हादसों से भरी रही राष्ट्रपति की जिंदगी, जानिए हिम्मतवाली द्रौपदी मुर्मू के संघर्ष और जज्बे की कहानी

punjabkesari.in Thursday, Jun 20, 2024 - 12:37 PM (IST)

देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज अपना 66वां जन्‍मदिन मना रही हैं। मुर्मू, प्रतिभा पाटिल के बाद भारत की राष्ट्रपति के रूप में सेवा करने वाली दूसरी महिला हैं। वह इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने वाली देश की पहली आदिवासी भी हैं। उन्होंने राष्ट्रपति के पद पर संवैधानिक दायित्वों के अलावा महिला और आदिवासी समाज के उत्थान को लेकर भी सराहनीय कदम उठाए हैं। चलिए जन्मदिन के मौके पर जानते हैं उनके अब तक के सफर के बारे में। 

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राष्ट्रपति ने बदला इतिहास

मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में हुआ था। उनसे पहले देश में अब तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं वो सब के सब 15 अगस्त 1947 से पहले के पैदा हुए नेता हैं। ऐसे में  द्रौपदी मुर्मूसर्वोच्च संवैधानिक पद पर काबिज होने वाली सबसे युवा राष्ट्रपति हैं। वहीं भारत में पहली बार आदिवासी महिला ने राष्ट्रपति पद की कमान संभालकर बड़ा इतिहास रच दिया है। 

बेटों और पति को खो चुकी हैं मुर्मू 

चमक दमक और प्रचार से दूर रहने वाली मुर्मू ब्रह्मकुमारियों की ध्यान तकनीकों की गहन अभ्यासी हैं। उन्होंने गहन अध्यात्म और चिंतन का दामन उस वक्त थामा था, जब उन्होंने 2009 से लेकर 2015 तक की छह वर्षों की अवधि में अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया था। देश के अब तक 14 राष्ट्रपतियों में से 7 के सम्बन्ध साउथ से रहे हैं लेकिन द्रौपदी मुर्मू पहली ऐसी राष्ट्रपति हैं, जो ओड़िसा से हैं। 

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राजनीतिक  सफर

द्रौपदी मुर्मू ने साल 1997 में राइरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ किया था। उन्होंने भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। साथ ही वह भाजपा की आदिवासी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं है। द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले की रायरंगपुर सीट से 2000 और 2009 में भाजपा के टिकट पर दो बार जीती और विधायक बनीं। ओडिशा में नवीन पटनायक के बीजू जनता दल और भाजपा गठबंधन की सरकार में द्रौपदी मुर्मू को 2000 और 2004 के बीच वाणिज्य, परिवहन और बाद में मत्स्य और पशु संसाधन विभाग में मंत्री बनाया गया था। 

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आंखें दान करना चाहती है राष्ट्रपति

2 जवान बेटों और पति की मौत से द्रौपदी पूरी तरह से टूट गई थी। वक्त के साथ उन्होंने खुद को संभाला और अपना ध्यान योग की तरफ लगाया। कहा जाता है कि द्रौपदी ने अपने पहाड़पुर वाले घर को स्कूल में तब्दील करवा दिया जिसमें आज बच्चे पढ़ाई करते है। वहां पर वो अक्सर अपने बेटों और पति की पुण्यतिथि पर जाती है। द्रौपदी एक कार्यक्रम में अपनी आंखें दान करने का ऐलान भी कर चुकी हैं।
 


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vasudha

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