क्या आप जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़ी ये परंपराएं?
punjabkesari.in Tuesday, Jan 11, 2022 - 02:19 PM (IST)
मकर संक्रांति का पर्व लोहड़ी के अगले दिन मनाया जाता है। इसे देशभर में अलग-अलग नामों जाना जाता है। इसके साथ ही इसे मनाने के लिए भी देशभर में अलग-अलग परंपराएं है। ज्योतिषशास्त्र अनुसार, सूर्य देव जब धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस दिन को मकर संक्रांति कहते हैं। इन त्योहार को मनाने के लिए भारत के हर कोने में अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित है। इस दिन दान करने, पतंग उड़ाने व खिचड़ी खाने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इससे घर में सुख-समृद्धि व खुशहाली का वास होता है। चलिए जानते हैं इसके बारे में...
दान की परंपरा और महत्व
ज्योतिषशास्त्र अनुसार, मकर संक्रांति पर दान-पुण्य करना शुभ होता है। इस दिन खासतौर पर उड़द दाल-चावल की खिचड़ी, गुड़, तिल व मूंगफली के लड्डू खाने की परंपरा है। मान्यता है कि घर इन चीजों को बनाकर ब्राह्मणों और पंडितों को दान करना चाहिए। इसके साथ हिंदू धर्म में तिल, गुड़, बाजरा, ज्वार आदि से अलग-अलग पकवान बनाकर उसे विवाहित बेटियों के घर लें जाने या उन्हें मायके बुलाने की प्रथा है।
पतंग उड़ाने की परंपरा और महत्व
मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर देश के कई हिस्सों में पतंग उड़ाने की भी परंपरा है। इसलिए कुछ दिन पहले ही बाजार रंग-बिरंगी पतंगों से सज जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार, पतंग उड़ाने का संबंध त्रेता युग व भगवान से है। तमिल की तन्दनानरामायण के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी और उनकी पतंग उड़कर इंद्रलोक तक पहुंच गई थी। उसी दिन से इस शुभ अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा का चलन हो गया।
खिचड़ी बनाने-खाने की परंपरा और महत्व
देशभर में कई जगहों पर खिचड़ी बनाने, दान करने व इसे खाने की प्रथा है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत बाबा गोरखनाथ ने की थी। ऐसे में हर साल मकर संक्रांति के शुभ दिन गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी मेल लगता है। इसके साथ ही बाबा को खिचड़ी का भोग लगाकर इसे प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है। इसलिए इस पर्व को कई जगहों में खिचड़ी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार, खिचड़ी में मौजूद दाल, चावल व सभी मसालों का संबंध कुंडली में ग्रहों से माना जाता है। ऐसे में इसका सेवन व दान करने से कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होने में मदद मिलती है।