एडुटेनमेंट शो से इंस्पायर्ड हुई बिहार की किशोरियां, 1 रुपए से शुरु किया सैनेटरी पैड बैंक!
punjabkesari.in Sunday, Oct 11, 2020 - 05:27 PM (IST)
आज पूरा विश्व 'अंतरराष्ट्रीय बालिका' दिवस मना रहा है। इस दिन का तात्पर्य बेटियों को महत्व देना है। हमारे भारत में ऐसी बहुत-सी संस्थाएं बनाई गई है, जो बेटियों के लिए हक के लिए आवाज उठाती हैं। इसके अलावा भारत में ऐसे कई सीरियल्स और फिल्में भी बनाई गई हैं, जो बेटियों की महत्तावता को समझाती हैं। उन्हीं में से एक है एडुटेनमेंट शो 'मैं कुछ भी कर सकती हूं', जिसने ग्रामीणों को सैनिटरी पैड्स बैंक शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
एक रुपए से की सैनेटरी पैड्स बैंक की शुरूआत
यह सिर्फ रोजाना 1 रुपए का स्वैच्छिक योगदान है, लेकिन यह पहल बिहार के नवादा जिले की युवा लड़कियों को उनकी मासिक जरूरतों के बारे में बात करने और एजेंसी का दावा करने में मदद कर रहा है। एडुटेनमेंट शो 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' से प्रेरित होकर युवा महिलाओं के समूह ने एक सैनिटरी पैड बैंक की स्थापना की है। वे हर लड़की से प्रतिदिन 1 रुपए एकत्रित करके अपने व अन्य लड़कियों (जिनके पास पैड खरीदने के लिए साधन नहीं हैं) के लिए सैनिटरी पैड खरीदती हैं। एक-दूसरे की मदद करने के लिए लड़कियों ने ने एकजुट होने का फैसला किया। जब उन्होंने देखा कि पैसे की कमी की वजह से उनकी व्यक्तिगत मासिक धर्म की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं, तब उन्होंने इस बैंक की स्थापना करने की सोची।
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस (11 अक्टूबर) पर, उन्होंने साझा किया कि किस तरह वे इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' से प्रेरित हुईं। यह शो परिवार नियोजन, जल्दी शादी (बाल विवाह), अनियोजित या जल्दी गर्भधारण, घरेलू हिंसा और किशोरी प्रजनन और यौन स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को उठाने की पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एक ट्रांस-मीडिया एडुटेनमेंट पहल है।
क्यों और कैसे बनाया गया सैनेटरी पैड्स बैंक?
सैनेटरी पैड्स बैंक क्यों और कैसे बनाया गया, इस बारे में बताते हुए अमावा गांव की यूथ लीडर अनु कुमारी कहती हैं, "उन लड़कियों की मदद के लिए जिनके पास पैसे नहीं हैं, हम रोजाना एक रुपए जमा करते हैं। इसका मतलब हर लड़की एक महीने में 30 रुपए जमा करती है।" उस पैसे से हम सैनिटरी पैड खरीदते हैं और उन गरीब लड़कियों में बांटते हैं, जो मासिक धर्म के लिए पैड खरीदने में सक्षम नहीं हैं।"
लड़कियों में आत्मविश्वास भर रहा यह बैंक
इस बारे में नवादा के पूर्व सिविल सर्जन, डॉ. श्रीनाथ प्रसाद कहते हैं, "लड़कियां पहले खुद के लिए बोलने में असमर्थ थीं। वे अपने शरीर में हो रहे शारीरिक परिवर्तनों से अनजान थीं। उन्हें सैनिटरी पैड के बारे में पता नहीं था लेकिन आज उन्होंने सैनिटरी पैड्स का बैंक शुरू किया है। आप सोच सकते हैं कि लड़कियों पर शो का किस हद तक असर हुआ है कि वे आत्मविश्वास से कह रहीं हैं "मैं कुछ भी हासिल कर सकती हूं"।
पुरुषों की सोच में भी हो रहे बदलाव
धीरे-धीरे, पुरुषों की सोच में भी बदलाव देखे जा सकते हैं। हरदिया के पूर्व मुखिया, भोला राजवंशी ने कहा, "मुझे लगता है कि हमारा समाज बदल चुका है। अब लड़कियों और लड़कों के बीच कोई अंतर नहीं है।" अब महिलाएं भी मासिक धर्म को लेकर होने वाली बातचीत में बदलाव को महसूस कर रही हैं। कम्युनिटी की सदस्य संगीता देवी कहती हैं, "पहले हम मासिक धर्म के दौरान होने वाले कष्ट को चुपचाप सहन करते थे। हमारी बेटियों ने हमें नैपकिन्स के बारे में बताया। हमने भी 'मैं भी कुछ कर सकती हूं' देखा और प्रोत्साहित हुईं। मुझे लगता है ये सभी बदलाव सिर्फ उस शो की वजह से संभव हुए।"
'मैं कुछ भी कर सकती हूं' शो से मिल रही प्रेरणा
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा इस बात से खुश हैं कि किस तरह 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' ने लाखों युवा लड़कियों और महिलाओं को आवाज दी है। वह कहती हैं, “मुझे खुशी है कि यह शो उनके जीवन पर असर डाल रहा है और यही हमारा लक्ष्य है।
सीरीज की नायिका डॉ. स्नेहा माथुर के प्रेरक किरदार के माध्यम से, हमने मुश्किल लेकिन महत्वपूर्ण विषयों मसलन, सेक्स सेलेक्शन (लिंग चयन), हिंसा, लैंगिक भेदभाव, स्वच्छता, परिवार नियोजन, स्पेसिंग, बाल विवाह, मानसिक स्वास्थ्य, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, पोषण और किशोर स्वास्थ्य के बारे में बातचीत शुरू की है। बिहार की इन युवा लड़कियों ने सैनिटरी पैड्स का एक बैंक बनाया है और साथ ही किशोरियों के अनुकूल हेल्थ क्लीनिक की शुरुआत करने में भी सफल रही हैं जो पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के लिए बेहद गर्व की बात है।”
लड़कियों के लिए बना एक सशक्त नारा
शो के निर्माता व जाने-माने फिल्म और थिएटर निर्देशक फिरोज अब्बास खान कहते हैं, “सात साल पहले जब मैंने शो का कांसेप्ट लिखा था, तो इस तरह के प्रभाव की कल्पना भी नहीं कर सकता था जो हमने इन वर्षों के दौरान देखा है। मैं एक उच्च क्वालिटी का शो बनाना चाहता था जो बिना भाषणबाजी के महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर प्रभावी ढंग से संवाद करे। इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है कि 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' युवा, किशोर लड़कियों के लिए एक सशक्त नारा बन गया है जो अब धरातल पर बदलाव की अगुवाई कर रही हैं।"
ग्रामीण महिलाओं का संघर्ष दिखाती है कहानी
'मैं कुछ भी कर सकती हूं' एक युवा डॉक्टर डॉ. स्नेहा माथुर के प्रेरक सफर के इर्द-गिर्द घूमती है जो मुंबई में अपने आकर्षक कैरियर को छोड़कर अपने गांव में काम करने का फैसला करती है। इसकी कहानी डॉ. स्नेहा के सभी के लिए बेहतरीन स्वास्थ्य सेवा मुहैया करवाने के संघर्ष पर केंद्रित है। उनके नेतृत्व में गाँव की महिलाएँ सामूहिक कार्रवाई के जरिए अपनी आवाज उठाती हैं।