गणपति व्रत की 4 पौराणिक व प्रचलित कथाएं, जरूर पढ़िए-हर मनोकामना होगी पूरी
punjabkesari.in Friday, Sep 06, 2024 - 05:42 PM (IST)
नारी डेस्कः गणपति बप्पा मौरया ... बप्पा घर पधार रहे हैं। जी हां, इस बार 7 सितंबर 2024 को गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाएगा। मुंबई में लाल बागचा राजा के दर्शन करने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। कहते हैं कि अगर आप सच्चे दिल से बप्पा की आराधना करते हैं तो बप्पा आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी जाती है। किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले भगवान गणेश की ही पूजा की जाती है। श्री गणेशाय नम: विघ्नहर्ता गणेश चतुर्थी व्रत करने से घर-परिवार में आई सारी मुसीबतें दूर होती है। गणेश चतुर्थी उत्सव पर बहुत से लोग भगवान गणेश का व्रत रखते हैं और कथा सुनते हैं। गषेश चतुर्थी से जुड़ी 4 पौराणिक एवं प्रचलित कथाएं हैं। चलिए आपको उनके बारे में ही बताते हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत की पहली कथा
पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार, एक बार देवता कई विपदाओं से घिर गए थे और मदद के लिए वह महादेव के पास पहुंचे और उस समय शिव जी, कार्तिकेय तथा गणेशजी के साथ बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा, तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया। इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा, तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय ने स्वयं को विजेता बताया। तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।
तब गणेश ने कहा - 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा, उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे।'
गणेश चतुर्थी व्रत की दूसरी कथा
पौराणिक एवं प्रचलित कथा के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार रहता था। वह मिट्टी के बर्तन तो बनाता लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी के कहने पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया। उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। मां ने अपने बच्चे की सलामती के लिए श्री गणेशजी से प्रार्थना की। दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। डरे कुम्हार ने राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई। इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। तब से ही महिलाएं संतान की लंबी उम्र और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।
गणेश चतुर्थी व्रत की तीसरी कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे समय व्यतीत करने के लिए पार्वती ने भोलेनाथ को चौपड़ खेलने के लिए कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- 'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?
खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार ही माता पार्वती जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता क्रोधित हो गई और उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि, ऐसा मुझते अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया।
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे। यह कहकर माता पार्वती, शिव के साथ
कैलाश पर्वत पर चली गईं।'
एक वर्ष के बाद उसी स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उनकी भक्ति भाव और श्रद्धा को देख गणेश जी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हो।'
श्री गणेश, तब बालक को वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंचा और उन्होंने अपनी सारी कथा भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती, शिवजी से विमुख हो गई थीं। पार्वती को मनाने के लिए भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। आगे भगवान शंकर ने यह विधि, माता पार्वती को बताई। माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई।माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डू से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया और 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वती जी से मिलने आ पहुंचे। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है।
गणेश चतुर्थी व्रत की चौथी कथा
पौराणिक एवं प्रचलित कथा के अनुसार, विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हुआ और विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजा गया लेकिन गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया गया था। जब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया, तब सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को न्योता नहीं है? या स्वयं गणेश जी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा, हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर का ख्याल रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया और विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी। गणेश जी जब वहां पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने के लिए बैठा दिया। बारात चल दी। नारद जी ने जब गणेश जी को देखा तो पूछा कि वो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं। इस पर गणेश जी ने कहा कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है।
नारद जी ने कहा- 'आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।गणेश जी ने अपनी मूषक सेना आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले,
तब तो नारद जी ने कहा कि आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए। गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल तो गए, परंतु वे टूट-फूट गए, उन्हें ठीक करने के लिए खाती को बुलाया गया तब खेत में काम करने वाले खाती ने पहले 'श्री गणेशाय नम:' कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन में की। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।
खाती ने ही बताया, 'हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजा की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूर्ख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। फिर बारात ने गणपति बप्पा के जयकारे लगाए और सब विष्णु-लक्ष्मी का विवाह करवा सकुशल वापिस आए।'
इस व्रत को करने से भक्त के सभी दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।