निर्जला एकादशी की कथा सुनने से मिलती है पापों से मुक्ति, बनते है बिगड़े काम
punjabkesari.in Monday, May 29, 2023 - 05:30 PM (IST)
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी इस बार 31 मई को है। कहते है कि यदि आप पूरे साल एक भी एकादशी का व्रत नहीं रखते है। लेकिन आप निर्जला एकादशी का व्रत रख लेते है तो आपको संपूर्ण एकादशियों का फल स्वत ही प्राप्त हो जाता है।कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ व्रत कथा सुनना बहुत शुभ होता है। ऐसे में ज्योतिष एक्सपर्ट से जानते हैं निर्जला एकादशी की व्रत कथा के बारे में।पद्मपुराण में ऐसा वर्णित है कि श्री कृष्ण की इच्छा से महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को निर्जला एकादशी की व्रत कथा के बारे में बताया था।
निर्जला एकादशी की व्रत कथा
महाभारत युद्ध के बाद जब पांडव वेदव्यास जी से मिलने पहुंचे तब पांडवो ने निर्जला एकादशी के व्रत के बारे में जानना चाहा। इस दौरान वेदव्यास ने बताया कि इस दिन बिना पानी पिए सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय व्रत का निर्वाह करना होता है। जब भीम ने यह बात सुनी तो उसने वेदव्यास को कहा कि उससे भूख बर्दाश्त नहीं होती। जिस कारण वह यह एकादशी का व्रत नहीं रख सकेंगे। भीम की बात सुन वेदव्यास ने उसे समझाया कि जो लोग सभी एकादशी का व्रत नहीं रख सकते हैं उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस एक एकादशी के व्रत को रखने से सभी 26 एकादशियों का फल प्राप्त होता है और व्यक्ति को मृत्यु के बाद स्वर्ग में स्थान मिलता है।
इस व्रत के पालन से यमराज परेशान नहीं करते
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत करता है उसे भगवान विष्णु का साक्षात साथ और सानिध्य मिलता है। उनके कहने का यह मतलब था कि श्री विष्णु ने स्वयं अपने वामन अवतार में इस व्रत का महत्व समस्त असुरों, देवों और मनुष्यों को समझाया था। वेदव्यास के मुताबिक भगवान विष्णु ने कहा था कि जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत का नियम पूर्वक पालन करता है उसे करोड़ों स्वर्ण मुद्रा दान करने का पुण्य मिलता है। उन्होंने कहा कि निर्जला एकादशी के दिन किए गए जप, तप, दान का पुण्य अक्षय होता है। न सिर्फ पूजा-पाठ से लाभ मिलता है बल्कि वह लाभ कभी खत्म नहीं होता। उन्होंने पांडवों को कहा कि इस व्रत के पालन से यमराज परेशान नहीं करते हैं और व्यक्ति को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु के दर्शनों के लिए देवर्षि नारद ने सबसे पहले 1000 वर्ष तक घोर तपस्या की थी। इसी तप के फल स्वरूप उन्हें श्री हरि के दर्शन हुए और श्री हरि के परम भक्त होने का वरदान भी मिला। जिसके चलते निर्जला एकादशी व्रत का आरंभ हुआ।