डिस्कस थ्रो में कमलप्रीत कौर इतिहास रचने से चूकीं, 63.70 मीटर थ्रो के साथ छठे स्थान पर रहीं
punjabkesari.in Tuesday, Aug 03, 2021 - 12:18 PM (IST)
23 जुलाई से शुरू हुए टोक्यो ओलंपिक का कल 11 वां दिन था इस दौरान भारत की बेटी महिला डिस्कस थ्रो एथलीट कमलप्रीत कौर इतिहास रचने से चूक गईं। वह 63.70 मीटर थ्रो के साथ छठे स्थान पर रहीं। पहले प्रयास में उन्होंने 61.62 का डिस्कस थ्रो किया। दूसरा प्रयास कमलप्रीत का फाउल गया। तीसरे प्रयास में उन्होंने 63.70 मी का थ्रो किया था। वहीं, चौथे प्रयास में वह फिर से फाउल हो गईं। कमलप्रीत कौर ने पांचवें प्रयास में 61.37 मीटर का थ्रो किया। वहीं, छठे प्रयास में वह फाउल कर गईं। इसी के साथ वह पदक से चूकते हुए 6वें स्थान पर आ गई।
पदक से चुकीं भारत की दो बेटियां
बता दें कि दूसरे प्रयास के बाद बारिश के चलते कुछ समय के लिए खेल को रोकना पड़ गया था। वहीं, बीते दिनों सीमा पुनिया ने टोक्यो ओलंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ देते हुए 60.57 मीटर का थ्रो फेंककर छठे स्थान पर रहीं। हालांकि, वह फाइनल में नहीं पहुंच पाई थीं।
भारत के डिस्कस थ्रो का इतिहास
बता दें कि डिस्कस थ्रो में कमलप्रीत कौर द्वारा भारत का अब तक का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। इससे पहले 2010 राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता कृष्णा पूनिया भी लंदन ओलंपिक 2012 में छठे स्थान (63.62 मीटर) पर रही थीं जबकि विकास गौड़ा 64.79 मीटर के साथ आठवें स्थान थे वहीं अब कमलप्रीत कौर टोक्यो ओलंपिक में 6वें स्थान पर है।
डिस्कस थ्रो में ये तीन महिलाओं ने किया अपने नाम मेडल
बता दें कि अमेरिका की वैलेरी ऑलमैन ने 68.98 मीटर थ्रो के साथ गोल्ड अपने नाम कर लिया है। वहीं, जर्मनी की थ्रोअर क्रिसटिन ने 66.86 मीटर थ्रो के साथ सिल्वर मेडल पर कब्जा जमाया तो क्यूबा की खिलाड़ी परेज यैमे 65.72 मीटर का थ्रो फेंकर तीसरे स्थान पर आकर ब्राॅंज मेडल अपने नाम किया।
कमलप्रीत कौर ने 64 मीटर का डिस्कस फेंककर फाइनल के लिए किया था क्वालीफाई
इससे पहले बता दें कि भारत की कमलप्रीत कौर ने क्वालीफिकेशन में 64 मीटर का डिस्कस फेंककर फाइनल के लिए क्वालीफाई किया था। उन्होंने क्वालिफिकेशन के पहले प्रयास में 60.29 और दूसरे प्रयास में 63.97 मीटर दूर डिस्कस फेंका। इसके बाद तीसरे प्रयास में उन्होंने 64 मीटर दूर डिस्कस फेंका। वहीं अगर कमलप्रीत इस बार पदक जीतने में सफल हो जाती तो यह ओलंपिक में ट्रैक एंड फील्ड में भारत का पहला पदक होता।