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से लोहा लिया। 4 अप्रैल 1858 को रानी भांडेर से होते हुए जैसे ही लोहागढ़ की सीमा में पहुंची, यहां के ग्रामीणों ने अंग्रेज सैनिकों का रास्ता रोक लिया। इसके बाद दोनों के बीच भयानक लड़ाई चली।

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 अंग्रेजों ने लोहागढ़ पर कब्जा करने के लिए हमला कर दिया, उधर रानी लक्ष्मी बाई कालपी के लिए सुरक्षित रवाना हो गई।  रानी एक ही दिन में कालपी पहुंच गई, जहां उन्हें नाना साहेब पेशवा, राव साहब और तात्या टोपे का साथ मिल गया। इसके बाद वे सभी ग्वालियर पहुंचे, जहां दोनों पक्षों में 17 जून को निर्णायक युद्ध हुआ। आमने-सामने की जंग में जख्मी रानी को एक गोली लगी और वह स्वर्णरेखा नदी के किनारे वह शहीद हो गईं। रानी की वीरता देख अंग्रेस कैप्टन ह्यूरोज ने शहादत स्थल पर उनको सैल्यूट किया था


 


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vasudha

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