इस्लाम धर्म में मुस्लिम शव का दाह संस्कार क्यों नहीं किया जाता? जानें पूरी वजह
punjabkesari.in Tuesday, Sep 09, 2025 - 03:06 PM (IST)

नारी डेल्क : हर धर्म में मरने के बाद अंतिम संस्कार का तरीका अलग होता है। हिंदू धर्म में शव को दाह संस्कार यानी जलाने की परंपरा होती है, जबकि इस्लाम धर्म में मृतक का शव दफनाया जाता है। आइए जानते हैं कि इस्लाम धर्म में शव को जलाने की बजाय दफनाने का नियम क्यों है।
मृत्यु के समय परिवार और दोस्तों की भूमिका
इस्लाम में यह मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति मौत के करीब हो, तो उसके परिवार और करीबी मित्र उसके साथ मौजूद रहें। इस समय उन्हें अल्लाह से मृतक के लिए दया और रहमत की दुआ करनी चाहिए। जैसे ही व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, वहां मौजूद लोग मृतक की आंखें और निचला जबड़ा बंद कर दें और शरीर को साफ चादर से ढक दें, ताकि मृतक का सम्मान बना रहे।
इस्लाम में दाह संस्कार की मनाही क्यों है
इस्लाम धर्म में शव को जलाना हराम माना जाता है। इसे अशुद्ध और अपमानजनक क्रिया माना जाता है, जो मृतक के सम्मान के खिलाफ है। इस्लामिक कानून यानी शरिया के अनुसार, मृतक का शव जितनी जल्दी हो सके दफन करना चाहिए, ताकि उसकी इज्जत और धार्मिक नियमों का पालन हो सके।
शव को दफनाने से पहले की तैयारी
गुस्ल (धोना) और कफन
शव को दफनाने से पहले धोना (गुस्ल) अनिवार्य है। आमतौर पर मृतक को तीन बार धोने की सलाह दी जाती है और इसे हमेशा विषम संख्या में किया जाना चाहिए। पुरुष शव को धोते समय क्रम होता है: दाहिना-ऊपरी हिस्सा, बायां-ऊपरी हिस्सा, दाहिना-निचला और बायां-निचला। महिला शव के बाल धोकर तीन चोटियां बनाई जाती हैं। इसके बाद शव को सफेद चादर से ढककर कफन किया जाता है।
कफन करना
शव को तीन सफेद चादरों में बिछाकर उनके ऊपर रखा जाता है। शव का बायां हाथ सीने पर और दायां हाथ बायां हाथ के ऊपर रखा जाता है। इसके बाद चादरों को दाहिनी ओर से बाएं की ओर मोड़कर शव ढक दिया जाता है। कफन को रस्सियों से बांधा जाता है। एक सिर के ऊपर, दो शरीर के चारों ओर और एक पैरों के नीचे।
जनाजे की नमाज : शव को मस्जिद या प्रार्थना कक्ष में ले जाकर जनाजे की नमाज पढ़ी जाती है। नमाज पढ़ते समय सभी का मुख किबला यानी मक्का की ओर होना चाहिए।
दाह संस्कार न करने के धार्मिक कारण
शरीर अल्लाह की अमानत है: इस्लाम धर्म में माना जाता है कि इंसान का शरीर अल्लाह की अमानत है। इसे जलाना या अपमानित करना अमानत का अपमान माना जाता है।
दफनाना सुन्नत है: पैगम्बर मुहम्मद (सल्ल.) ने अनुयायियों को मृतक को दफनाने की सलाह दी थी। इसे कुरान और हदीस में भी बताया गया है।
आग से जलाना यातना देने जैसा: इस्लाम में आग का संबंध नरक की सजा से है। शव को जलाना मृत आत्मा को अनावश्यक कष्ट देने जैसा माना जाता है।
कयामत के दिन पुनर्जीवन का प्रतीक: कयामत के दिन अल्लाह हर इंसान को पुनर्जीवित करेगा। इसलिए शव को मिट्टी में दफनाना इस विश्वास का प्रतीक है कि इंसान उसी मिट्टी से फिर जन्म लेगा।
पैगम्बरों और सहाबा की परंपरा: इस्लाम में सभी नबी और सहाबा को दफनाया गया। इसलिए मुसलमानों के लिए यह धार्मिक फर्ज का प्रतीक है।
शव का दफनाना
शव को कब्रिस्तान में ले जाकर कब्र को किबला की दिशा में खोदा जाता है। शव का मुंह किबला की ओर रखना अनिवार्य है। शव रखने के बाद उसके ऊपर मिट्टी, लकड़ी या पत्थर की परत डाली जाती है। कब्र भरने के बाद समुदाय के लोग तीन मुट्ठी मिट्टी डालते हैं। अंत में कब्र पर निशान या पत्थर रखकर उसकी पहचान सुनिश्चित की जाती है।
इस तरह, इस्लाम धर्म में शव को दफनाना न केवल धार्मिक नियम है बल्कि मृतक के सम्मान और अल्लाह की अमानत की रक्षा का भी तरीका माना जाता है।