KargilVijay Diwas: युद्ध न हो, यही दुआ है लेकिन...करगिल शहीद की बेटी की वो बात जो रुला देगी
punjabkesari.in Saturday, Jul 26, 2025 - 12:57 PM (IST)

नारी डेस्क: हर साल 26 जुलाई को देशभर में करगिल विजय दिवस मनाया जाता है। यह दिन 1999 में हुए करगिल युद्ध में भारत की जीत और वहां शहीद हुए जवानों की याद में मनाया जाता है। इस खास मौके पर करगिल युद्ध के शहीद की बेटी प्राजक्ता ने अपनी भावुक बातें साझा कीं। प्राजक्ता जब सिर्फ 14 महीने की थीं, तभी उनके पिता ने देश के लिए अपनी जान दे दी थी।
प्राजक्ता महाराष्ट्र के बीड जिले से करगिल विजय दिवस में शामिल होने आई थीं। उन्होंने कहा कि शहीद परिवारों को हमेशा लगता है कि युद्ध होना ही नहीं चाहिए। भले ही हम में से किसी का घर युद्ध से सीधे न जुड़ा हो, लेकिन जब टीवी पर खबरें आती हैं तो हम उस दर्द को महसूस करते हैं। उनका कहना है कि करगिल युद्ध भले ही खत्म हो चुका है, लेकिन हमारे लिए वह लड़ाई आज भी जारी है।
प्राजक्ता के पिता सुभाष सानव भारतीय सेना के 18 गढ़वाल रेजिमेंट में थे। उन्हें ऑपरेशन के दौरान पॉइंट 5140 को कब्जे में लेने की जिम्मेदारी मिली थी। देश की सेवा करते हुए उन्होंने अपनी जान न्यौछावर कर दी। प्राजक्ता ने कहा कि युद्ध तो होना ही नहीं चाहिए, लेकिन अगर जरूरत पड़े तो देश को ऑपरेशन सिंदूर जैसे कड़े जवाब देने चाहिए।
ऑपरेशन सिंदूर का महत्व
प्राजक्ता, जो पेशे से वकील हैं, बताती हैं कि ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ पहलगाम हमले का जवाब नहीं था, बल्कि यह उन सभी हमलों का जवाब था जो भारत पर हुए। यह उनके पिता की शहादत का भी जवाब था ताकि दुश्मन फिर से ऐसी हरकत न कर सके। उन्होंने यह भी कहा कि अगर दुश्मन फिर से ऐसी हरकत करता है तो भारत को उससे दोगुना कड़ा जवाब देना चाहिए।
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पिता की यादें और प्रेरणा
प्राजक्ता के पिता ने उन्हें सिर्फ दो बार देखा था, लेकिन जब से प्राजक्ता ने बोलना और समझना सीखा, तब से उन्हें अपने पिता के बारे में पता चला और उनकी कहानी से प्रेरित होती रही हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें हमेशा उनकी वीरगाथाएं सुनाई जाती हैं जो उन्हें आगे बढ़ने की ताकत देती हैं।
शहीद की पत्नी का दर्द
प्राजक्ता की मां विद्या ने अपने संघर्ष की कहानी बताई। उन्होंने कहा कि उनकी शादी 18 साल की उम्र में हुई और 21 साल की उम्र में वे शहीद की विधवा बन गईं। उन्होंने बताया कि सैनिक की पत्नी होने के नाते सारी जिम्मेदारियां अकेले ही निभानी पड़ती हैं। आजकल की महिलाओं के विपरीत, जिन्हें पति बाजार जाने या खाना बनाने के लिए कहता है, उन्हें खुद ही सभी काम अकेले करने पड़ते हैं। विद्या ने सभी वीर नारियों को सलाम किया जो परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं।
विद्या ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया
विद्या बताती हैं कि 26 साल में पहली बार वे करगिल विजय दिवस पर करगिल आ पाईं क्योंकि पहले घर की जिम्मेदारियां इतनी थीं कि बाहर निकलना संभव नहीं था। उन्होंने कहा कि उन्होंने युद्ध का दर्द देखा है और अब पाकिस्तान को ऐसा जवाब देना चाहिए कि कभी भी फिर से ऐसा युद्ध न हो। पाकिस्तान को हमेशा के लिए शांत होना चाहिए ताकि और कोई सैनिक परिवार शहीद न बने।