13 साल की उम्र में राजा बनने वाले ''राजा साहिब'' Politics में नहीं रखना चाहते थे कदम
punjabkesari.in Friday, Jul 09, 2021 - 02:00 PM (IST)
लंबी बीमारी के बाद आज सुबह हिमाचल प्रदेश के 6 बार मुख्यमंत्री रह चुके वीरभद्र सिंह निधन हो गया है। शिमला के IGMC अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। शनिवार को रामपुर में वीरभद्र सिंह का अंतिम संस्कार होगा और इससे पूर्व उनके वारिस टीका उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह का राजतिलक किया जाएगा और उन्हें राजगद्दी पर बिठाने के बाद ही वीरभद्र सिंह का रामपुर में अंतिम संस्कार किया जाएगा क्योंकि राज परिवार का इतिहास रहा है कि राजा के अंतिम संस्कार से पूर्व राजगद्दी संभालने वाले राजकुमार का राजतिलक विधि-विधान के साथ किया जाता है। जब उन्होंने राजगद्दी संभाली थी तो उनकी उम्र सिर्फ 13 साल थी।
1947 में पिता के देहांत के बाद वीरभद्र सिंह को बुशहर रियासत की राजगद्दी सौंपी गई थी। रामपुर-बुशहर शाही परिवार के वंशज, वीरभद्र जोकि राज घराने से ताल्लुक रखते थे। वह 6 बार मुख्यमंत्री, 9 बार विधायक और 5 बार संसद के सदस्य रह चुके राजा साहिब काग्रेस की पुरानी पीढ़ी से नाता रखते थे। उनके परिवार का दावा था कि वह श्री कृष्ण परिवार की 122 वीं पीढ़ी हैं। दरअसल, सराहन, रामपुर बुशहर रियासत में एक स्थान आता है। उनका कहना है कि सराहन को पहले सोनीपुर से जाना जाता था जो कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युमन की रियासत का हिस्सा था।
चलिए उनके जीवन की कुछ खास बातें आपको इस पैकेज में बताते हैं...
23 जून 1934 में शिमला जिले के सराहन में बुशहर रियासत के शाही परिवार में जन्में वीरभद्र के पिता राजा पदमदेव और माता श्रीमति शांति देवी थी। स्कूली शिक्षा कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल देहरादून, सेंट एडवर्ड स्कूल, शिमला और बिशप कॉटन स्कूल से हुई। सेंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली से बीए ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की।वीरभद्र कभी भी राजनीति में नहीं आना चाहते थे। 15 मई 2019 को शिमला के संजौली में जनसभा में सीएम ने अपने एक बयान में कहा था कि उनका सपना था कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) में प्रोफेसर बने, लेकिन कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रहीं इंदिरा गांधी के कहने पर वह राजनीति में आए।
1962 में उन्होंने राजनीतिक करियर की शुरूआत की थी। मुख्यमंत्री के रुप में उन्होंने सन 1983 में पहली बार अपना कार्यकाल शुरू किया। शिक्षा और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के निर्माण में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। राजा साहिब इतने लोकप्रिय नेता थे कि वे कई बार मुख्यमंत्री पद के लिए चुने गए। साल वीरभद्र सिंह ने पहली बार महासू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। इंदिरा गांधी की सरकार में वीरभद्र सिंह दिसंबर 1976 से 1977 तक केंद्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री रहे थे। दूसरी बार भी वह इंदिरा सरकार में ही वर्ष 1982 से 1983 तक केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री रहे।
फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व की केंद्र की यूपीए सरकार में वीरभद्र सिंह 28 मई 2009 से लेकर 18 जनवरी 2011 तक कैबिनेट मंत्री रहे। 2009 में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी जीता और केंद्रीय इस्पात मंत्री और बाद में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री भी रहें। प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा नेताओं में कोई भी उनकी बराबरी या यूं कहें कि टक्कर देने वाला नहीं था। पर्सनल लाइफ की बात करें तो वह स्वभाव से सबको प्यार करने वाले और जनता की बात सुनने वालों में से एक थे। उनकी भाषण में एक ही शब्द होता था कि मेरी जनता मेरी सबसे बड़ी ताकत है।
वीरभद्र सिंह का विवाह दो बार हुआ। पहले 20 साल की उम्र में जुब्बल की राजकुमारी रतन कुमारी से उनकी पहली शादी हुई और राजमाता रतन कुमारी के देहांत के बाद 1985 में उन्होंने प्रतिभा सिंह से शादी की। प्रतिभा सिंह भी मंडी से सांसद रह चुकी हैं। वीरभद्र और प्रतिभा के पुत्र विक्रमादित्य सिंह भी वर्तमान में शिमला ग्रामीण से विधायक हैं। पहली शादी से उन्हें 4 बेटियां थी और दूसरी शादी से बेटे, विक्रमादित्य सिंह और अपराजिता हैं। विक्रमादित्य, शिमला ग्रामीण से विधायक हैं और बेटी अपराजिता की शादी पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के पोते अंगद सिंह से हुई है। वही उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह की शादी, सुदर्शना सिंह हुई है जोकि राजस्थान में मेवाड़ के तहत अमेटी रियासत से ताल्लुक रखती हैं और वह एक इंटीरियर डिजाइनर भी हैं।
बता दें कि 10 जुलाई को पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह का अंतिम संस्कार किया जाएगा।