पढ़ी-लिखी महिलाएं घरेलू हिंसा की ज्यादा शिकार, जानिए क्या कहता है सर्वे

punjabkesari.in Thursday, Feb 27, 2020 - 05:10 PM (IST)

घरेलू हिंसा हमारे समाज और पारिवारिक ढांचे में गहराई से जड़ जमा चुकी है। इसके मामले दिन-प्रतिदन बढ़ते जा रहे हैं। इसी विषय पर बनी तापसी की अपकमिंग फिल्म 'थप्पड़' काफी चर्चा में हैं। फिल्म की कहानी एक खुद्दार महिला अमृता की है, जो शादीशुदा जिंदगी में बेहद खुश है, लेकिन एक पार्टी में पति विक्रम से अचानक मिला एक करारा थप्पड़ उसकी जिंदगी बदल देता है।

 

सभी को अपनी-अपनी गलती सुधारनी होगी

इस फिल्म में एक सीन है, जहां अमृता (तापसी) अपने वकील से बात कर रही है और बोल रही है कि किस-किस की गलती है। गलती तो उसकी है, जो उसने मुझे मारने का हक समझा और मेरी भी जो मैंने खुद को ऐसा बना दिया कि वह मुझे थप्पड़ मार सकता है। गलती शायद उसकी मां की भी है कि उसने उसे नहीं सिखाया कि कैसे अपनी बीवी को रखना है और शायद गलती मेरी मां की भी है, जिन्होंने मुझे सिखाया कि औरतों को सहनशील होना चाहिए। बर्दाश्त करना आना चाहिए। कुल मिलाकर गलती हम सभी की है और हम सभी को अपनी-अपनी गलती सुधारनी होगी।

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आप समाज में बदलाव नहीं चाहते तापसी

तापसी का कहना है कि जिन लोगों को लगता है कि एक 'थप्पड़' के लिए क्या फिल्म बनाना सही था? उनके लिए मैं इतना ही कहना चाहूंगी जब आप फिल्म खत्म करेंगे तो आपको ऐसा बिल्कुल नहीं लगेगा। लोगों को लगता था कि शायद एक थप्पड़ के लिए तलाक लेना सही नहीं है तो ऐसे लोगों को मैं बोलूंगी कि आप समाज में बदलाव नहीं चाहते।

दहेज के लिए भी होती है महिलाओं के साथ हिंसा

घर-परिवारों में आज भी ये सोच देखने को मिलती है कि शादी के बाद पति को पत्नी पर हाथ उठाने का अधिकार मिल जाता है। इसके अलावा, समाज में फैली दैत्याकार दहेज प्रथा भी घरेलू हिंसा को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कारक है। अक्सर देखने में आता है कि शादी के बाद महिलाओं के साथ पति और सास-ससुर दहेज की वजह से भी मारपीट करते हैं। कई औरतों को ससुराल पक्ष द्वारा मनमाफिक दहेज न मिलने पर मार दिया जाता है।

अपने हक के लिए आवाज नहीं उठाती महिलाएं

एक गैर सरकारी संस्था के मुताबिक, भारत में लगभग 5 करोड़ महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले सामने आते हैं। हैरानी की बात तो यह है कि इसमें से 1% महिलाएं ही अपने साथ हो रहे अत्याचारों पर आवाज उठाने के लिए सामने आती हैं।

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पढ़ी-लिखी महिलाएं होती है ज्यादा शिकार

वहीं रिपोर्ट के मुताबिक, अशिक्षित महिलाओं की तुलना में पढ़ी-लिखी शादीशुदा महिलाएं जो काम पर जाती हैं, वह घरेलू हिंसा की शिकार ज्यादा होती हैं। शोध में सामने आया कि जिन महिलाओं के पति को नौकरी मिलने में दिक्कत आ रही थी उन्हें दोगुना घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा।

महिलाओं के लिए बने है कई कानून

घरेलू हिंसा पर लगाम लगाने के लिए भारत सरकार ने घरेलू हिंसा संरक्षण अधिनियम 2005 बनाया है। इसमें मार पिटाई, जबरदस्ती यौन शोषण, भावनात्मक स्तर पर यातना और अपमान शामिल है। इस कानून के तहद पति पर 20 हजार रुपए का जुर्माना और 3 महीने की सजा हो सकती है।

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एक 'थप्पड़' के लिए इतना कुछ करना कहां तक सही?

महिलाएं अपने हक के लिए आवाज उठाने से ही डरती हैं? लेकिन क्यों? आखिर एक 'थप्पड़' के लिए इतना कुछ करना या सहना कहां तक सही? आखिर महिलाएं पहले ही थप्पड़ आवाज क्यों नहीं उठाती? अगर आपको ऐसा लगता है कि एक 'थप्पड़' के लिए तलाक लेना या कोर्ट के चक्कर काटना सही नहीं है तो यही आपकी सबसे बड़ी गलती है। क्योंकि पति को पहली बार थप्पड़ मारने पर ना रोककर आप उसे इस चीज के लिए बढ़ावा दे रही हैं। ऐसे में आप अपने साथ हो रहे इस अत्याचार की सबसे पहली मुजरिम आप खुद है।

ऐसे में बेहतर होगा कि आप सबकुछ सहने की बजाए उसके खिलाफ आवाज उठाएं। पहले अपने घरवालों से बात करें और अगर कोई हल ना निकलें तो पुलिस व कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं। समाज में इज्जत से जीना आपका भी हक है इसलिए किसी एक रिश्ते के लिए अपने आत्मसम्मान को ना मारें।

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Content Writer

Anjali Rajput

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