पढ़ाई में कमजोर बच्चे जरूर करें मां कुष्मांडा की पूजा, सुनिए कथा, बीच मंत्र और लगाएं प्रिय भोग
punjabkesari.in Saturday, Oct 05, 2024 - 05:39 PM (IST)
नारी डेस्कः नवरात्रि (Navratri 2024) के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप माता कुष्मांडा (Maa Kushmanda) की पूजा की जाती है। माना जाता है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है। मां कुष्मांडा को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है क्योंकि उनके आठ हाथ हैं। ऐसा माना जाता है कि मां कुष्मांडा ने अपनी हल्की मुस्कान से ही पूरे ब्रह्मांड की रचना की थी।
मां का नाम कुष्मांडा कैसे पड़ाHeading 3
देवी कुष्मांडा को लेकर भगवती पुराण में बताया गया है कि मां दुर्गा मां के चौथे स्वरूप की देवी ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की उत्पन्न किया था, इसलिए इनका नाम कुष्मांडा पड़ा। माना जाता है जब सृष्टि के आरंभ से पहले चारों तरफ सिर्फ अंधेरा था। ऐसे में मां ने अपनी हल्की सी हंसी से पूरे ब्रह्मांड की रचना की। वह सूरज के घेरे में रहती हैं और उन्हीं के अंदर इतनी शक्ति है कि वह सूरज की तपिश को सह सकती हैं।
मां कुष्मांडा का स्वरूप
नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा होती है। मां कुष्मांडा अष्टभुजाओं वाली देवी कहलाती हैं। मां कुष्मांडा का स्वरूप बहुत ही दिव्य और अलौकिक माना गया है। मां कुष्मांडा शेर पर सवारी करते हुए प्रकट होती हैं। अष्टभुजाधारी मां, मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट धारण किए हुए हैं अत्यंत दिव्य रूप से सुशोभित हैं। मां कुष्मांडा ने अपनी आठ भुजाओं में कमंडल, कलश, कमल, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष, बाण और अक्षमाला धारण किया है। मां का यह रूप हमें जीवन शक्ति प्रदान करने वाला माना गया है।
मां कुष्मांडा की सपूर्ण कथा (Maa Kushmanda ki Katha)
सनातन शास्त्रों के अनुसार, जिस समय समस्त ब्रह्मांड में अंधेरा छाया हुआ था। पूरा ब्रह्मांड स्तब्ध था। इसमें न कोई राग, न कोई ध्वनि थी, उस समय त्रिदेव ने जगत जननी आदिशक्ति मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा की सहायता से तत्क्षण ब्रह्मांड की रचना की। कहते हैं कि ब्रह्मांड की रचना मां कुष्मांडा ने अपनी मंद मुस्कान से की। मां के मुख मंडल पर फैली मंद मुस्कान से समस्त ब्रह्मांड प्रकाशवान हो उठा। ब्रह्मांड की रचना अपनी मुस्कान से करने के चलते जगत जननी आदिशक्ति को मां कुष्मांडा कहा गया है। मां का निवास स्थान सूर्य लोक है। शास्त्रों में कहा जाता है कि मां कुष्मांडा सूर्य लोक में निवास करती हैं। ब्रह्मांड की रचना करने वाली मां कुष्मांडा के मुखमंडल पर उपस्थित तेज से सूर्य प्रकाशवान है। इस तेज को आवरण जगत जननी आदिशक्ति मां कुष्मांडा ही कर सकती हैं।
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विद्या का वरदान देती हैं मां कुष्मांडा
मान्यता है कि नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा करने वाले साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। मां कुष्मांडा को लेकर ऐसी मान्यता है पढ़ने वाले छात्र यदि कुष्मांडा देवी की पूजा करें तो उनके बुद्धि-विवेक में वृद्धि होती है। जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर हैं तो वह कुष्मांडा माता की पूजा करें। दुर्गा माता के चौथे रूप में मां कुष्मांडा भक्तों को रोग, शोक, विनाश से मुक्त करके आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं।
मां कुष्मांडा का प्रिय भोग (Maa Kushmanda Ka Bhog)
मां कुष्मांडा को कुम्हरा यानी के पेठा सबसे प्रिय है। इसलिए इनकी पूजा में पेठे का भोग लगाना चाहिए। व्रत करने वाले लोगों को पीले रंग के वस्त्र पहनकर पूजा करनी चाहिए। मां को पीला रंग सबसे प्रिय है। मां की पूजा में पीले वस्त्र, पीले फल, पीली मिठाई और पीले फूल भी अर्पित करने चाहिए। मां को मालपुआ भी प्रिय हैं। आप देवी को मालपुए और दही हलवे का भी भोग लगा सकते हैं।
मां कुष्मांडा का मंत्र (Maa Kushmanda Mantra)
मां कुष्मांडा का पूजा मंत्रः ऊं कुष्माण्डायै नम:
आप 108 बार इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। सच्चे मन से उच्चारण किए इस मंत्र से समस्त मुसीबतों से छुटकारा मिलता है।
बीज मंत्र: मां कूष्मांडा का बीज मंत्र 'ऐं ह्री देव्यै नमः' है।
ध्यान मंत्र: वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्। सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
स्तुति मंत्र: या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः||
मां कुष्मांडा की पूजाविधि (Maa Kushmanda Ki Puja Vidhi)
मां कुष्मांडा की पूजा के लिए नवरात्रि के चौथे दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें और मां कुष्मांडा का व्रत करने का संकल्प करें।
पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें और लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें और मां कुष्मांडा का स्मरण करें।
पूजा में पीले वस्त्र फूल, फल, मिठाई, धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत आदि अर्पित करें। मां की आरती करें और भोग लगाएं।
ध्यान लगाकर दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें।