''तुम मुझे खून दो''...का नारा देने वाले सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानें खास बातें
punjabkesari.in Monday, May 02, 2022 - 03:52 PM (IST)
सुभाष चंद्र बोस ने लगभग 81 वर्ष पहले कोलकाता से भाग निकलने और ब्रिटिश सरकार की निगरानी से बचने में सफल रहने के बाद बर्लिन में एक भारतीय सैन्य टुकड़ी की स्थापना की थी जो आजाद हिंद फौज से पहले बनी थी। इस टुकड़ी को ‘टाइगर लीजन’ या ‘फ्री इंडिया लीजन’ के नाम से भी जाना जाता था। वरिष्ठ पत्रकार किंगशुक नाग की पुस्तक ‘नेताजी: लिविंग डेंजरस्ली’ के अद्यतन संस्करण में कहा गया है कि बोस ने तीन हजार सैनिकों की टुकड़ी बनाई थी और इसमें भारतीय युद्धबंदी और प्रवासी फौजी शामिल थे।
इस टुकड़ी का चिह्न छलांग मारता बाघ था जो आईएनए का भी प्रतीक चिह्न था। नाग के अनुसार, बोस को ‘नेताजी’ की उपाधि, देशभर में चलने वाला ‘जय हिंद’ का नारा और राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ तक का उद्भव इस भारतीय सैन्य टुकड़ी में हुआ था। बोस 1941 के जनवरी मध्य में कोलकाता से निकले थे और 31 जनवरी को काबुल पहुंचे थे। उन्होंने अफगान राजधानी मार्च में छोड़ी और वहां एक राजनयिक की सहायता से इतालवी पासपोर्ट प्राप्त कर मास्को होते हुए दो अप्रैल को बर्लिन पहुंचे थे।
उन्हें जर्मन सेना की मदद से भारत के शत्रु ब्रिटेन को परास्त करने की उम्मीद थी। हालांकि, विदेश मंत्री जोकेम वॉन रिब्बनट्रॉप और बाद में एडोल्फ हिटलर से मिलने के बाद उनका यह स्वप्न टूट गया लेकिन बोस ने वहां 1941 में ‘इंडियन लीजन’ की स्थापना की। रासबिहारी बोस द्वारा अगले साल अप्रैल में आजाद हिंद फौज (आईएनए) की स्थापना की गई थी जिसकी कमान चार जुलाई को बोस को सौंपी गई।
सैन्य इतिहासकारों के मुताबिक उत्तरी अफ्रीका युद्धक्षेत्र से अधिकारी रैंक के 27 चुनिंदा भारतीय युद्धबंदियों को विमान द्वारा मई 1941 में बर्लिन लाया गया ताकि ‘टाइगर लीजन’ की स्थापना के लिए बोस की मदद की जा सके। इतालवी सेना द्वारा युद्धबंदी बनाए गए भारतीय सैनिकों को एनाबर्ग शिविर में रखा गया था जहां बोस ने उनसे पहली बार मुलाकात की। पुस्तक में कहा गया, “बोस 10 हजार स्वयंसेवी सैनिकों का एक बेस बनाना चाहते थे जो जर्मन सेनाओं के साथ मिलकर रूस, पर्शिया और अफगानिस्तान से होते हुए भारत (ब्रिटिश) पर आक्रमण कर सकें।
सैन्य इतिहासकर कर्नल (डॉ) गुरु सदाय बटब्याल ने कहा कि इस टुकड़ी को “पर्शिया से होकर भारत भेजने की योजना थी” लेकिन कुछ कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पाया और बोस को अपने अभियान के लिए दक्षिण एशिया का रास्ता चुनना पड़ा। बोस ने ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय युद्धबंदियों के शिविरों का दौरा किया और उनसे मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए बनी सेना में शामिल होने का आग्रह किया। नेताजी 3,000 हजार सैनिकों का एक समूह बनाने में कामयाब हो गए। नाग ने कहा, “टुकड़ी के सैनिक बोस को सम्मान के तौर पर नेताजी कहने लगे और यह संबोधन अमर हो गया।”
