कोरोना के मरीजों में चेहरे पर लकवा होने का खतरा 7 गुना बढ़ा: रिसर्च
punjabkesari.in Friday, Jul 09, 2021 - 01:59 PM (IST)
कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर जहां खत्म होती दिखाई दे रही हैं वहीं खतरा अभी टला नहीं है। आए दिन कोरोना वायरस से संबंधित नई-नई रिसर्च और जानकारी सामने आ रही हैं। हाल में की गई एक और रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि कोरोना के मरीजों में चेहरे पर लकवा होने का खतरा 7 गुना ज्यादा होता है। बतां दें कि इसे मेडिकल भाषा में 'बेल्स पॉल्सी' के नाम से जाना जाता है।
कोरोना के एक लाख मरीजों में बेल्स पॉल्सी के 82 मामले सामने आए-
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल क्लीवलैंड मेडिकल सेंटर और केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों की एक रिसर्च के हवाले से बताया गया है कि कोरोना के एक लाख मरीजों में बेल्स पॉल्सी के 82 मामले सामने आए हैं। इस रिसर्च के मुताबिक वैज्ञानिकों ने 3 लाख, 48 हजार ऐसे कोरोना मरीजों के मिलने की बात कही जिनमें 284 मरीज बेल्स पॉल्सी के थे।
वैक्सीन लेने वाले एक लाख लोगों में बेल्स पॉल्सी के मात्र 19 केस मिले-
जानकारी के अनुसार, इनमें 54 फीसदी मरीजों में बेल्स पॉल्सी की हिस्ट्री नहीं रही है। इसके अलावा 46 फीसदी मरीज ऐसे भी थे जो इस बीमारी से पीड़ित रहे हैं। इसके अलावा वैक्सीन लेने वाले एक लाख लोगों में बेल्स पॉल्सी के मात्र 19 केस मिले।
लकवे से बचाव के लिए कोरोना की वैक्सीन लगवाना जरूरी-
ऐसे में वैज्ञानिकों की ओर से लकवे से बचाव के लिए कोरोना की वैक्सीन लगवाना जरूरी बतायाा गया है। वहीं इस रिसर्च में 74 हजार में से करीब 37 हजार लोगों ने वैक्सीन ली थी। इसके बाद 8 लोगों में बेल्स पॉल्सी के मामले देखे गए।
जानें, बेल्स पॉल्सी के बारे में-
दरअसल, बेल्स पॉल्सी मांसपेशियों और पैरालिसिस से जुड़ा रोग है। इसमें चेहरा लटक जाता है और गालों को फुलाने में परेशानी होती है। वहीं इसका मरीज की आंखों और उसकी आइब्रो पर भी प्रभाव पड़ता है। जिससे मरीज की पलकें झुकी रहती हैं।
बेल्स पॉल्सी के लक्षण-
वहीं इस बीमारी के होने के पीछे असल कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक शरीर में रोगों से बचाव करने वाले प्रतिरक्षा तंत्र में ओवर-रिएक्शन होने से सूजन हो जाती है और नर्व डैमेज हो जाती है। इसी वजह से चेहरे पर इसका बुरा प्रभाव दिखाई पड़ता है।
ठीक होने में मरीज को 6 महीने का समय तक लग सकता है-
वैज्ञानिकों के अनुसार, अगर 2 महीने में इसके मरीजों को उचित इलाज मिल जाए तो इसका उपचार बेहतर ढंग से किया जा सकता है। साथ ही यह भी कहा गया है कि इस रोग से उबरने में मरीजों को 6 महीने का समय तक लग सकता है।