कौन थी गौरा देवी, जिसने शुरू किया दुनिया का सबसे बड़ा ''चिपको आंदोलन''

punjabkesari.in Saturday, Apr 03, 2021 - 01:14 PM (IST)

सन् 1976, 24 मार्च को गौरा देवी ने चिपको आंदोलन की शुरुआत की। पर्यावरण को बचाने के लिए वह पेड़ से चिपक गई गई, जिसे देख कई महिलाएं उनसे साथ जुड़ गई। उत्तराखंड में शुरू हुए एक छोटे से आंदोलन ने उन्हें लीडर बना दिया लेकिन क्या आप जानते हैं कि गौरा देवी कौन थी और उनका व्यक्तिगत जीवन कितना संघर्षपूर्ण रहा।

गौरा देवी ने शुरू किया था चिपको आंदोलन

उत्तराखंड, रैणी गांव की रहने वाली गौरा देवी ने जंगलों को बचाने के लिए यह आंदोलन तब शुरू किया गया जब  पेड़ों को काटने के आदेश दिए गए। उसी बीच सरकार ने सड़क बनाने के लिए बर्बाद हुए खेतों को मुआवजा देने का आदेश दिए। तब कई पुरुष मुआवजा लेने चमोली चले गए। तभी कई मजदूर पेड़ काटने के लिए जंगलों की तरफ बढ़े।

PunjabKesari

2400 पेड़ बचाने के लिए 27 महिलाओं ने की थी पहल

चूंकि पुरुष गांव में मौजूद नहीं थे इसलिए महिलाओं ने मोर्चा संभालने का निर्णय लिया। गौरा देवी सहित 27 महिलाएं 2400 पेड़ों की कटाई रोकने के लिए उनके साथ चिपक गई। उनका कहना था कि पेड़ काटने से पहले उनके शरीर पर आरी चलानी पड़ेगी। वह कई दिनों तक भूखे प्यासे पेड़ों से चिपकी रहीं, ताकि उनकी कटाई रोकी जा सके।

'चिपको वुमन' के नाम से हुईं मशहूर

उनकी इस पहल से उन्हें दुनियाभर में 'चिपको वुमन' के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने पेड़ों को बचाने के लिए जो किया वो कभी नहीं भुलाया जा सकता है।

कौन थीं गौरा देवी?

गौरा देवी की शादी महज 12 साल की उम्र में कर दी गई थी। उन्हें कठिनाओं का सामना तो तब करना पड़ा जब 22 साल की उम्र में उनके पति की मृत्यु हो गई। ढाई साल के बेटे और बूढ़े सास-ससुर की जिम्मेदारी गौरा पर आ गई। अपने खेतों में हल जुतवाने के लिए उन्हें दूसरे पुरुषों से विनती करनी पड़ती थी लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। इसी बीच उनके सास-ससुर की भी मौत हो गई।

PunjabKesari

नहीं गई स्कूल लेकिन वेद-पुराणों की थी पूरी जानकारी

भले ही गौरा देवी कभी स्कूल ना जा सकी हो लेकिन पेड़ों व पर्यावरण का महत्व वह भली-भांति जानती थी। उनका कहना था कि जंगल हमारे घर जैसा है, जहां से हमें फल-फूल, सब्जियां आदि मिलती है। अगर पेड़ काटोगे तो बाढ़ आएगी और तबाही होगी। यही नहीं, उन्हें वेद-पुराणों, रामायण, भगवत गीता, महाभारत यहां तक कि प्राचीन ऋषि-मुनियों की भी काफी जानकारी थी।

महिला मंगल दल की रही अध्यक्ष

घर चलाने के साथ गौर गांव के कामों में हाथ बटाती रहीं, जिसे देखकर गांव वालों ने उन्हें महिला मंगल दल की अध्यक्ष बना दिया। अफसोस, 66 साल की उम्र साल 199 में  गौरा देवी इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

PunjabKesari


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Anjali Rajput

Related News

static