दलितों और पिछड़ों के मसीहा डॉ भीमराव अम्बेडकर जीवन भर लड़ते रहे हक की लड़ाई

punjabkesari.in Thursday, Mar 31, 2022 - 10:16 AM (IST)

देश के संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर को 31 मार्च 1990 को मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करके देश और समाज के प्रति उनके अमूल्य योगदान को नमन किया गया। 'बाबासाहब' भीमराव आंबेडकर ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया था और जीवनभर सामाजिक भेदभाव के खिलाफ लड़ते रहे। 

PunjabKesari
आजादी के बाद  'बाबासाहब'  की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई, जब उन्हें राष्ट्र के संविधान निर्माण का दायित्व सौंपा गया वह भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने ही दलित बौद्ध आन्दोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। 

PunjabKesari

अंबेडकर जैसे-जैसे बड़े होते गए उनके मन में समाज में व्याप्त जात-पात और इसके नाम पर शोषण के खिलाफ धारणा बनती गई। भेदभाव का अनुभव उन्होंने स्कूल से लेकर नौकरी तक में किया। उन्होंने  न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन किया और 1915 में एमए की परीक्षा पास की। भीमराव जी  बंबई के प्रतिष्ठित एल्फिंस्टन काॅलेज में दाखिला लेने वाले पहले दलित छात्र थे। 

PunjabKesari
इसके बाद  'बाबासाहब' ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनाॅमिक्स में दाखिला लिया। चार साल में दो डाॅक्टरेट की उपाधियां हासिल कीं। 5 के दशक में उन्हें दो और मानद डाॅक्टरेट की उपाधियां दी गईं।  देश लौटते ही उन्होंने दलितों और दबे कुचलों को न्याय दिलवाने के लिए आवाज उठाई।  अंबेडकर ने 2 साल 11 महीने 17 दिन में भारतीय संविधन (Indian Constitution) तैयार कर के दिया, जिसमें उन्होंने हर किसी को बराबरी और पलने-बढ़ने का न्यायपूर्ण हक दिया। वह स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बने। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

vasudha

Recommended News

Related News

static