Kaal Bhairav Jayanti : काल भैरव ने क्यों काटा था ब्रह्मा जी का सिर? जानिए कैसे बने काशी के कोतवाल
punjabkesari.in Friday, Nov 22, 2024 - 12:59 PM (IST)
नारी डेस्क: भैरव हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। हर वर्ष मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि इस तिथि पर भगवान काल भैरव का जन्म हुआ था। माना जाता है कि काल भैरव की पूजा से रोगों और दुखों से निजात मिल जाता है। इसके अलावा काल भैरव की पूजा करने से मृत्यु का भय दूर होता है और कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस बार कालाष्टमी 22 नवंबर यानी आज मनाई जा रही है। इस मौके पर जानते हैं काल भैरव और ब्रह्मा जी की कथा।
शिव का उग्र रूप
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रह्मा जी ने स्वयं को सबसे बड़ा और सृष्टि का सर्वोच्च देवता घोषित कर दिया था। उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया और उन्हें सम्मान देने से इनकार कर दिया। उनके इस अहंकार से देवताओं और ब्रह्मांड में असंतुलन उत्पन्न हो गया। ब्रह्मा जी के अहंकार को समाप्त करने के लिए भगवान शिव ने अपना उग्र रूप धारण किया, जिसे काल भैरव कहा जाता है। काल भैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया, जो उनकी अहंकार और अनादर की प्रतीक था। ब्रह्मा जी का सिर काटने के बाद, काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया। इस दोष से मुक्त होने के लिए काल भैरव ने कई तीर्थ स्थानों की यात्रा की और अंततः काशी में शरण ली। काशी में उन्हें ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिली, और तभी से काशी में काल भैरव का विशेष महत्व है।
काल भैरव जयंती का महत्व
काल भैरव जयंती भगवान शिव के काल भैरव रूप की पूजा का दिन है। यह मार्गशीर्ष मास (नवंबर-दिसंबर) के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इसे भैरव अष्टमी भी कहते हैं। यह दिन न्याय और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। भक्त मानते हैं कि काल भैरव उनके जीवन से नकारात्मक ऊर्जा, भय और बुराइयों को समाप्त करते हैं। काल भैरव की पूजा से जीवन के संकट, रोग और दुर्भाग्य दूर होते हैं। उनकी आराधना से शत्रुओं पर विजय और आत्मविश्वास प्राप्त होता है।
काशी में विशेष महत्व
काशी को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है और काल भैरव वहां के कोतवाल (रक्षक) माने जाते हैं। काशी यात्रा के दौरान काल भैरव के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। काल भैरव की पूजा से कुंडली में राहु और शनि से जुड़े दोष समाप्त हो जाते हैं।
पूजा विधि
प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। काल भैरव की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं। नींबू, तेल का दीपक और गुड़ का भोग अर्पित करें। काल भैरव अष्टक या उनके मंत्र का जाप करें: - "ॐ कालभैरवाय नमः" , "ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नमः"
काल भैरव की विशेषता
काल भैरव को समय के स्वामी कहा जाता है। उनके भक्तों का मानना है कि काल भैरव के आशीर्वाद से जीवन में अनुशासन, समर्पण और सकारात्मकता आती है। काल भैरव ब्रह्मांड के संतुलन, अहंकार के विनाश और धर्म की पुनर्स्थापना का प्रतीक हैं। उनकी जयंती पर उनकी पूजा से भक्तों को सुरक्षा, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद मिलता है। यह दिन उनके प्रति समर्पण और आध्यात्मिकता का विशेष अवसर है।