रामपुर की नवाबजादी बेगम का अमेरिका में निधन, एक युग का अंत, शाही परिवार में छाया शोक
punjabkesari.in Wednesday, Oct 29, 2025 - 02:43 PM (IST)
नारी डेस्क: रामपुर की शाही विरासत और सांस्कृतिक इतिहास से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। रामपुर की नवाबजादी मेहरून्निसा बेगम का अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन से न सिर्फ रामपुर का एक गौरवशाली अध्याय समाप्त हुआ, बल्कि उस सांस्कृतिक और सामाजिक युग का भी अंत माना जा रहा है, जिसने दशकों तक नवाबी परंपराओं को जीवित रखा।
शाही विरासत से जुड़ी मेहरून्निसा बेगम
मेहरून्निसा बेगम का जन्म 24 जनवरी 1933 को रामपुर के नवाबी परिवार में हुआ था। वह रामपुर के अंतिम शासक नवाब रजा अली खां और उनकी तीसरी पत्नी तलअत जमानी बेगम की पुत्री थीं। उनका बचपन शाही परंपराओं, संगीत, साहित्य और शिक्षा से सजे माहौल में बीता। रामपुर उस समय कला, संगीत और तहज़ीब का केंद्र माना जाता था और मेहरून्निसा बेगम ने इस परंपरा को बखूबी आगे बढ़ाया।
शिक्षा और संस्कारों से सजी जिंदगी
उनकी प्रारंभिक शिक्षा मसूरी और लखनऊ के प्रतिष्ठित संस्थानों में हुई। बेगम साहिबा बचपन से ही अत्यंत सुसंस्कृत, विदुषी और मिलनसार स्वभाव की थीं। उन्हें उर्दू साहित्य, संगीत और इतिहास से गहरा लगाव था। यही वजह रही कि उन्होंने बाद में शिक्षा को अपने जीवन का अहम हिस्सा बनाया।
#रामपुर_फ्लैश
— Vipin Kumar Sharma (@vipinkahin) October 29, 2025
रामपुर रियासत के अंतिम शासक नवाब रजा अली खां की बेटी नवाबज़ादी मेहरून्निसा बेगम का निधन। अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन डीसी में गमगीन माहौल में सुपुर्दे खाक। नवाबजादी के इंतकाल से शाही खानदान में शोक, नवेद मियां बोले-परिवार के लिए बहुत बड़ा नुकसान @Live_Hindustan pic.twitter.com/IKtVjzaaWi
दो शादियों से जुड़ी रही उनकी जीवन कहानी
मेहरून्निसा बेगम की पहली शादी भारतीय सिविल सेवा अधिकारी सैयद तकी नकी से हुई थी। हालांकि बाद में उनका रिश्ता पाकिस्तान के सैन्य इतिहास से जुड़ गया, जब उन्होंने पाकिस्तानी एयर चीफ मार्शल अब्दुर्रहीम खान से दूसरा निकाह किया। यह रिश्ता न सिर्फ दो देशों की सीमाओं को पार कर गया, बल्कि इसने यह भी दिखाया कि रिश्ते संस्कृति और सम्मान से ऊपर होते हैं। अब्दुर्रहीम खान पाकिस्तान के वायुसेना प्रमुख रह चुके थे, और मेहरून्निसा बेगम का जीवन इसके बाद अंतरराष्ट्रीय दायरे में भी प्रसिद्ध हो गया।
अमेरिका में नई ज़िंदगी की शुरुआत
साल 1977 में वह अमेरिका चली गईं और वहीं बस गईं। वहां उन्होंने इंटरनेशनल सेंटर फॉर लैंग्वेज स्टडीज, वॉशिंगटन डीसी में उर्दू और हिंदी की शिक्षिका के रूप में काम किया। उन्होंने न सिर्फ अपनी मातृभाषाओं को जीवित रखा, बल्कि विदेशी विद्यार्थियों को भारतीय संस्कृति और भाषा से जोड़ने का कार्य भी किया।
परिवार और संतानें
मेहरून्निसा बेगम की चार संतानें थीं दो बेटे और दो बेटियां। उनके बेटे आबिद खान का पहले ही निधन हो चुका था, जबकि दूसरे बेटे जैन नकी ने अंतिम समय तक उनकी देखभाल की। उनकी दो बेटियां जैबा हुसैन और मरयम खान हैं, जो अमेरिका में ही रहती हैं।
बेगम साहिबा अपने परिवार से गहरे जुड़ी हुई थीं और हमेशा अपनी जड़ों से संपर्क बनाए रखती थीं।
शाही परिवार और रामपुर में शोक की लहर
उनके निधन की खबर से रामपुर के शाही परिवार और सांस्कृतिक समुदाय में गहरा शोक व्याप्त है। कई लोगों ने कहा कि मेहरून्निसा बेगम सिर्फ एक शाही व्यक्तित्व नहीं थीं, बल्कि रामपुर की तहज़ीब और विरासत की जीवित प्रतीक थीं। उनके व्यक्तित्व में विनम्रता, अनुशासन और भारतीय संस्कृति की झलक साफ़ दिखाई देती थी।
एक युग का अंत
मेहरून्निसा बेगम के निधन के साथ रामपुर की नवाबी संस्कृति का एक और अध्याय बंद हो गया। उन्होंने अपने जीवन से यह दिखाया कि “शाही होना केवल खून से नहीं, बल्कि कर्म और संस्कार से होता है।” उनका जीवन भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास, संस्कृति और संबंधों का सजीव उदाहरण बनकर हमेशा याद किया जाएगा।

