क्या आरती की दिशा बदलती है ऊर्जा का प्रवाह? जानें कारण
punjabkesari.in Friday, Dec 05, 2025 - 04:36 PM (IST)
नारी डेस्क : सनातन धर्म में भगवान की पूजा और आराधना पूरी विधि-विधान से करने का विधान है। मंदिरों में जब पुजारी आरती करते हैं, तो वे पूजा की थाली को दक्षिणावर्त यानी घड़ी की दिशा में घुमाते हैं। इसके पीछे सिर्फ धार्मिक परंपरा ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण भी छिपे हैं।
प्राकृतिक लय के साथ घुमाई जाती है आरती
हिंदू संस्कृति में आरती को दक्षिणावर्त घुमाने को प्रकृति के क्रम से जोड़ा गया है। जैसे पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, सूर्य भी इसी दिशा में उदय और अस्त होता है, और घड़ी की सुई इसी दिशा में बढ़ती है। इसलिए आरती को भी इस प्राकृतिक लय के अनुरूप घुमाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि विपरीत दिशा में घुमाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह रुक सकता है।

दाहिना भाग होता है पवित्र
हिंदू परंपरा में शरीर का दाहिना भाग शुभ माना जाता है। इसी कारण मंदिरों में परिक्रमा हमेशा दाहिनी दिशा में की जाती है और पूजा के समय प्रसाद, जल, पुष्प या आशीर्वाद दाहिने हाथ से अर्पित किया जाता है। आरती के दौरान दक्षिणावर्त घुमाने का अर्थ यह होता है कि भगवान भक्त के दाहिने पक्ष में स्थित हैं, जो आदर और समर्पण का प्रतीक है।
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सकारात्मक ऊर्जा जगाने की क्रिया
आरती केवल दीपक घुमाने की क्रिया नहीं है, बल्कि यह पूरे मंदिर में दिव्य ऊर्जा फैलाने का माध्यम भी है। जब भक्त आरती की ज्योति को हाथों से स्पर्श कर आंखों पर लगाते हैं, तो यह आशीर्वाद और सकारात्मक ऊर्जा उनके भीतर प्रवेश करती है।

आरती की थाली कैसे घुमाएं
शास्त्रों में आरती की थाली को घड़ी की दिशा में यानी दक्षिणावर्त घुमाने की विशेष विधि बताई गई है। कुल 14 बार थाली घुमाना चाहिए, जिसमें चरणों के आगे 4 बार, नाभि के सामने 2 बार और मुख भाग पर 1 बार घुमाना शामिल है। यह पूरा क्रम 14 लोकों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक माना जाता है।

