जितिया व्रत 2025: जानें तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
punjabkesari.in Tuesday, Sep 09, 2025 - 04:51 PM (IST)

नारी डेस्क : हिंदू धर्म में संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना के लिए माताएं कई व्रत करती हैं। इन्हीं में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे आम बोलचाल में जितिया व्रत कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। इसे कठिनतम व्रतों में गिना जाता है, क्योंकि इसमें तीन दिनों तक अलग-अलग परंपराएं निभाई जाती हैं। जानिएं किस दीन है जितिया व्रत।
जितिया व्रत की विशेषता
जितिया व्रत की खासियत यह है कि इसे आश्विन मास की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए निर्जला उपवास रखती हैं। इसे कठिन व्रत इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें नहाय-खाय, निर्जला उपवास और पारण तीनों परंपराओं का कड़ाई से पालन किया जाता है।
जितिया व्रत 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त
नहाय-खाय: 13 सितंबर 2025, शनिवार
निर्जला उपवास (मुख्य व्रत): 14 सितंबर 2025, रविवार
पारण (व्रत का समापन): 15 सितंबर 2025, सोमवार
इस प्रकार, माताएं 13 सितंबर से नियमपूर्वक व्रत की शुरुआत करेंगी और 15 सितंबर को इसका समापन होगा।
जितिया व्रत की पौराणिक कथा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जितिया व्रत की शुरुआत कलियुग में हुई थी। कथा के मुताबिक, प्राचीन समय में जीमूतवाहन नामक राजा ने एक स्त्री के पुत्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने का निश्चय किया और स्वयं को गरुड़ देव के भोजन के रूप में प्रस्तुत कर दिया। उनकी इस निःस्वार्थ त्याग भावना से गरुड़ देव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने न केवल राजा को वैकुंठ लोक का आशीर्वाद दिया, बल्कि सभी मृत बच्चों को पुनर्जीवित कर दिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि माताएं अपने बच्चों की सुरक्षा, लंबी आयु और कल्याण के लिए जीमूतवाहन देवता की पूजा करते हुए यह व्रत करती हैं।
नहाय-खाय (पहला दिन)
नहाय-खाय की परंपरा के तहत महिलाएं स्नान करके सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन पितरों और पक्षियों को भोजन अर्पित करना शुभ माना जाता है और इसी के साथ व्रत की शुरुआत होती है।
मुख्य व्रत (दूसरा दिन या अष्टमी तिथि)
मुख्य व्रत पर महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान करके निर्जला उपवास का संकल्प लेती हैं। इसके बाद घर के स्वच्छ स्थान पर गोबर और मिट्टी से एक छोटा तालाब बनाकर पूजा स्थल तैयार किया जाता है, जिसमें कुशा से जीमूतवाहन देवता की प्रतिमा स्थापित की जाती है। साथ ही, चील और सियारिन की प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा की जाती है। अंत में माताएं श्रद्धा से जितिया व्रत कथा का श्रवण या पाठ करती हैं।
पारण (तीसरा दिन)
पारण पर व्रत का समापन किया जाता है। इस अवसर पर माताएं भगवान जीमूतवाहन से अपने बच्चों की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्रार्थना करती हैं।
जितिया व्रत माताओं के लिए एक आस्था और बलिदान का पर्व है। यह केवल उपवास नहीं बल्कि अपनी संतान के प्रति मां के निःस्वार्थ प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। जो माताएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा और नियमपूर्वक करती हैं, उनके बच्चों पर भगवान जीमूतवाहन की कृपा बनी रहती है और उन्हें लंबी आयु तथा स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद मिलता है।