घर गिरवी रख कराया लीवर ट्रांसप्लांट, पति-पत्नी दोनों की मौत, परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़

punjabkesari.in Sunday, Aug 24, 2025 - 09:41 AM (IST)

नारी डेस्क:  एक ओर जहां अंगदान को जीवन बचाने का सबसे बड़ा माध्यम माना जाता है, वहीं पुणे से सामने आई यह दिल दहला देने वाली घटना इस विश्वास को झकझोर देती है। अपने बीमार पति की जिंदगी बचाने के लिए एक पत्नी ने अपना लीवर दान किया, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। ट्रांसप्लांट के कुछ घंटों बाद पति की मौत हो गई, और उसके ठीक एक सप्ताह बाद डोनर बनी पत्नी ने भी दम तोड़ दिया। यह हादसा न सिर्फ एक परिवार के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक गहरी चोट बन गया है।

क्या था पूरा मामला?

पुणे के हडपसर इलाके में रहने वाले बापू बालकृष्ण कोमकर (49) एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करते थे। हाल ही में उनकी तबीयत बिगड़ने पर जांच करवाई गई तो पता चला कि उनका लीवर काफी खराब हो चुका है। डॉक्टरों ने जल्द से जल्द लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी।

जब डोनर की बात आई, तो उनकी पत्नी कामिनी कोमकर (42) ने बिना देर किए अपना लीवर दान करने का फैसला किया। सभी जरूरी जांचें हुईं और डॉक्टरों ने कहा कि कामिनी पूरी तरह स्वस्थ हैं और उनका लीवर बापू से मैच कर गया है। इसके बाद 15 अगस्त 2025 को सह्याद्री हॉस्पिटल में लीवर ट्रांसप्लांट किया गया।

पति की मौत, पत्नी को नहीं बताई सच्चाई

सर्जरी के कुछ ही घंटों बाद बापू की हालत अचानक बिगड़ गई और उनकी मौत हो गई। लेकिन डॉक्टरों और परिवार वालों ने कामिनी को यह बात नहीं बताई क्योंकि वह खुद सर्जरी के बाद ICU में भर्ती थीं और उनकी तबीयत भी बिगड़ रही थी।कामिनी को ट्रांसप्लांट के बाद हाइपोटेंशन (ब्लड प्रेशर गिरना), मल्टी-ऑर्गन फेलियर जैसी गंभीर समस्याएं होने लगीं। हालत लगातार खराब होती गई और पति की मौत के एक हफ्ते बाद कामिनी ने भी दम तोड़ दिया।

अस्पताल का बयान

सह्याद्री अस्पताल ने इस घटना को लेकर बयान जारी किया है। उन्होंने कहा “हम इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर गहरा दुख व्यक्त करते हैं। लिविंग डोनर लीवर ट्रांसप्लांट एक बेहद जटिल प्रक्रिया है। इस केस में मरीज पहले से ही हाई-रिस्क कैटेगरी में था। डोनर को भी सर्जरी से पहले सभी संभावित जोखिमों के बारे में जानकारी दी गई थी। ट्रांसप्लांट मेडिकल प्रोटोकॉल के अनुसार किया गया था।” अस्पताल के मुताबिक, बापू को कार्डियोजेनिक शॉक आया जिससे उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। कामिनी शुरू में ठीक थीं, लेकिन बाद में उन्हें हाइपोटेंसिव शॉक और मल्टी-ऑर्गन फेलियर हुआ, जिसे बचाना संभव नहीं हो सका।

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परिवार का दर्द और सवाल

कामिनी के भाई बलराज वाडेकर ने बताया कि उनकी बहन पूरी तरह स्वस्थ थीं, उन्हें कोई बीमारी नहीं थी – न डायबिटीज, न ब्लड प्रेशर। उनका कहना है कि डॉक्टरों ने ट्रांसप्लांट से पहले कहा था कि केवल 5% खतरा है, लेकिन फिर दोनों की मौत हो गई। बलराज ने यह भी बताया कि ट्रांसप्लांट का खर्च उठाने के लिए परिवार ने अपना घर गिरवी रख दिया था। इस सर्जरी पर लगभग 20 लाख रुपये खर्च हुए। दंपति के दो बच्चे हैं – एक बेटा (20 साल) जो कॉलेज में पढ़ता है, और एक बेटी जो 7वीं कक्षा में है।

अब क्या करेगा परिवार?

कामिनी के शव का पोस्टमॉर्टम सासून जनरल हॉस्पिटल में करवाया गया है। परिवार अब अस्पताल पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की तैयारी कर रहा है। साथ ही मेडिकल नेगलिजेंस की जांच के लिए कमेटी को दस्तावेज सौंपे जाएंगे।

यह घटना सिर्फ एक मेडिकल केस नहीं, बल्कि एक परिवार के टूट जाने की दर्दनाक कहानी है। जहां एक पत्नी ने अपने पति के लिए अपना अंग दान किया, लेकिन कुछ ही दिनों में दोनों की जान चली गई। बच्चों के सिर से मां-बाप का साया उठ गया, और अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या कहीं कोई चूक हुई?

इस हादसे ने सिर्फ एक परिवार नहीं, पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है।  


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Content Editor

Priya Yadav

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