एक थप्पड़ ने बदल दी थी खूबसूरत हीरोइन की पूरी जिंदगी
punjabkesari.in Tuesday, Apr 12, 2022 - 04:26 PM (IST)
बॉलीवुड में कुछ किरदार ऐसे दिलों में बस गए हैं कि उन्हें चाहकर भी भुलाया नहीं जा सकता। इस इंड्रस्टी ने बहुत से लोगों को बहुत कुछ दिया है और कइयों से छीन भी बहुत कुछ लिया।
कुछ ऐसी ही नाम था ललिता पवार, जिनकी पूरी किस्मत ही एक थप्पड़ ने बदलकर रख दी थी। एक खूबसूरत हीरोइन जो एक क्रूर सास बन कर रह गई लेकिन उसने क्रूर सास बनकर ही घर घर पहचान बनाई लेकिन उस सास का अंत इतना दर्दभरा होगा ये किसी ने नहीं सोचा था। चलिए आज आपके साथ ललीता पवार की जीवनी ही शेयर करते हैं।
रामायण में मंथरा के किरदार से घर घर में पहचान बनाने वाली ललिता का जन्म 18 अप्रैल 1916 को नासिक में एक मराठी परिवार में हुआ। ललिता ने सिर्फ फिल्मों ही नहीं कई टीवी सीरियल्स में भी किया और बचपन में ही उन्हें एक्टिंग करने का मौका मिल गया था। मंथरा का किरदार करने के बाद लोगों के मन में उनके लिए गुस्सा और क्रूरता आ गई थी क्योंकि उनके नेगेटिव किरदार ने दर्शकों के मन में वैसी ही छवि बनाई थी।
ललिता जिनका असली नाम अंबा लक्षमण राव शगुन था और उनके पिता लक्षमण राव शगुन एक अमीर बिजनेसमैन थे जो सिल्क औऱ कॉटन का बिजनेस करते थे लेकिन इसके बावजूद वह कभी स्कूल नहीं जा पाई क्योंकि उस समय लड़कियों को स्कूल भेजना ठीक नहीं माना जाता था हालांकि करियर की शुरूआत उन्होंने 9 साल की उम्र में ही कर दी थी और वह पहली बार एक मूक फिल्म में नजर आई जिसके लिए उन्हें 18 रु. मिले थे।
ललिता की कामयाबी का सफर लगातार जारी था लेकिन एक दिन इस ग्लैमर्स एक्ट्रेस की खूबसूरती को किसी की नजर लग गई। दरअसल, 1942 में ललिता फिल्म ‘जंग-ए-आजादी’ के एक सीन की शूटिंग कर रही थीं और इस सीन में एक्टर भगवान दादा को ललिता को एक थप्पड़ मारना था लेकिन उन्होंने ललिता को इतनी जोर से थप्पड़ मारा कि वह वहीं बेहोश होकर गिर गई और उनके कान से खून बहने लगा। इलाज के दौरान डाक्टर द्वारा दी गई गलत दवा के नतीजे में ललिता पवार के शरीर के दाहीने हिस्से को लकवा मार गया।
लकवे की वजह से उनकी दाहिनी आंख पूरी तरह सिकुड़ गई और चेहरा खराब हो गया। लकवे से ठीक होने पर उन्होंने पर उन्हें काफी समय लगा लेकिन आंख हमेशा के लिए सिकुड़ गई। नतीजा ललिता को एक हीरोइन के रुप में काम मिलना बंद हो गया लेकिन अपने हौंसले और काम करने के जज्बे से उन्होंने फिर शुरुआत की लेकिन हिरोइन नहीं एक नेगेटिव किरदार वाली विलेन बन कर सामने आई। साल 1948 में अपनी एक मुंदी आंख के साथ ललिता ने निर्देशक एसएम यूसुफ की फिल्म ‘गृहस्थी’ से वापिसी की।
ललिता अब किसी रोल को गंवाना नहीं चाहती थी इसलिए उन्हें जालिम, धोखेबाज, झगड़ालु सास जैसे रोल मिले जिसे लोगों ने पसंद भी किया। उन्होंने फिल्म ‘अनाड़ी’ में दयावान मिसेज डीसा, ‘मेम दीदी’ की मिसेज राय और ‘श्री 420’ में ‘केले वाली बाई’ का किरदार निभाया इस तरह उन्होंने सैकड़ों फिल्मों में काम किया।
लेकिन प्रोफेशनल लाइफ की तरह उन्हें पर्सनल लाइफ में भी उन्हें धोखा और दुख ही मिला। उनके पहले पति गणपत राव पवार ने उन्हें धोखा दिया जिसमें उनकी बहन भी शामिल रही। गणपत को ललिता की छोटी बहन से प्यार हो गया था और उन्होंने ललिता को छोड़ दिया। बाद में ललिता भी आगे बढ़ी और उन्होंने निर्माता राज प्रकाश गुप्ता से शादी की।
लेकिन उनका अंत और भी दुखदायी रहा। करीब 700 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाने वाली ललिता ने पूणे में अपने छोटे बंगले में अकेलपन में ही आंखे मूद ली। उस समय उनके पति राज प्रकाश अस्पताल में भर्ती थे और बेटा अपने परिवार के साथ मुंबई में था। बेटे को उनकी मौत की खबर तीन दिन बाद मिली। जब उन्होंने मां को फोन किया और किसी ने उठाया नहीं । जब आनन-फानन में पुलिस ने घर का दरवाजा तोड़ा तो ललिता पवार की तीन दिन पुरानी लाश मिली जो सड़ गल चुकी थी।
और इस तरह एक लंबा समय काम करने वाली एक्ट्रेस गुमनामी और अकेलेपन के अंधेरे में ही गायब हो गई।