भारत की सशस्त्र सेनाओं द्वारा और आमतौर पर प्रयोग किया जाने वाला नारा “जय हिंद” भी ‘इंडियन लीजन’ की देन है। यह “जय हिंदुस्तान की” का संक्षिप्त संस्करण है जिसे नेताजी के सचिव आबिद हसन सफरानी ने टुकड़ी के युद्धघोष के तौर पर इजाद किया था। बोस ने इसे संक्षिप्त कर “जय हिंद” बना दिया। नाग ने कहा कि इस नारे के पीछे एक रोचक किस्सा है। सफरानी ने दो राजपूत सैनिकों को आपस में जय राम जी की कहते सुना और इसी पर आधारित जय हिंदुस्तान की नारा बना दिया।” नेताजी की सहमति पर ‘इंडियन लीजन’ ने ‘जन गण मन’ के हिंदुस्तानी अनुवाद को स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रगान के तौर पर स्वीकार करने को मंजूरी दी।
इस टुकड़ी का चिह्न छलांग मारता बाघ था जो आईएनए का भी प्रतीक चिह्न था। नाग के अनुसार, बोस को ‘नेताजी’ की उपाधि, देशभर में चलने वाला ‘जय हिंद’ का नारा और राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ तक का उद्भव इस भारतीय सैन्य टुकड़ी में हुआ था। बोस 1941 के जनवरी मध्य में कोलकाता से निकले थे और 31 जनवरी को काबुल पहुंचे थे। उन्होंने अफगान राजधानी मार्च में छोड़ी और वहां एक राजनयिक की सहायता से इतालवी पासपोर्ट प्राप्त कर मास्को होते हुए दो अप्रैल को बर्लिन पहुंचे थे।
उन्हें जर्मन सेना की मदद से भारत के शत्रु ब्रिटेन को परास्त करने की उम्मीद थी। हालांकि, विदेश मंत्री जोकेम वॉन रिब्बनट्रॉप और बाद में एडोल्फ हिटलर से मिलने के बाद उनका यह स्वप्न टूट गया लेकिन बोस ने वहां 1941 में ‘इंडियन लीजन’ की स्थापना की। रासबिहारी बोस द्वारा अगले साल अप्रैल में आजाद हिंद फौज (आईएनए) की स्थापना की गई थी जिसकी कमान चार जुलाई को बोस को सौंपी गई।
सैन्य इतिहासकारों के मुताबिक उत्तरी अफ्रीका युद्धक्षेत्र से अधिकारी रैंक के 27 चुनिंदा भारतीय युद्धबंदियों को विमान द्वारा मई 1941 में बर्लिन लाया गया ताकि ‘टाइगर लीजन’ की स्थापना के लिए बोस की मदद की जा सके। इतालवी सेना द्वारा युद्धबंदी बनाए गए भारतीय सैनिकों को एनाबर्ग शिविर में रखा गया था जहां बोस ने उनसे पहली बार मुलाकात की। पुस्तक में कहा गया, “बोस 10 हजार स्वयंसेवी सैनिकों का एक बेस बनाना चाहते थे जो जर्मन सेनाओं के साथ मिलकर रूस, पर्शिया और अफगानिस्तान से होते हुए भारत (ब्रिटिश) पर आक्रमण कर सकें।
सैन्य इतिहासकर कर्नल (डॉ) गुरु सदाय बटब्याल ने कहा कि इस टुकड़ी को “पर्शिया से होकर भारत भेजने की योजना थी” लेकिन कुछ कारणों से ऐसा संभव नहीं हो पाया और बोस को अपने अभियान के लिए दक्षिण एशिया का रास्ता चुनना पड़ा। बोस ने ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय युद्धबंदियों के शिविरों का दौरा किया और उनसे मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए बनी सेना में शामिल होने का आग्रह किया। नेताजी 3,000 हजार सैनिकों का एक समूह बनाने में कामयाब हो गए। नाग ने कहा, “टुकड़ी के सैनिक बोस को सम्मान के तौर पर नेताजी कहने लगे और यह संबोधन अमर हो गया।”
भारत की सशस्त्र सेनाओं द्वारा और आमतौर पर प्रयोग किया जाने वाला नारा “जय हिंद” भी ‘इंडियन लीजन’ की देन है। यह “जय हिंदुस्तान की” का संक्षिप्त संस्करण है जिसे नेताजी के सचिव आबिद हसन सफरानी ने टुकड़ी के युद्धघोष के तौर पर इजाद किया था। बोस ने इसे संक्षिप्त कर “जय हिंद” बना दिया। नाग ने कहा कि इस नारे के पीछे एक रोचक किस्सा है। सफरानी ने दो राजपूत सैनिकों को आपस में जय राम जी की कहते सुना और इसी पर आधारित जय हिंदुस्तान की नारा बना दिया।” नेताजी की सहमति पर ‘इंडियन लीजन’ ने ‘जन गण मन’ के हिंदुस्तानी अनुवाद को स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रगान के तौर पर स्वीकार करने को मंजूरी दी।