बदलाव की ओर कदम: राजस्थान के अधिकारियों ने बाल विवाह रोकने के लिए कम्युनिकेशन साधनों को जाना

punjabkesari.in Saturday, Jul 10, 2021 - 06:20 PM (IST)

महिला अधिकारिता निदेशालय और पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा समुदायों में सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन लाने के लिए एक दिवसीय वेबिनार "कहानी बदलनी है" का आयोजन। राजस्थान सरकार ने राज्य में बाल विवाह की समस्या से निपटने के लिए पूरी तरह कमर कस ली है, न सिर्फ सख्त नियमों व उपायों को लागू करके, अपितु सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (एसबीसीसी) के माध्यम से। इस सप्ताह के शुरु में राज्य के महिला अधिकारिता निदेशालय ने पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर जिला अधिकारियों एवं ब्लॉक स्तरीय सुपरवाइजरों के लिए एक वेबिनार का आयोजन किया। इस वेबिनार का उद्देश्य था, सामाजिक व्यवहार परिवर्तन की दिशा में इन अधिकारियों को जानकारी देना और प्रेरित करना। ‘कहानी बदलनी है’ शीर्षक से आयोजित इस वेबिनार में राज्य के सभी 33 जिलों में बाल विवाह की रोकथाम के लिए प्रभावी कम्यूनिकेशन साधनों की तत्काल आवश्यकता पर चर्चा की गई।

इस वेबिनार के प्रमुख सत्रों को विशेषज्ञों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने संबोधित किया। पैनल में शामिल इन विशेषज्ञों में प्रमुख रूप से महिला अधिकारिता निदेशालय की अतिरिक्त निदेशक डॉ प्रीति माथुर, डीडब्ल्यूई के सहायक निदेशक श्री मुरारी गुप्ता, बाल विवाह और लैंगिक समानता से संबंधित मुद्दों के विशेषज्ञ श्री योगेश वैष्णव के साथ पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की सुश्री निकिता सेराव, सुश्री इशिता रामपाल एवं सुश्री पारुल शर्मा शामिल थे।

PunjabKesari

इस तरह के नवाचारों की तात्कालिक आवश्यकता पर टिप्पणी करते हुए पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की सीनियर स्टेट प्रोग्राम मैनेजर सुश्री दिव्या संथानम ने कहा कि सामाजिक मनोविज्ञान में अनुभव आधारित तर्कसंगत रणनीति के मुताबिक, सामाजिक और संस्थागत परिवर्तन लाना संभव है अगर लोगों को उस बदलाव के प्रति पर्याप्त रूप से आश्वस्त किया जा सके। लेकिन क्या तथ्यात्मक जानकारी सोच बदलने के लिए पर्याप्त है? यही वह बिंदु है जहां पर सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (एसबीसीसी) दूरगामी बदलाव ला सकता है। जेंडर एवं समाज से जुड़े प्रचलित मानदंडों को बदलने के लिए संचार के नवाचार करना इस समय की आवश्यकता है।

 

वेबिनार में विशेषज्ञों की ओर से प्रतिभागियों के लिए ऐसे महत्वपूर्ण टूल्स साझा किए गए जिनसे उन्हें अधिक सफलता के साथ जन जागरूकता अभियान और गतिविधियों की योजना बनाने और उन्हें कार्यान्वित करने में मदद मिलेगी। बाल विवाह से संबंधित मुद्दों, इसके असर, इससे संबंधित कानून और रोकथाम तंत्र की व्यापक जानकारी देने के साथ ही जिला अधिकारियों एवं ब्लॉक स्तरीय सुपरवाइसरों को ऐसे कम्यूनिकेशन टूल्स से भी परिचित कराया गया जिनसे वे समुदायो का विश्वास हासिल करने में सक्षम हो सकेंगे।

PunjabKesari

महिला अधिकारिता निदेशालय की अतिरिक्त निदेशक  ने कहा कि "बाल विवाह हमारें समाज में सदियों से चली आ रही कुरीती है। वर्तमान में COVID-19 से उत्पन्न परिस्थितियों के चलते बाल विवाह का जोखिम पहले से भी कहीं ज्यादा है और इसलिए इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि रोकथाम के लिए समुदायों के साथ प्रभावी संवाद करने की आवश्यकता है। सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (एसबीसीसी) पीढ़ीयों से चली आ रही सामाजिक मान्यताओं को खत्म करने और बाल विवाह के प्रतिकूल प्रभाव को उजागर करने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति है। अत: वांछित परिवर्तन लाने की दिशा में, सही संचार साधनों के उपयोग की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित करने के लिए इस वेबिनार का आयोजन किया गया।

 

विकल्प संस्थान के सह-संस्थापक श्री योगेश वैष्णव ने बाल विवाह और कम उम्र में गर्भधारण की वजह से किशोरों के जीवन चक्र पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने वर्तमान में COVID-19 के मद्देनजर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से गर्भनिरोधक उपायों की उपलब्धता में आई कठिनाईयों और गौना प्रथा की बढ़ती घटनाओं पर जमीनी अनुभवों को विस्तार से बताया। उन्होंने गरीबी और बाल विवाह की चुनौती के बीच आपसी संबंध पर भी प्रकाश डाला।

PunjabKesari

वेबिनार के दौरान पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कम्यूनिकेशन एक्सपर्ट इशिता रामपाल ने सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (एसबीसीसी) के कई प्रमुख बिंदुओं के बारे में जानकारी दी। उन्होंने विभिन्न प्रकार के कम्यूनिकेशन टूल, उनके उपयोग, सफल प्रयासों और तकनीक के उपयोग के बारे में भी बताया।

 

राजस्थान में बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। ऐसी स्थिति में यह कदम बहुत महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ्य सर्वेक्षण - 4 (2015-16) के अनुसार राज्य में 20 से 24 वर्ष की 35% महिलाएं ऐसी हैं जिनका विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गया था जबकि इस संबंध में राष्ट्रीय औसत 27% है। परिणामस्वरूप, राज्य की 6% किशोरियाँ या तो गर्भवती थीं या उनके बच्चे हो चुके थे । COVID-19 के जीवन, आजीविका और शिक्षा के प्रतिकूल प्रभाव ने निश्चित ही बालिकाओं की कम उम्र में शादी के जोखिम को बढ़ा दिया है। यूनिसेफ के हालिया अनुमानों के अनुसार, महामारी के कारण अगले दशक में वैश्विक स्तर पर 10 मिलियन से अधिक बालिकाओं को बाल विवाह का जोखिम है। इस वेबिनार का उद्देश्य प्रतिभागियों को कम्यूनिकेशन में दक्ष करना था ताकि ना केवल बाल विवाह के संबंध में बातचीत शुरू हो सके बल्कि साथ ही समाज और समुदाय में बाल विवाह के प्रति चली आ रही सोच में भी बदलाव लाया जा सके।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Bhawna sharma

Related News

static