Health Alert: आज ही छोड़ दें डिस्पोजेबल कप में चाय पीना वरना...!
punjabkesari.in Friday, Nov 06, 2020 - 05:42 PM (IST)
शायद ही कोई ऐसा हो जिसकी दिनचर्या में चाय शामिल ना हो। हर कोई दिन में एक कप चाय तो पीता ही हैं। वही कोरोना ही वजह से आजकल डिस्पोजेबल पेपर कप का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अगर आप भी इसे यूज करते हैं तो जरा सावधान हो जाएं।
बेहद खतरनाक है डिस्पोजेबल पेपर कप में चाय पीना
हाल में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी) खड़गपुर के शोधकतार्ओं ने एक शोध में इस बात की पुष्टि की है कि डिस्पोजेबल पेपर कप में चाय और काफी पीना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पेपर के अंदर इस्तेमाल की गई सामग्री में सूक्ष्म-प्लास्टिक और अन्य खतरनाक घटकों की उपस्थित होते है।रिसर्च में सिविल इंजीनियरिंग विभाग की शोधकर्ता और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सुधा गोयल तथा पयार्वरण इंजीनियरिंग एवं प्रबंधन में अध्ययन कर रहे शोधकर्ता वेद प्रकाश रंजन और अनुजा जोसेफ के मुताबिक, 15 मिनट के अंदर यह सूक्ष्म प्लास्टिक की परत गर्म पानी या अन्य पेय की प्रतिक्रिया में पिघल जाती है।
15 मिनट में कप में फैल जाते हैं सूक्ष्म प्लास्टिक कण
प्रोफेसर सुधा गोयल ने बताया कि रिसर्च के मुताबिक, एक पेपर कप में रखा 100 मि.ली गर्म तरल पदार्थ 25000 माइक्रोन-आकार (10 माइक्रोन से 1000 माइक्रोन) के सूक्ष्म प्लास्टिक के कण छोड़ता है। इस प्रक्रिया में करीबन 15 मिनट लगते है। इसके मुताबिक अगर एक व्यक्ति दिन में 2 कप भी चाय पीता या कॉफी पीता है तो 50,000 छोटे सूक्ष्म प्लास्टिक के कणों उसके शरीर के अंदर जाते हैं।
इस रिसर्च के लिए 15 मिनट का समय ही क्यों किया तय
चाय का फिर कॉफी को कप में डाले जाने के लिए 15 मिनट के भीतर ही पीया जाता है। इसी बात को लेकर इस शोध का समय तय किया गया। वही ये सूक्ष्म प्लास्टिक कणों में जहरीली भारी धातुओं जैसे पैलेडियम, क्रोमियम और कैडमियम पाए जाते हैं जोकि घुलनशील नहीं होते। जब यह व्यक्ति के शरीर में जाते हैं तो सेहत पर बुरा असर डालते हैं।
वही, आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो. वीरेंद्र के तिवारी ने कहा कि किसी भी उत्पाद के इस्तेमाल कोबढ़ावे देने से पहले इस बात का ख्याल जरूर रखना चाहिए कि वह पयार्वरण के लिए प्रदूषक और जैविक दृष्टि से खतरनाक न हों। हमने प्लास्टिक और शीशे से बने उत्पादों को डिस्पोजेबल पेपर उत्पादों से बदलने में जल्दबाजी की थी, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम पयार्वरण अनुकूल उत्पादों की तलाश करते।